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मुलायम के बाद शिवपाल की रही है पार्टी पर पकड़, जानिए उनका राजनीतिक करियर
लखनऊ: समाजवादी पार्टी और यादव परिवार में जारी गृहयुद्ध में अब शिवपाल यादव ने खुलकर विद्रोह कर दिया है। गुरुवार रात चला 'पॉलिटिकल ड्रामा' उनके कद को दिखाता है। शिवपाल यादव ने अखिलेश मंत्रिमंडल के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के सपा अध्यक्ष पद से भी इस्तीफा देने के बाद उनके समर्थक विधायक और कार्यकर्ता रोने तक लगे थे। जानकारों की मानें तो अब यदि शिवपाल यादव कोई बड़ा कदम उठाते हैं तो पार्टी को खासा नुकसान हो सकता है। खास कर तब जब विधानसभा चुनाव सामने हो। ऐसे में ये जानना जरूरी हो जाता है कि शिवपाल यादव हैं कौन और उनका राजनैतिक करियर क्या है :-
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जमीनी नेता के तौर पर की शुरुआत
शिवपाल यादव के बारे में बताया जाता है कि वे शुरू से ही सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय रहे हैं। यूपी के विभिन्न क्षेत्रों में घूम-घूमकर वे लोगों की मदद किया करते थे। इस दौरान सोशलिस्ट पार्टी के कार्यक्रमों में भाग लेना उनका प्रिय शगल था। शिवपाल यादव के बारे में बताया जाता है कि उन्होंने मुलायम सिंह के चुनावों में पर्चे बांटने से लेकर बूथ-समन्वयक तक की जिम्मेदारी उठाई थी। उस वक्त शिवपाल यादव के कंधों पर ही मधु लिमये, बाबू कपिलदेव, चौधरी चरण सिंह और जनेश्वर मिश्र जैसे बड़े नेताओं के आगमन पर सभा करवाने की जिम्मेदारी थी।
आगे की स्लाइड्स में पढ़िए शिवपाल यादव का पॉलिटिकल करियर ...
ऐसे शुरू हुआ राजनैतिक करियर
शिवपाल यादव साल 1988 से 1991 और फिर 1993 में जिला सहकारी बैंक, इटावा के अध्यक्ष चुने गए। 1995 से लेकर 1996 तक वे इटावा के जिला पंचायत अध्यक्ष भी रहे। इसी बीच 1994 से 1998 के बीच शिवपाल यादव उत्तरप्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक के भी अध्यक्ष का दायित्व संभाला। तेरहवीं विधानसभा में वे जसवन्तनगर से विधानसभा का चुनाव लड़े और ऐतिहासिक मतों से जीते। इसी साल वे समाजवादी पार्टी के प्रदेश महासचिव बनाए गए। उन्होंने संगठन को मजबूत बनाने के लिए कठोर मेहनत की।
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समर्पण से बढ़ी स्वीकार्यता
इस दौरान उन्होंने यूपी के कोने-कोने तक को कदमों से नापा। शिवपाल यादव के समाजवादी पार्टी के लिए इसी समर्पण ने उनकी लोकप्रियता और स्वीकार्यता को बढ़ाया। प्रमुख महासचिव के रूप में उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को नया आयाम दिया। प्रदेश अध्यक्ष रामशरण दास के बीमार होने के बाद 1 नवंबर, 2007 को मेरठ अधिवेशन में शिवपाल यादव को कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया।
नेता विपक्ष की भूमिका बखूबी निभाई
रामशरण दास की मौत के बाद 6 जनवरी 2009 को शिवपाल यादव को पूर्णकालिक प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। कार्यकर्ताओं की मानें तो इस दौरान शिवपाल यादव ने सपा को और अधिक प्रखर बनाया। मुलायम सिंह यादव और जनेश्वर मिश्र की मेहनत रंग लाई और उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में स्थापित हुई। शिवपाल मई 2009 तक प्रदेश अध्यक्ष रहे फिर यूपी विधानसभा में नेता विरोधी दल की भूमिका निभाई। बसपा की बहुमत की सरकार के सामने नेता विपक्ष की भूमिका उन्होंने बखूबी निभाई।
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पहले भी इस्तीफा देने में देर नहीं लगाई
शिवपाल यादव से जुड़े करीबी बताते है कि आज पहली बार नहीं है जब उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ पद से इस्तीफा दिया हो। इससे पहले आजम खान की वापसी के दिन उन्होंने नेता प्रतिपक्ष पद से इस्तीफा देने में भी एक पल का विलंब नहीं किया था।
कार्यकर्ता मानते हैं रक्षा कवच
सपा से जुड़े नेता बताते हैं कि राज्य में प्राकृतिक आपदा हो या पार्टी के अंदर भूचाल, शिवपाल हमेशा आगे खड़े रहे हैं। उन्होंने कई बार गिरफ्तारी दी, पुलिसिया उत्पीड़न झेला, आम कार्यकर्ताओं के लिए रक्षा कवच बने रहे। यही कारण है कि सोलहवीं विधानसभा में समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर साठ फीसदी से अधिक मतों से जीतने वाले वे एक मात्र विधायक रहे हैं।
साहित्य से भी रहा जुड़ाव
शिवपाल यादव का साहित्य प्रेम भी किसी से छुपा नहीं है। लोहिया जयंति हो या मधु लिमये का जन्मदिवस सभी मौके पर शिवपाल यादव के लेख विभिन्न समाचार-पत्रों में छपते रहते हैं। यही वजह है कि गोपालदास नीरज, उदय प्रताप सिंह जैसे साहित्यकार और कवि उन्हें काफी स्नेह करते हैं।
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बड़े विभागों की मिली जिम्मेदारी
समाजवादी पार्टी की 2012 में एक बार फिर सरकार बनने के बाद उन्हें लोक निर्माण, सिंचाई, सहकारिता मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई। इन विभागों में की जिम्मेदारी संभालते ही उन्होंने कई बड़े अधिकारियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही की। उनका मानना था कि इन विभागों में हर स्तर पर भ्रष्टाचार व्याप्त है। इस दौरान एक अखबार ने उन्हें 'कार्यवाही मिनिस्टर' तक की संज्ञा दे थी।