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इस दिन है रंगभरी एकादशी, जानिए इसका महत्व व करें आर्थिक समस्या दूर

suman
Published on: 22 Feb 2018 10:24 AM IST
इस दिन है रंगभरी एकादशी, जानिए इसका महत्व व करें आर्थिक समस्या दूर
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जयपुर:धर्म की नगरी काशी में फाल्गुन शुक्ल एकादशी को रंगभरी एकादशी के रूप में जानाजाता है। फाल्गुन शुक्ल एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार किया जाता है। रंगभरी एकादशी के दिन से ही होली का पर्व शुरू होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार रंगभरी एकादशी के दिन ही भगवान शिव माता पार्वती के विवाह के बाद पहली बार काशी नगरी आये थे। रंग भरी एकादशी के पवन पर्व पर भगवान शिव के गण उनपर और जनता पर जमकर अबीर-गुलाल उड़ाते हैं।

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महत्व

रंगभरी एकादशी के दिन से ही वाराणसी में रंगों उत्सव का आगाज होता है जो लगातार 6 दिनों तक चलता है। इस बार रंगभरी एकादशी 26 फरवरी (सोमवार) को है। शास्त्रों में रंगभरी एकादशी का खास महत्व है। रंगभरी एकादशी आर्थिक समस्या को दूर करने के लिए भी बेहद खास है। मान्यता के अनुसार इस दिन प्रातः स्नान-ध्यान कर संकल्प लेना चाहिए। पश्चात् शिव को पीतल के पत्र में जल भरकर उन्हें अर्पित करना चाहिए। साथ ही अबीर, गुलाल, चंदन आदि भी शिवलिंग पर अर्पित करना चाहिए। भोलेनाथ को सबसे अंत में अबीर और गुलाल अर्पित करना चाहिए। इसके बाद अपनी आर्थिक समस्या से उबरने के लिए शिव से प्रार्थना करनी चाहिए।

आंवले से संबंध शास्त्रों के अनुसार रंगभरी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा का विधान है। साथ ही आंवले का विशेष प्रकार से प्रयोग भी किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से स्वास्थ्य उत्तम और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसलिए इस एकादशी को आमलकी एकादशी कहा जाता है।

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पूजा प्रातः काल स्नान आदि से निवृत होकर आंवले के वृक्ष में जल अर्पित करें। आंवले की जड़ में धूप, दीप नैवेद्य, चंदन आदि अर्पित करें। वृक्ष के नीचे दीपक जलाएं। इस के बाद आंवले के वृक्ष की 9 बार या 27 बार परिक्रमा करें। अंत में सौभाग्य और उत्तम स्वास्थ्य की कामना करें। इस दिन आंवलें का पौधा लगाना अति उत्तम माना गया है।

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