×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

इस मंदिर में बंटता है मटन का प्रसाद, साथ में मिलता है बाटी-चोखा

suman
Published on: 31 March 2017 10:54 AM IST
इस मंदिर में बंटता है मटन का प्रसाद, साथ में मिलता है बाटी-चोखा
X

गोरखपुर: हिंदू धर्म में देवी-देवता और उनके मंदिरों का बहुत महत्व है। खुशी और गम दोनों में इस धर्म के लोग ईश्वर के प्रति अटूट आस्था रखते है। चाहे कोई भी बात हो हिंदूधर्मावलंबियों के लिए मंदिर जाना जरूरी होता है। मंदिर में मिलने वाले प्रसाद को वे अमृत की समान मानते है। जब हम मंदिर और ईश्वर की बात कर रहे है तो यहां मिलने वाले प्रसाद पर भी क्यों ना बात की जाएं।

आगे...

देश के हर कोने में भगवान के प्रति आस्था तो आपको समान दिखेगी, लेकिन वहां मिलने वाले प्रसाद में अंतर देखने को मिलता है। कहीं नारियल, कहीं लड्डू, तो कहीं-कहीं लेमेन राइस का भी प्रसाद होता है। इसी कड़ी में गोरखपुर के ऐसे ही एक मंदिर की बात कर रहे हैं। जहां मटन का प्रसाद मिलता है।

आगे...

क्यों मिलता है ऐसा प्रसाद

गोरखपुर से 20 किलो मीटर कि दूरी पर चौरी-चौरा के पास तरकुलहा देवी का मंदिर है। इसका इतिहास पुराना नहीं है, लेकिन फिर भी अंग्रेजो के शासन काल का है। ये हिंदूओं का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है इस मंदिर कि खास बात ये है कि तरकुलहा देवी को जो प्रसाद चढ़ाया जाता है वो बकरे का होता है। और इसे ही प्रसाद रूप में बांटा जाता है और इसके साथ में बाटी भी दी जाती है।

आगे...

अंग्रेज फांसी देने में रहे नाकाम

कहा जाता है कि 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के पहले यहां घने जंगल थे और यहां से गुर्रा नदी गुजरती थी। इस जंगल में डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह नदी के तट पर तरकुल (ताड़) के पेड़ के नीचे पिंडियां स्थापित कर देवी की उपासना किया करते थे। बंधू सिंह गुरिल्ला लड़ाई में माहिर थे और अंग्रेजों से नफरत करते थे ।

जब भी कोई अंग्रेज जगंल से गुजरता तो वे उसे मार डालते और उसके सर देवी मां को चढ़ा देते। जब अंग्रेजों को इस बात का पता लगा तो उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी। 12 अगस्त 1857 को गोरखपुर में अली नगर चौराहा पर सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटकाया गया। कहा जाता है कि अंग्रेजों ने उन्हें 6 बार फांसी पर चढ़ाने की कोशिश की, लेकिन वे नाकाम रहे।

आगे...

कई मंदिरों चढ़ता था बकरे की बलि

हालांकि देश में कई मंदिर थे जिनमें बकरे की बलि चढ़ाई जाती थी,मटन का प्रसाद दिया जाता था। धीरे-धीरे सब जगह बंद हो गया। लेकिन तरकुलहा देवी के मंदिर में बंधू सिंह द्वारा चलाई गई बलि कि परंपरा आज भी जारी है फर्क बस इतना है कि उस समय अंग्रेजों की बलि चढ़ाई जाती थी और आज के समय में बकरे कि बलि चढ़ाई जा रही है। मंदिर में बलि चढ़ाने की परंपरा को रोकने के लिए अदालत में केस चल रहा है।



\
suman

suman

Next Story