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शक्तिपीठ कड़ा धाम: औरंगजेब ने मानी थी हार, पूरी होती हर मुराद
कौशाम्बी: 51शक्ति पीठों में से एक सिद्ध पीठ मां शीतला का मंदिर कौशाम्बी जिले के कडा धाम में है। इसे कडा धाम भी कहते हैं। गंगा नदी किनारे स्थापित इस मंदिर में मां शीतला के दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से भक्तगण आते है। कहा जाता है कि इस स्थान पर देवी सती का दाहिना कर (पंजा) गिरा था। जो आज भी देवी शीतला की मूर्ति के सामने कुंड में दिखता है। इस कुंड की विशेषता ये है कि इससे हर समय जल की धारा निकलती रहती है।
कुंड में दूध-जल भरने की परंपरा
इस कुंड को जल या दूध से भरवाने के लिए भक्त गण अपनी बारी का इंतजार करते है। ऐसा लोगों का मानना है कि कुंड में जल या दूध से भरवाने से मनोकामना पूर्ण होती है है। नवरात्रि में मां के दर्शन के लिए मंदिर में दिनभर भक्तों का मेला लगा रहता है।
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मां शीतला की कथा
शास्त्रों में कहा गया है कि राजा दक्ष ने यज्ञ में बेटी सती और उनके पति भगवान शंकर को नहीं बुलाया था,पति के अपमान से क्षुब्ध देवी सती यज्ञ स्थल पहुंची और हवन कुंड में कूद कर जान दे दी। उसके बाद भगवान शंकर सती के शरीर को लेकर चारों दिशाओं में धूमने लगे। इस पर विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र से सती के अंगों को कटना शुरू किया। जहां-जहां सती का अंग गिरा वह स्थान शक्तिपीठ बन गए। शीतला धाम मंदिर में भी कुंड के अंदर आज भी देवी सती का कर बना हुआ है| यहां से हर समय जल धारा निकलती रहती है। कुंड में स्थित कर की ही लोग पूजा करते है।
औरंगजेब ने मानी हार
मेले में देशभर से शक्ति उपासक आते हैं और मां की आराधना करते हैं। कट्टर मुस्लिम शासक औरंगजेब ने जब माता के मंदिर को तोड़ना चाहा तो नहीं तोड़ पाया। उसने माता की शक्ति को देखकर हार मान ली थी और मां के मंदिर के लिए सरकारी जमीन भी उपलब्ध करवाई थी। भक्तों की मान्यता है कि यहां आकर जो भी मांगा जाता है वह जरूर पूरा होता है। यहां हर समय भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि में यहां विशेष भीड़ उमड़ती है। इस समय मां के दर्शन के लिए भक्त घंटों लाइन में लगे रहते है। लोगों का कहना है कि कोई भी शुभ काम करने से पहले मां शीतला का आशीर्वाद लेने से वो पूर्ण हो जाता है।