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ऐसे करें पूजा मिले मन चाहा वर,सावन में पड़ने वाला सोमवार है विशेष
जयपुर: शिवपर्व शुरू हो चुका है। शिव दिवस से ही शुरू और शिव दिवस को ही समाप्त हो रहा यह सावन बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस बार भगवान शिव का प्रिय मास सावन में 50 साल बाद विशेष संयोग बन रहा है। खास यह कि सोमवार से इस माह की शुरुआत हो रही और समापन भी सोमवार को ही होगा। यह काफी शुभ फलदायक है। 10 जुलाई से सावन की शुरुआत हो चुकी है और 7 अगस्त को रक्षाबंधन यानी सावन पूर्णिमा है। काफी सालों बाद इस बार सावन मास में पांच सोमवार है। खास बात यह कि वैधृति योग के साथ सावन प्रारंभ हो रहा है और आयुष्मान योग के साथ इस मास की समाप्ति। सोमवार, सावन मास, वैधृति योग व आयुष्मान योग सभी के मालिक स्वत: शिव ही हैं। इस लिए इस बार का सावन खास है। इनकी कृपा से दैविक, दैहिक और भौतिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। निर्धन को धन और नि:संतान को संतान की प्राप्ति होती है। कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है।
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सावन में सोमवार का विशेष महत्व
आदि देव भगवान शिव का यह महीना बड़ा ही महत्वपूर्ण है। सावन मास में प्रत्येक सोमवारी का विशेष महत्व है। अमूमन सावन में चार सोमवारी होती है, लेकिन इस बार पांच सोमवारी है। सभी सोमवारी की पूजा के लिए मंत्र अलग-अलग हैं।
पहली सोमवारी को महामायाधारी की पूजा: सावन की पहली सोमवार को महामायाधारी भगवान शिव की आराधना की जाती है। पूजा क्रिया के बाद शिव भक्तों को ‘ऊं लक्ष्मी प्रदाय ह्री ऋण मोचने श्री देहि-देहि शिवाय नम: का मंत्र 11 माला जाप करना चाहिए। इस मंत्र के जाप से लक्ष्मी की प्राप्ति, व्यापार में वृद्धि और ऋण से मुक्ति मिलती है।
द्वितीय सोमवारी को करें महाकालेश्वर की पूजा: दूसरी सोमवार को महाकालेश्वर शिव की विशेष पूजा करने का विधान है। श्रद्धालु को ‘ऊं महाशिवाय वरदाय हीं ऐं काम्य सिद्धि रुद्राय नम: मंत्र का रुद्राक्ष की माला से कम से कम 11 मामला जाप करना चाहिए। महाकालेश्वर की पूजा से सुखी गृहस्थ जीवन, पारिवारिक कलह से मुक्ति, पितृ दोष व तांत्रिक दोष से मुक्ति मिलती है।
तृतीय सोमवार को अर्धनारीश्वर की पूजा: सावन की तृतीय सोमवार को अर्धनारीश्वर शिव का पूजन किया जाता है। इन्हें खुश करने के लिए ‘ऊं महादेवाय सर्व कार्य सिद्धि देहि-देहि कामेश्वराय नम: मंत्र का 11 माला जाप करना श्रेष्ठ माना गया है। इनकी विशेष पूजन से अखंड सौभाग्य, पूर्ण आयु, संतान प्राप्ति, संतान की सुरक्षा, कन्या विवाह, अकाल मृत्यु निवारण व आकस्मिक धन की प्राप्ति होती है।
कुछ बड़ा करने में गलती हो जाये तो क्या करें?
