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ये राशि है शनि के कुदृष्टि से मुक्त,आप भी करें ये काम नहीं रहेगा साढ़ेसात का प्रभाव

suman
Published on: 6 Oct 2018 6:10 AM IST
ये राशि है शनि के कुदृष्टि से मुक्त,आप भी करें ये काम नहीं रहेगा साढ़ेसात का प्रभाव
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जयपुर:शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से बचने के लिए शनिवार को लोग गलत पूजा करने लग जाते हैं। शनि ग्रह का नाम सुनते ही लोगों के मन में साढ़े साती व ढैय्या का विचार आने लगता है। हिन्दू धर्म शास्त्रों में न्याय के देव शनि को दण्डाधिकारी और न्यायाधीश कहा गया है। शनि देव लोगों को उनके कर्मों के अनुसार शुभ फल और दण्ड देते हैं। साढ़ेसाती की अवधि साढ़े सात साल और ढैय्या की अवधि ढाई साल की होती है। शनि सौरमण्डल के सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह है। शनि एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करने में ढाई वर्ष का समय लेते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गोचरवश शनि जिस राशि में स्थित होते हैं वह एवं उससे दूसरी व बारहवीं राशि वाले जातक साढ़ेसाती के प्रभाव में होते हैं।2018 में शनि की साढ़ेसाती वृश्चिक राशि के अंतिम चरण में रहेंगे, धनु राशि के द्वीय चरण में रहेंगे जबकि मकर राशि के प्रथम चरण में रहेंगे। जबकि वृष राशि और कन्या राशि वाले जातकों पर शनि की ढैय्या रहेगी। 2019 में वृश्चिक राशि के जातकों को साढ़ेसाती से राहत मिलेगी और जीवन में अपार सफलता के योग भी बन रहे हैं।

*शनिदेव की दशा से प्रभावित व्यक्ति को शनिवार को हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि भगवान हनुमान की शरण में रहने वाले मनुष्य को शनिदेव कभी दण्ड नहीं देते है। सम्भव हो तो हनुमान चालीसा के साथ ही संकटमोचन का पाठ भी करें।

*शनिदेव श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त है। शास्त्रों में शनिदेव को परम भागवत कहा गया है। श्रीकृष्ण की भक्ति-आराधना करने वाले व्यक्ति पर शनिदेव सदा अपना आशीर्वाद बनाएं रखते है। उनके भक्त को वो कभी दण्डित नहीं करते है। बल्कि उस पर सदा प्रेमपूर्वक कृपा करते है।

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*पीपल के वृक्ष की जड़ में जल चढ़ाने से शनिदेव प्रसन्न होते है। जो मनुष्य शनिदेव की दशा के नकारात्मक प्रभाव से प्रभावित हो। उसे सुबह ब्रह्ममुहूर्त में पीपल के पेड़ की जड़ में जल अवश्य चढ़ाना चाहिए। जल चढ़ाने के बाद वहां दीप भी प्रज्जवलित करें। साथ ही पीपल की छांव में बैठकर शनिदेव के मंत्र ॐ शं शनिश्चराय नमः का जाप करें।

*शनिदेव सदा लाचार व्यक्तियों पर दयालु रहते है। जो मनुष्य कुष्टरोगियों की सेवा करते है। उनके लिए अन्न, वस्त्र और दवाईयां आदि दान करते है। वो घोर दण्ड के अधिकारी होने के बाद भी शनिदेव के कृपा प्रसाद को पा लेते है। शनिदेव के नकारात्मक प्रभाव से ग्रसित मनुष्य को अवश्य ही कुष्टरोगियों की सेवा करनी चाहिए। यह पुण्य कार्य अत्यंत फलदायी है।

*व्यक्ति के शरीर का सारा भार उसके जूते-चप्पल पर रहता है। मनुष्य पर शनिदेव की दृष्टि को भार के रुप में ही देखा जाता है। इसलिए ज्योतिषों का ऐसा मानना है कि जूते-चप्पल आदि दान करने से शनि का नकारात्मक प्रभाव कम होता है।



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