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भोले बाबा को कर लें प्रसन्न, 12 साल बाद आया दुर्लभ संयोग

Admin
Published on: 29 Feb 2016 12:40 PM GMT
भोले बाबा को कर लें प्रसन्न, 12 साल बाद आया दुर्लभ संयोग
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सहारनपुर: 12 साल बाद इस महाशिवरात्रि पर अदभुत संयोग बन रहा है। इसलिए इस बार शिवरात्रि की महत्व कई गुना अधिक है। इसलिए ये तिथि अपने आप में ही श्रेष्ठ मानी जाती है। सोमवार के दिन महादेव की आराधना का उत्तम दिन होता है, ज्योतिषाचार्य डॉ.दीपक शर्मा अनुसार महाशिवरात्रि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी की तिथि घनिष्ठा नक्षत्र में मनाई जाएगी। इस साल 7 मार्च को महाशिवरात्रि के दिन सोमवार पड़ रहा है। ये अदभुत संयोग है। इस साल सिंहस्थ का योग निर्मित हुआ है। देव गुरु बृहस्पति सिंह राशि में गोचर करेंगे। इस प्रकार से यह तिथि धार्मिक कार्यों की दृष्टि से भी खास है। अगर इस दिन शिव की पूजा करने से भगवान प्रसन्न होंगे साथ ही अपने भक्तों पर विशेष कृपा करेंगे।

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क्यों मनाते है ये पर्व?

ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के शुरूआत में इसी तिथि को मध्यरात्रि में भगवान भोलेनाथ कालेश्वर के रूप में प्रकट हुए थे। महाकालेश्वर भगवान शिव की वह शक्ति है जो सृष्टि का समापन करती है। महादेव शिव जब तांडव नृत्य करते हैं तो पूरा ब्रह्माण्ड विखडिंत होने लगता है। इसलिए इसे महाशिवरात्रि की कालरात्रि भी कहते है। भगवान शिव की वेशभूषा विचित्र मानी जाती है। महादेव अपने शरीर पर चिता की भस्म लगाते हैं, गले में रुद्राक्ष धारण करते हैं और नंदी बैल की सवारी करते हैं। भूत-प्रेत-निशाचर उनके अनुचर माने जाते हैं। ऐसा वीभत्स रूप धारण करने के बाद भी उन्हें मंगलकारी माना जाता है जो अपने भक्त की पल भर की उपासना से ही प्रसन्न हो जाते हैं और उसकी मदद करने के लिए दौड़े चले आते हैं। इसीलिए उन्हें आशुतोष भी कहा गया है। भगवान शंकर अपने भक्तों के न सिर्फ कष्ट दूर करते हैं बल्कि उन्हें समृद्धि और संपत्ति भी देते हैं।

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कई रंग है शिवरात्रि के

महादेव को रंग चढ़ाने के बाद ही होली का रंग चढ़ना शुरू होता है। बहुत से लोग ईख या बेर भी तब तक नहीं खाते जब तक महाशिवरात्रि पर भगवान

शिव को अर्पित न कर दें। प्रत्येक राज्य में शिव पूजा उत्सव को मनाने के भिन्न-भिन्न तरीक़े हैं, लेकिन सामान्य रूप से शिव पूजा में भांग-धतूरा-गांजा और बेल ही चढ़ाया जाता है। जहां भी ज्योर्तिलिंग हैं, वहां पर भस्म आरती, रुद्राभिषेक और जलाभिषेक कर भगवान शिव का पूजन किया जाता है।

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शास्त्रीय मान्यता

महाशिवरात्रि के दिन ही शंकर जी का विवाह पार्वती जी से हुआ था, उस दिन उनकी बरात निकली थी। वास्तव में महाशिवरात्रि का पर्व स्वयं परमपिता परमात्मा के सृष्टि पर अवतरित होने की याद दिलाता है।इस दिन व्रत धारण करने से सभी पापों का नाश होता है और मनुष्य की हिंसक प्रवृत्ति भी नियंत्रित होती है। निरीह लोगों के प्रति दया-भाव आता है। ईशान संहिता में इसकी महत्व का वर्णन किया गया है-

शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापं प्रणाशनत्

चाण्डाल मनुष्याणं भुक्ति मुक्ति प्रदायकं

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ज्योतिष के अनुसार सूर्यदेव भी इस समय तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं। इसी दिन से ॠतु परिवर्तन की भी शुरुआत होती है। चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी सबसे कमज़ोर अवस्था में पहुंचता है। जिससे मानसिक संताप उत्पन्न होता है। चंद्रमा शिवजी के मस्तक पर सुशोभित है इसलिए चंद्रमा की कृपा प्राप्त करने के लिए शिवजी की आराधना की जाती है। इससे मानसिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन रातभर जागरण करना चाहिए। इससे भोलेबाबा भी प्रसन्न होते है।

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