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सरस्वती पूजा : ज्ञान, प्रेम और श्रद्घा का पर्व है वसंत पंचमी
'वसंत पंचमी सिर्फ ज्ञान और विद्या के सम्मान का ही पर्व नहीं है, बल्कि इस दिन प्रेम और आस्था भी साथ साथ पूजे जाते हैं। इसीलिए यह एक सम्पूर्ण उत्सव माना जाता है। जहां विद्या के लिए बच्चे ज्ञान की देवी सरस्वती की अर्चना करते हैं वहीं प्रेम के देवता कामदेव को भी पूजा जाता है। इसके अलावा इस दिन भगवान विष्णु की पूजा भी की जाती है।'
वसंत पंचमी का पर्व लोगों को वसंत ऋतु के आगमन की सूचना देता है। चारों तरफ की हरियाली और महकते फूल खुशियों की छटा बिखेरते हैं। इस मौसम की हल्की हवा से वातावरण सुहाना हो जाता है। खेत खलिहानों में पीली सरसों लहलहाने लगती है। शरद ऋतु की विदाई के साथ पेड़, पौधों और प्राणियों में नए जीवन का संचार होता है। ऐसा माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती के अवतार का जन्म हुआ था। माघ शुक्ल पंचमी को मां सरस्वती के प्राकट्य दिवस के रूप मे वसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस मौके पर मां सरस्वती की पूजा की जाती है और फूल चढ़ाए जाते हैं। विद्यार्थी इस दिन किताब-कॉपी और पाठ्य सामग्री की भी पूजा करते हैं। जिस दिन पंचमी तिथि सूर्योदय और दोपहर के बीच रहती है, उस दिन को सरस्वती पूजा के लिये उपयुक्त माना जाता है। इस दिन कई स्थानों पर शिशुओं को पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है। इसका कारण यह है कि इस दिन को विद्या आरंभ करने के लिये शुभ माना जाता है। मान्यता है कि जिस विद्यार्थी पर मां सरस्वती की कृपा हो उसकी बुद्धि बाकी विद्यार्थियों से अलग और बहुत ही प्रखर होती है। ऐसे छात्र को कोई भी विद्या आसानी से प्राप्त हो जाती है।
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वसंत पंचमी है अबूझ मुहूर्त
ज्योतिष के मुताबिक वसंत पंचमी का दिन अबूझ मुहूर्त के तौर पर भी जाना जाता है, इस कारण नए कार्य की शुरुआत के लिए यह दिन उत्तम माना जाता है। यह दिन मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा, घर की नींव, गृह प्रवेश, वाहन खरीदने, व्यापार शुरू करने आदि के लिए शुभ है। इस दिन अन्नप्राशन भी किया जा सकता है।
पौराणिक मान्यताएं
मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पचंमी के दिन उनकी आराधना की जाएगी। तब से वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती के पूजन की परंपरा चली आ रही है। खास कर विद्यार्थियों द्वारा सरस्वती पूजा का आयोजन किया जाता है। एक अन्य मान्यता के मुताबिक मां सीता की तलाश करते हुए भगवान श्रीराम गुजरात और मध्य प्रदेश में फैले दंडकारण्य इलाके में पहुंचे। यहीं शबरी का आश्रम था। कहा जाता है कि वसंत पंचमी के दिन ही भगवान श्रीरामचंद्र यहां आए थे। इस क्षेत्र के लोग आज भी वहां मौजूद एक शिला का पूजन करते हैं। मान्यता है कि भगवान श्रीराम इसी शिला पर बैठे थे। यहीं शबरी माता का मंदिर भी है।
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वसंत कामदेव का सहचर है। अत: इस दिन कामदेव तथा उनकी पत्नी रति की भी पूजा की जाती है। वसंत पंचमी को रतिकाम महोत्सव भी कहते हैं प्रत्यक्ष में देखें तो वसंत ऋतु में समस्त जड़ चेतन में काम का संचार दिखाई देता है प्रकृति में एक अलग सौन्दर्य होता है। विशेषकर मनुष्य कुछ अधिक प्रसन्न दिखाई देते हैं। उनमें मोहक गुण का विशेष प्रभाव दिखता है। हर तरफ उल्लास का वातावरण होता है। कुदरत के रंगीन नजारे मन मोह लेते हैं।
शुभ मुहूर्त
पूजा मुहूर्त : सुबह 6.40 बजे से दोपहर 12.12 बजे तक
पंचमी तिथि प्रारंभ: मघ शुक्ल पंचमी शनिवार 9 फरवरी की दोपहर 12.25 बजे से
