12 अप्रैल से 10 मई तक करें इस मंत्र का जाप, मिलेगा विष्णु लोक में स्थान

suman
Published on: 12 April 2017 9:51 AM GMT
12 अप्रैल से 10 मई तक करें इस मंत्र का जाप,  मिलेगा विष्णु लोक में स्थान
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लखनऊ: हिंदू धर्म और पंचांग के दूसरे महीने का नाम वैशाख है। पुराणों के अनुसार, इस महीने में जल दान करने यानी प्यासों को पानी पिलाने से भगवान विष्णु, ब्रह्मा व शिव तीनों प्रसन्न हो जाते हैं। इस बार वैशाख मास का प्रारंभ 12 अप्रैल, बुधवार से हो रहा है, जो 10 मई, बुधवार तक रहेगा। इस महीने के बारे में धर्म ग्रंथों में लिखा है कि-

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न माधवसमो मासों न कृतेन युगं समम्।

न च वेदसमं शास्त्रं न तीर्थं गंगया समम्।।

(स्कंदपुराण, वै. वै. मा. 2/1)

अर्थात वैशाख के समान कोई महीना नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं है, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। इसी मास के शुक्रवार 14 अप्रैल को वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी है। इस दिन भगवान श्रीगणेश को खुश करने के लिए उपवास किया जाता है। शाम को चंद्रदेव के साथ पूजा की जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन पूजा करने से बैड लक दूर हो सकता है।

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स्वयं ब्रह्माजी ने वैशाख को सब मासों से सर्वोत्तम है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला इसके समान दूसरा कोई मास नहीं है। जो भी इस मास में सूर्योदय से पहले स्नान करता है, उसपर भगवान विष्णु की विशेष कृपा रहती है। सभी दानों से जो पुण्य होता है और सब तीर्थों में जो फल मिलता है, उसी को मनुष्य वैशाख मास में केवल जलदान करके प्राप्त कर लेता है।

अगर कोई इस मास में जलदान नहीं कर सकता। यदि वह दूसरों को जलदान का महत्व समझाए, तो भी उसे श्रेष्ठ फल प्राप्त होता है। जो मनुष्य इस मास में प्याऊ लगाता है, वह विष्णु लोक में स्थान पाते हैं।

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मंत्रों का ध्यान

एक साल में 12 महीने होते हैं। प्रत्येक महीने के स्वामी एक विशेष देवता माने गए हैं। उनके पूजन की विधि भी अलग बताई गई है। उसके अनुसार वैशाख मास के स्वामी भगवान मधुसूदन हैं। धर्मानुसार सूर्यदेव के मेष राशि में आने पर भगवान मधुसूदन को प्रसन्न करने के लिए वैशाख मास में स्नान का व्रत लेना चाहिए। स्नान के बाद भगवान मधुसूदन की पूजा करना चाहिए। इसके बाद भगवान मधुसूदन से इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए-

मधुसूदन देवेश वैशाखे मेषगे रवौ।

प्रात:स्नानं करिष्यामि निर्विघ्नं कुरु माधव।।

वैशाखे मेषगे भानौ प्रात:स्नानपरायण:।

अर्ध्य तेहं प्रदास्यामि गृहाण मधुसूदन।।

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