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अक्षय तृतीया के दिन जाते हैं इस मंदिर में करने दर्शन तो कुबेर हरदम आप पर रहेंगे प्रसन्न

suman
Published on: 27 April 2017 10:51 AM GMT
अक्षय तृतीया के दिन जाते हैं इस मंदिर में करने दर्शन तो कुबेर हरदम आप पर रहेंगे प्रसन्न
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कोल्हापुर: अक्षय तृतीया सुख समृद्धि का पर्व है। जो सोना-चांदी की समृद्धि का प्रतीक है और इसका कभी क्षय न हो, इसलिए लोग अक्षय तृतीया को सोना खरीदते हैं। वैभव लक्ष्मी की श्री विष्णु के साथ पूजा की जाती है। धन के देवता माने जाने वाले कुबेर की पूजा भी अक्षय तृतीया के दिन ही करते हैं। इस दिन भगवान शिव पार्वती और गणेश भगवान की भी पूजा की जाती है।इस लिए उनके दर्शन करने के लिए लोग महालक्ष्मी मंदिर जाते हैं। जिससे उनपर उनकी कृपा बनी रहे।

महालक्ष्मी मंदिर महाराष्ट्र के कोल्हापुर में है। बताया जाता है कि महालक्ष्मी का यह मंदिर 1800 साल पुराना है और इस मंदिर में आदि गुरु शंकराचार्य ने देवी महालक्ष्मी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की थी। यही कारण है कि इस दिन कई श्रद्धालु दूर-दूर से यहांं दर्शन करने आते हैं।

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इसके पीछे की कहानी

इस मंदिर को लेकर ऐतिहासिक मान्यता यह है कि इस मंदिर में देवी महालक्ष्मी को 'अम्बा बाई' के नाम से पूजा जाता है। कोल्हापुर देवी महालक्ष्मी की कहानी कुछ इस तरह है कि एक बार ऋषि भृगु के मन में शंका उत्पन हुई कि त्रिमूर्ति के बीच में कौन सबसे श्रेष्ठ है। इसे जाने के लिए पहले वे ब्रह्मा के पास गए और बुरी तरह उनसे बात की। जिससे ब्रह्मा को क्रोध आ गया। इससे ऋषि भृगु को यह ज्ञात हुआ कि ब्रह्मा अपने क्रोध को नियंत्रित नहीं कर सकते अतः उन्हें श्राप दिया कि उनकी पूजा किसी भी मंदिर में नहीं होगी। इसके बाद वे शिव जी के पास गए लेकिन नंदी ने उन्हें प्रवेश द्वार पर ही यह कह कर रोक दिया कि शिव और देवी पार्वती दोनों एकान्त में हैं। इस पर ऋषि भृगु क्रोधित हुए और शिव जी को श्राप दिया कि उनकी पूजा लिंग के रूप में होगी।

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इसके बाद वे विष्णु जी के पास गए और देखा कि भगवान विष्णु अपने सर्प पर सो रहे थे और देवी महालक्ष्मी उनके पैरों की मालिश कर रहीं थी। यह देख ऋषि भृगु क्रोधित हुए और उन्होंने भगवान विष्णु छाती पर मारा। इससे भगवान विष्णु जाग गए और ऋषि भृगु से माफी मांगी और कहा कि कहीं उन्हें पैरो में चोट तो नहीं लग गयी। यह सुन कर ऋषि भृगु वहां से भगवान विष्णु की प्रशंसा करते हुए वापस चले गए। लेकिन ऋषि भृगु के इस व्यवहार को देख कर देवी महालक्ष्मी क्रोधित हो गयी और उन्होंने भगवान् विष्णु से उन्हें दंडित करने को कहा। लेकिन भगवान विष्णु इसके लिए राज़ी नहीं हुए।

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भगवान विष्णु के बात ना मानने पर देवी लक्ष्मी ने वैकुंठ त्याग दिया और कोल्हापुर चली गयी। वहां उन्होंने तपस्या की जिससे भगवान विष्णु ने भगवान वेंकटचलपति रूप में अवतार लिया। इसके बाद उन्होंने देवी पद्मावती के रूप में देवी लक्ष्मी को शांत किया और उनके साथ विवाह किया। महालक्ष्मी की प्रतिमा काली और ऊंचाई करीब 3 फीट लंबी है। मंदिर के एक दीवार में श्रीयंत्र पत्थर पर खोद कर चित्र बनाया गया है। देवी की मूर्ति के पीछे देवी की वाहन शेर का एक पत्थर से बनी प्रतिमा भी मौजूद है। अन्य हिंदू पवित्र मंदिरों में देवीजी पूरब या उत्तर दिशा को देखते हुए मिलती हैं लेकिन यहां देवी महालक्ष्मीजी पश्चिम दिशा को निरीक्षण करते हुए मिलती है। वहां पश्चिमी दीवार पर एक छोटी सी खुली खिड़की मिलती है, जिसके माध्यम से सूरज की किरणें हर साल मार्च और सितंबर महीनों के 21 तारीख के आसपास तीन दिनों के लिए देवीजी की मुख मंडल को रोशनी करते हुए इनके पद कमलों में शरण प्राप्त करते हैं।

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कोल्हपुर मंदिर को 51 शक्तिपीठ में एक शक्तिपीठ मान गया है। इसकी कहानी कुछ इस प्रकार है। महादेव के अपमान से क्रोधित हो कर माता सती ने अग्नि कुंड में आत्मदाह कर लिया। माता सती के आत्मदाह का आभास होते महादेव की क्रोधाग्नि से सारा ब्रह्मांड जलने लगा। तब भगवान विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र का प्रयोग करते हुए माता सती के शरीर को को 51 भागों में विभाजित कर दिया जो इस धरती के अलग-अलग जगहों पर जा गिरे और पाषाण के रूप में स्थापित हो गए। वही आज शक्तिपीठ के रुप में जाने जाते हैं।

मंत्र जाप

ओम सर्वबाड़ा विनम्रुको, धन ध्यायाह सूटेनवीता मनुश्या माताप्रसादन आशीर्वाद भावना संप्रशाय ओम

ओम श्री महालक्ष्मीई चा विदर्भ विष्णु पेट्राई चाई धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रोक्योदय ओम

ओम श्रृंग श्रीै नमः

ओम हिंग क्लिंग महालक्ष्मीई नमः।।

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