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रहस्य: इस मंदिर से होता है बारिश का पूर्वाभास, करता है ये इस तरह मौसम विभाग का काम

suman
Published on: 7 July 2018 6:22 AM GMT
रहस्य: इस मंदिर से होता है बारिश का पूर्वाभास, करता है ये इस तरह मौसम विभाग का काम
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कानपुर: वर्ल्ड के किसी भी कोने में चले जाइए, लेकिन धार्मिक मान्यताओं का जितना प्रभाव इंडिया में देखने को मिलता है। उतना शायद ही कहीं मिले। यहां हर बात में रहस्य और रोमांच की झलक देखने को मिलती है। यहां एक ऐसी ही जगह उत्तर प्रदेश के कानपुर जनपद में भगवान जगन्नाथ का मंदिर है जो अपनी एक अनोखी विशेषता और चमत्कार के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर की विशेषता ये है कि ये मंदिर बारिश होने की सूचना 7 दिन पहले ही दे देता है। आप शायद यकीन न करें, लेकिन यही हकीकत है।

बेंहटा गांव मेें है मंदिर

कानपुर भीतरगांव विकासखंड मुख्यालय से 3 किलोमीटर पर बेंहटा गांव मेें ये मंदिर है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर की खासियत ये है कि बरसात से 7 दिन पहले इसकी छत से बारिश की कुछ बूंदे अपने आप ही टपकने लगती हैं। इस रहस्य को जानने के लिए कई बार कोशिश की गई हैं पर तमाम सर्वेक्षणों के बाद भी मंदिर के निर्माण और रहस्य का सही समय पुरातत्व वैज्ञानिक पता नहीं लगा सके। बस इतना ही पता लग पाया कि मंदिर का अंतिम जीर्णोद्धार 11वीं सदी में हुआ था।

मंदिर की मूर्तियां काले चिकने पत्थर की

इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलदाऊ और बहन सुभद्रा के साथ है इनकी मूर्तियां काले चिकने पत्थर की हैं। वहीं सूर्य और पदमनाभम भगवान की भी मूर्तियां हैं। मंदिर की दीवारें 14 फीट मोटी हैं। अभी के समय में मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है। मंदिर से वैसी ही रथ यात्रा निकलती है जैसी पुरी उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर से निकलती है।

मौसमी बारिश के समय मानसून आने के एक सप्ताह पहले ही मंदिर के छत में लगे मानसूनी पत्थर से उसी घनत्वाकार की बूंदें टपकने लगती हैं, जैसे ही बारिश शुरू होती है वैसे ही पत्थर सूख जाता है।

मंदिर निर्माण के समय में मतभेद

मंदिर के पुजारी दिनेश शुक्ल का कहना है कि कई बार पुरातत्व विभाग और आईआईटी के वैज्ञानिक आए और जांच की। न तो मंदिर के वास्तविक निर्माण का समय जान पाए और न ही बारिश से पहले पानी टपकने की पहेली सुलझा पाए हैं।हालांकि मंदिर का आकार बौद्ध मठ जैसा है। जिसके कारण कुछ लोगों की मान्यता है कि इसको सम्राट अशोक ने बनवाया होगा, परंतु मंदिर के बाहर बने मोर और चक्र की आकृति से कुछ लोग इसको सम्राट हर्षवर्धन से जोड़ कर देखते हैं।

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