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जानिए लोहड़ी से जुड़ी मान्यताएं, क्यों जलाते हैं अलाव, करते हैं भांगड़ा
जयपुर: लोहड़ी का त्योहार उत्तर भारत में व्यापक स्तर पर मनाया जाता है। लोहड़ी को पंजाब और जम्मू-कश्मीर में मकर संक्रांति के जैसा ही मनाया जाता है। लोहड़ी का त्योहार विशेष रूप से पंजाब के लोगों के लिए खास महत्व रखता है। भारत के जिस हिस्से में पंजाबी समुदाय के लोग रहते हैं, इस त्योहार को उस स्थान पर मनाया ही जाता है। इतना नहीं इस त्योहार को पंजाबी लोग परंपरागत भांगड़ा नृत्य के साथ झूमते हुए मानते हैं।
महत्त्व
इस त्योहार में जिस तरह होलिका दहन की जाती है ठीक उसी प्रकार लोहड़ी के अवसर पर अलाव जलाकर नृत्य के साथ इस त्यौहार को मानते हैं। इस दिन सूर्य ढलते ही खेतों में बड़े-बड़े अलाव जलाए जाते हैं। इस जलते हुए आलव के पास खड़े होकर लोग मस्ती के साथ नाचते और झूमते हैं। इसलिए इस त्योहार में अलाव का महत्त्व बढ़ जाता है।पंजाब का यह पारंपरिक त्यौहार लोहड़ी फसल की बुआई और कटाई से जुड़ा एक विशेष त्यौहार है। पंजाब में यह त्यौहार नए साल की शुरुआत में फसलों की कटाई के उपलक्ष्य के तौर पर मनाई जाती है। लोहड़ी के त्यौहार के अवसर पर जगह-जगह अलाव जलाकर उसके आसपास नृत्य भी किए जाते हैं। नृत्य के दौरान लड़के जहां भांगड़ा करते हैं, वहीं लड़कियां गिद्धा नृत्य करती हैं।
मान्यताओं के अनुसार लोहड़ी का त्यौहार मुख्य रूप से सूर्य और अग्नि देव को समर्पित है। लोहड़ी के पवन अवसर पर लोग रवि फसलों को अग्नि देवता को अर्पित करते हैं, क्योंकि इस दिन से ही घरों में रवि फसल कटकर आने लगते हैं। लोहड़ी की पवित्र अग्नि में नवीन फसलों को समर्पित समर्पित करने का भी विधान है। इसके अलावे इस दिन अग्नि में तिल, रेवड़ियाँ, मूंगफली, गुड़ और गजक आदि भी समर्पित किया जाता है।
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लोग ऊंची उठती अग्नि शिखाओं के चारों ओर एकत्रित होकर, अलाव की परिक्रमा करते हैं तथा अग्नि को पके हुए चावल, मक्का के दाने तथा अन्य चबाने वाले भोज्य पदार्थ अर्पित करते हैं। 'आदर आए, दलिदर जाए' इस प्रकार के गीत व लोकगीत इस पर्व पर गाए जाते हैं। यह एक प्रकार से अग्नि को समर्पित प्रार्थना है। ऐसा करने से यह माना जाता है कि देवताओं तक भी फसल का कुछ अंश पहुँचता है। साथ ही मान्यता ऐसी भी है कि अग्नि देव और सूर्य को फसल समर्पित करने से उनके प्रति श्रद्धापूर्वक आभार प्रकट होता है। ताकि उनकी कृपा से कृषि उन्नत और लहलहाता रहे।
कुछ यह भी है इसके पीछें...
*लोहड़ी को अलग-अलग जगह अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। इसे पहले लोई कहा जाता था जो संत कबीर के पत्नी का नाम है। आज भी पंजाब के ग्रामीण इलाकों में इसे लोही कहकर पुकारा जाता है। कुछ लोग कहते हैं लोहड़ी शब्द को पहले लोह कहते थे, जिसका मतलब हुआ लोहे का तवा जिस पर रोटियां बनाई जाती हैं।
*एक और कथा में कहा गया है कि होलिका और लोहड़ी दोनों बहनें थी। कई जगह लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। यह शब्द तिल और रोड़ी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के रुप में प्रसिद्ध हो गया।
*लोहड़ी से जुड़ी कई मान्यताएं है लेकिन सबसे प्रचलित कहानी है दुल्ला भट्टी की। सुंदरी और मुंदरी नामक दो अनाथ लड़कियां थीं। उस समय लड़कियों को अमीरों को बेच दिया जाता था। सुंदरी और मुंदरी को बेचे जाने का पता लगने पर दुल्ला भट्टी जिन्हें मुगल शासक डाकू मानते थे, उन्होंने दोनों लड़कियों को छुड़ाकर उनकी शादी कराई। एक जंगल में आग जलाकर सुंदरी और मुंदरी का विवाह कराया गया।
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*पंजाबी किसानों के लिए लोहड़ी इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं कि लोहड़ी से अगला दिन इनके लिए फाइनेंशियल न्यू ईयर होता है। जो इन लोगों के काफी महत्वपूर्ण है। दरअसल लोहड़ी फसलों का त्योहार है। इस समय गन्ने की फसल की कटाई की जाती है। यही वजह है कि इस त्योहार में गुड़ और गजक का इस्तेमाल किया जाता है।
*लोहड़ी के दिन लोग आग के चारों ओर बैठकर लोग आग में तिल, चावल, रेवड़ी, खील, गज्जक, डालते हैं। इस दौरान कहा जाता है कि घर में सम्मान आए और गरीबी दूर जाए। जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उनके लिए लोहड़ी बहुत खास होती है। लोहड़ी के दिन सबसे ज्यादा लोकगीत गाए जाते हैं। दरअसल लोकगीतों के तहत सूर्य भगवान को धन्यवाद दिया जाता है जिससे कि आने वाले साल में भी लोगों को उनका सरंक्षण मिलता रहे। इसके अलावा महिलाएं गिद्दा गाती हैं। इस दिन पतंग भी उड़ाई जाती है।