पंचमी तिथि समाप्त: रविवार 10 फरवरी को दोपहर 2.08 बजे तक
पूजा विधि
इस दिन भगवान विष्णु का भी पूजन किया जाता है। प्रात: काल तैलाभ्यंग स्नान करके पीत वस्त्र धारण कर, विष्णु भगवान का विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए। इसके बाद पितृतर्पण तथा ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। इस दिन सभी विष्णु मंदिरों में भगवान का पीत वस्त्रों तथा पीले पुष्पों से श्रंगार किया जाता है। पहले गणेश सूर्य विष्णु शिव आदि देवताओं का पूजन करके सरस्वती देवी का पूजन करना चाहिए। सरस्वती पूजन करने के लिए एक दिन पूर्व संयम नियम से रहना चाहिए तथा दूसरे दिन स्नानोपरान्त कलश स्थापित कर, पूजन आदि करना चाहिए।
सुबह स्नान करके पीले या सफेद वस्त्र धारण करें, मां सरस्वती की मूर्ति या चित्र उत्तर-पूर्व दिशा में स्थापित करें। मां सरस्वती को सफेद चंदन, पीले और सफेद फूल अर्पित करें। उनका ध्यान कर 'ऊं ऐं सरस्वत्यै नम:Ó मंत्र का 108 बार जाप करें। मां सरस्वती की आरती करें तथा दूध, दही, तुलसी, शहद मिलाकर पंचामृत का प्रसाद बनाकर मां को भोग लगाएं।
सरस्वती वंदना
या कुन्देन्दु-तुषारहार-धवला या शुभ्र-वस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकर-प्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा॥
शुद्धां ब्रह्मविचार सारपरम- माद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्?।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्?
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्?॥
सरस्वती स्तोत्रम
श्वेतपद्मासना देवि श्वेतपुष्पोपशोभिता।
श्वेताम्बरधरा नित्या श्वेतगन्धानुलेपना॥
श्वेताक्षी शुक्लवस्रा च श्वेतचन्दन चर्चिता।
वरदा सिद्धगन्धर्वैर्ऋषिभि: स्तुत्यते सदा॥
स्तोत्रेणानेन तां देवीं जगद्धात्रीं सरस्वतीम्।
ये स्तुवन्ति त्रिकालेषु सर्वविद्दां लभन्ति ते॥
या देवी स्तूत्यते नित्यं ब्रह्मेन्द्रसुरकिन्नरै:।
सा ममेवास्तु जिव्हाग्रे पद्महस्ता सरस्वती॥
वसंत पंचमी पर न करें 5 गलतियां
वसंत पंचमी को काले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए। इस दिन पीले वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है।
इस दिन मांस-मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।
वसंत पंचमी के दिन किसी से वाद-विवाद या क्रोध नहीं करना चाहिए।
वसंत पंचमी पर कलह होने से पितृ को कष्ट पहुंचता है।
इस दिन बिना नहाए कुछ भी नहीं खाना चाहिए। इस दिन नदी, सरोवर या पास के तालाब में स्नान करना चाहिए और मां सरस्वती की पूजा अराधना के बाद ही कुछ खाना चाहिए।
वसंत पंचमी के दिन भूल से भी पेड़-पौधों की कटाई नहीं करनी चाहिए।
बनाएं पीले पकवान
मान्यताओं के अनुसार वसंत पंचमी के दिन पीले रंग वाले पकवान भी बनाए जाते हैं। जानिए आप और कौन से मीठे पीले पकवान बना सकते हैं।
केसरी शीरा एक तरह की मिठाई है। इस पर बादाम और काजू से गार्निशिंग की जाती है।
यह रसगुल्ले जैसा होता है और इसकी चाशनी बनाते समय ही इसमें केसर डाल दिया जाता है।
बंगाल में सरस्वती पूजा में बनने वाला मुख्य पकवान है खिचड़ी। माता को इसका भोग भी लगाया जाता है।
लड्डï बनाने के लिए सबसे पहले बेसन की बूंदियां बनाई जाती हैं और फिर इन्हें चाशनी में डालकर इसके लड्डïू बनाए जाते हैं।
बेसन और ड्राई फ्रूट्स को अच्छे से घी में भूनकर बेसन के लड्डू बनाए जाते हैं।
कद्दू को दूध में अच्छे से पकाकर इसकी खीर बनाई जाती है। रंग के लिए इसमें भी केसर डाली जाती है।
साउथ में इस दिन इडली के पेस्ट में हल्दी पाउडर मिक्स कर इडली बनाई जाती है।
पीले रंग की खासियत की वजह से आप इस दिन गुजरात के ढोकले भी बना सकते हैं।