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उत्साह, जुनून व प्यार का संचार करता है मकर संक्रांति, जानिए क्या करें इस दिन
जयपुर:सक्रान्ति को शंकरमनम भी कहा जाता है तथा यह भारत में सबसे ज्यादा मनाये जाने वाला त्योहार है। हिन्दू कैलेंडर में प्रत्येक सक्रान्ति के महत्व को बताया गया है। सक्रान्ति बहुत ही उत्साह, जुनून एवं प्यार से मनाई जाती है। हिन्दू मान्यताओं में सक्रान्ति की तिथि एवं समय बहुत महत्व रखता है। सक्रान्ति के ही दिन सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है।
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मकर संक्रांति सूर्य के संक्रमण के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। सूर्य देव का ऐसा राशि परिवर्तन साल में एक बार ही होता है। शास्त्रों के अनुसार सूर्य के धनु राशि से निकलकर मकर राशि में जाने से इस त्योहार का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने से ही सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। शास्त्रों में उत्तरायण को देवताओं का दिन माना जाता है, यानि इस दिन से किसी भी शुभ कार्य का प्रारंभ करने से देवताओं का साक्षात् साथ मिलता है। परिणामस्वरूप कार्य सफलतापूर्वक संपन्न होते हैं।
दक्षिण भारत में मकर सक्रान्ति चार दिन मनाई जाती है। सक्रान्ति का दिन बहुत ही शुभ एवं दान के लिए अच्छा माना जाता है परंतु सभी शुभ कार्य इस दिन नहीं किए जाते। मकर सक्रान्ति से शुभ कार्य करने के दिनों की प्रारंभआत होती है। इस दिन अशुभ काल का अंत होता है जो कि लगभग दिसंबर महीने के मध्य से प्रारंभ होता है।
भारत के अलग-अलग राज्यों में मकर सक्रान्ति को अलग-अलग नामों से जाना जाता है, गुजरात में उत्तरायण, तामिलनाडू में पोंगल, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा एवं पजांब में माघी। इस दिन घरों में कई तरह की मिठाईयां भी बनाई जाती है। मकर सक्रान्ति बहुत खुशियां लेकर आती है और पुराने दुखों को भुलाती है।
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इस दिन सूर्योदय के पूर्व स्नान करने का विशेष महत्व माना गया है। इसलिए इस दिन प्रातःकाल जगकर पवित्र नदी में स्नान करें। यदि नदी में स्नान करना संभव ना हो तो किसी तीर्थ के जल से स्नान करें। यदि किसी भी तीर्थ का जल या पवित्र नदी का जल उपलब्ध न हो तो दूध-दही के मिश्रण से से स्नान करें। स्नान के पश्चात् नित्य कर्म और अपने आराध्य की पूजा-अर्चना करें।
पूजा-अर्चना में इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को भी तिल के गुड़ से बने सामग्रियों का भोग लगाएं। इसे घर में बनाए या बाजार में उपलब्ध तिल के बनाए सामग्रियों का सेवन करें। इस पुण्य कार्य के दौरान किसी से भी कड़वे बोलना अच्छा नहीं माना गया है।
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