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15 दिनों तक ना करें मांगलिक काम, शुरू हो गया तर्पण-श्राद्ध
जयपुर: आज मतलब बुधवार से श्राद्ध की शुरुआत हो गई। आज से हमारे पूर्वज हमारे घर में वास करेंगे। श्राद्ध यानी पितृ पक्ष का पहला श्राद्ध बुधवार 6 सितंबर को पूर्णिमा के साथ आरंभ हो रहा हैं। पिछले साल की तरह इस बार भी 15 दिन के ही श्राद्ध है। सोलह श्राद्ध 2020 में पड़ेंगे। 15 दिन के लिए हमारे पितृ घर में होंगे और तर्पण के माध्यम से तृप्त होंगे। यह समय कुल, परंपरा, पूर्वजों के श्रेष्ठ कार्यों का स्मरण करने और उनके पदचिह्नों पर चलने का है।
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व्यक्ति का अपने पितरों के प्रति श्रद्धा के साथ अर्पित किया गया तर्पण, जलदान, पिंडदान पिंड के रूप में पितरों को समर्पित किया गया भोजन श्राद्ध कहलाता है। भाद्र पक्ष की पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर श्राद्ध पक्ष आश्विन मास की अमावस्या तक होता है। पूर्णिमा का श्राद्ध उनका होता है, जिनकी मृत्यु वर्ष की किसी पूर्णिमा को हुई हो। वैसे, ज्ञात, अज्ञात सभी का श्राद्ध आश्विन अमावस्या को किया जाता है।
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मृत्यु से एक साल का समय प्रतीक्षा काल होता है। जब किसी की मृत्यु होती है तो हमको पता नहीं होता कि वह किस योनि में गया है या उनको मोक्ष मिला या नहीं। शास्त्रों के मुताबिक कभी-कभी प्रतीक्षा काल लंबा भी हो जाता है। आमतौर पर मृत्यु के एक साल की अवधि ( बरसी) तक हम मोक्ष की कामना करते हुए श्राद्ध कर्म करते हैं। इस एक साल के बाद हमारे पितृ देवताओं की श्रेणी में आ जाते हैं। श्राद्ध पक्ष वस्तुत: अपने पितरों को जल, तिल और कुश के माध्यम से आहार प्रदान करना है।
श्राद्ध पक्ष में जल और तिल से तर्पण किया जाता है। जो जन्म से लय( मोक्ष) तक साथ दे, वही जल है।तिलों को देवान्न कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि इससे ही पितरों को तृप्ति होती है।
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श्राद्ध केवल तीन पीढ़ियों तक का ही होता है। धर्मशास्त्रों के मुताबिक सूर्य के कन्या राशि में आने पर परलोक से पितृ अपने स्वजनों के पास आ जाते हैं। देवतुल्य स्थिति में तीन पीढ़ी के पूर्वज गिने जाते हैं। पिता को वसु के समान, रुद्र दादा के समान और परदादा आदित्य के समान माने गए हैं। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि मनुष्य की स्मरण शक्ति केवल तीन पीढ़ियों तक ही सीमित रहती है।
पुत्र, पौत्र, भतीजा, भांजा कोई भी श्राद्ध कर सकता है। जिनके घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं है लेकिन पुत्री के कुल में हैं तो धेवता और दामाद भी श्राद्ध कर सकते हैं। पितृ और मातृ तुल्य लोगों का श्राद्ध महिलाएं कर सकती हैं। यदि घर में कोई बेटा नहीं है तो पुत्रवत किसी के भी द्वारा महिलाएं श्राद्ध करा सकती हैं।
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इनको यम का प्रतीक माना गया है। गाय को वैतरिणी पार करने वाली कहा गया है। कौआ भविष्यवक्ता और कुत्ते को अनिष्ट का संकेतक कहा गया है।इसलिए, श्राद्ध में इनको भी भोजन दिया जाता है। पहले यम के प्रतीक कौआ, कुत्ते और गाय का अंश निकालें ( इसमें भोजन की समस्त सामग्री में से कुछ अंश डालें)
- फिर किसी पात्र में दूध, जल, तिल और पुष्प लें। कुश और काले तिलों के साथ तीन बार तर्पण करें।
ऊं पितृदेवताभ्यो नम:का जाप करें।
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यह सोलह या 15 दिन शोक के होते हैं। अपने पितरों को याद करने के होते हैं। इसलिए,इन दिनों मांगलिक कार्य, गृह प्रवेश, देव स्थापना के कार्य वर्जित हैं।
प्रतिपदा: को नाना-नानी
पंचमी: जिनकी मृत्यु अविवाहित हो गई हो।
नवमी: माता व अन्य महिलाओं का।
एकादशी व द्वादशी: पिता, पितामह
चतुर्दशी: अकाल मृत्यु हुई हो।
अमावस्या: ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों का।
आगे पढ़ें किस मान्यता के बाद महिलाएं करने लगी श्राद्ध..
पंडित दिवाकर शास्त्री के अनुसार महिलाओं का श्राद्ध करना निषेध नहीं है। भगवान राम गया जी में अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने गए। श्राद्ध करने में देरी हो गई। तभी राजा दशरथ ने दोनों हाथ फैलाकर कहा कि मेरा तर्पण कब होगा। सीता जी उस वक्त वहां थी। सीता जी ने कहा कि वह आपका श्राद्ध महिला होने के नाते कैसे कर सकती हैं? राजा दशरथ ने कहा कि महिलाएं श्राद्ध कर सकती हैं। मिट्टी उठाओ और मेरा पिंडदान करो।