चौथी सोमवारी को तंत्रेश्वर शिव की आराधना: चौथी सोमवारी को तंत्रेश्वर शिव की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन कुश के आसन पर बैठकर ‘ऊं रुद्राय शत्रु संहाराय क्लीं कार्य सिद्धये महादेवाय फट् मंत्र का जाप 11 माला शिवभक्तों को करनी चाहिए। तंत्रेश्वर शिव की कृपा से समस्त बाधाओं का नाश, अकाल मृत्यु से रक्षा, रोग से मुक्ति व सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
गंगा जल, दूध, शहद, घी, शर्करा व पंचामृत से बाबा भोले का अभिषेक कर वस्त्र, यज्ञो पवित्र, श्वेत और रक्त चंदन भस्म, श्वेत मदार, कनेर, बेला, गुलाब पुष्प, बिल्वपत्र, धतुरा, बेल फल, भांग आदि चढ़ायें। उसके बाद घी का दीप उत्तर दिशा में जलाएं। पूजा करने के बाद आरती कर क्षमार्चन करें।
शिव पूजा से मिलने वाले फल रोगों से मिलती है मुक्ति
शरीर में अद्भुत ऊर्जा की अनुभूति
शक्ति में बढ़ोतरी 4, मनोवांछित फल की प्राप्ति
अकाल मृत्यु और भय से मुक्ति
कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर की प्राप्ति
नवीन कार्य की पूर्ति
ग्रहों से शांति
संतान सुख की प्राप्ति
आरोग्यता
नौकरी की प्राप्ति
समस्त बाधाओं से मुक्ति
महत्वपूर्ण तिथियां
30 जुलाई- पहली सोमवार
6अगस्त-दूसरी सोमवार
13अगस्त- तीसरी सोमवार
20अगस्त- चौथी सोमवारी
मुंडन संस्कार का अध्यात्म
ऋषि मुनियों द्वारा बनाए गए संस्कार के वैज्ञानिक आधार हैं। हिंदू धर्म में मुंडन संस्कार की एक खास पद्धति है। जिसमें मुंडन के बाद चोटी रखना अनिवार्य है। लेकिन हिंदू धर्म में बच्चों का मुंडन जितना जरूरी होता है उतना ही जरूरी है किसी नजदीकी रिश्तेदार की मौत के वक्त मुंडन करवाना।
हालांकि बहुत से लोग सिर्फ इसलिए मुंडन करवाते हैं क्योंकि वो बचपन से अपने घरों में ऐसा देखते आए हैं। इसलिए लोग महज इसे एक आध्यात्मिक परंपरा समझकर मुंडन संस्कार कराते हैं। जन्म के बाद बच्चों का मुंडन कराने की परंपरा है लेकिन इसके पीछे सबसे बड़ी वजह ये है कि जब बच्चा मां के पेट में होता तो सिर के बालों में बहुत से हानिकारक बैक्टीरिया लगे होते हैं जो धोने से भी नहीं निकल पाते हैं इसलिए बच्चे के जन्म के 1 साल के भीतर एक बार मुंडन जरूर कराना चाहिए। हालांकि बच्चे की उम्र पांच साल होने पर भी उसके बाल उतारे जाते हैं और यज्ञ किया जाता है। जिसे मुंडन संस्कार कहते हैं। कहा जाता है कि इससे बच्चों का सिर मजबूत होता है और दिमाग भी तेज होता है। किसी करीबी की मौत हो जाने के बाद उसके पार्थिव शरीर के दाह संस्कार के बाद मुंडन कराने का विधान है।
इसके पीछे वजह बताई जाती है कि जब पार्थिव शरीर को जलाया जाता है तो उसमें से कुछ हानिकारक बैक्टीरिया हमारे शरीर से चिपक जाते हैं। इसलिए नदी में स्नान और धूप में बैठने की परंपरा है इसके अलावा सिर में चिपके जीवाणुओं को निकालने के लिए दाह संस्कार के बाद मुंडन कराया जाता है। हिंदू धर्म में मुंडन संस्कार के बाद सिर पर चोटी छोडऩे का अपना एक वैज्ञानिक महत्व बताया जाता है। सिर में सहस्रार के स्थान यानी सिर के सभी बालों को काटकर सिर के बीचों-बीच छोटी सी चोटी रखी जाती है। कहा जाता है कि यह मस्तिष्क का केंद्र है और विज्ञान के अनुसार यह शरीर के अंगो, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान भी है। सिर पर जिस स्थान पर चोटी रखा जाता है वहां से मस्तिष्क का संतुलन ठीक तरह से बना रहता है। हिंदू धर्म में मुंडन संस्कार से जुड़ी इन मान्यताओं के चलते ही मुंडन को इतना ज्यादा महत्व दिया जाता है। तभी तो छोटे बच्चों से लेकर बड़े-बुजर्ग भी खास मौकों पर अपना मुंडन कराते हैं।