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जानिए वो राज ! सरदार पटेल क्यों नहीं चाहते थे कश्मीर बने इंडिया का हिस्सा
लखनऊ : बड्डे बॉय सरदार वल्लभ भाई पटेल को गिफ्ट में पीएम मोदी ने दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति दी है। 1950 में सरदार का देहांत हुआ था। लेकिन सरदार आज भी प्रासंगिक हैं। पटेल का नाम जब भी किसी की जुबान पर आता है नेहरू का ज़िक्र अपने आप हो जाता है। तो परंपरा का निर्वहन करते हुए हम भी कुछ बता देते हैं।
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लेकिन हम तथ्यों के साथ बात करेंगे। पहले आप ये जान लीजिए कि इंडिया के अंतिम वायसराय माउंटबेटन के राजनैतिक सलाहकार थे वी पी मेनन। इन्होने एक किताब लिखी- द स्टोरी ऑफ द इन्टिग्रेशन ऑफ द इंडियन स्टेट्स। हम इसी के कश्मीर वाले चैप्टर की बात करेंगे। पेज नंबर नोट कीजिए 393 के आखिरी पैराग्राफ से पेज नंबर 394।
माउंटबेटन रियासतों के इंडिया और पाकिस्तान के साथ विलय पर बात कर रहे थे। क्षेत्रफल के लिहाज से कश्मीर बड़ी रियासत थी। वहां एक मसला था कि आबादी बहुसंख्यक मुसलमानों की थी, और राजा हिंदू था। राजा हरिसिंह से मिलने माउंटबेटन कश्मीर गए। इस दौरान उन्होंने राजा से कहा कि जम्मू-कश्मीर का आजाद रहना व्यावहारिक नहीं है। ब्रिटिश सरकार जम्मू-कश्मीर को डोमिनियन स्टेट का दर्जा नहीं दे सकती। 15 अगस्त, 1947 के पहले या फिर बाद में वो इंडिया या पाकिस्तान के साथ विलय कर सकते हैं। जिसके साथ भी विलय होगा वो देश जम्मू-कश्मीर को अपना मान उसकी सुरक्षा करेगा।
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माउंटबेटन ने हरिसिंह से कहा कि वो पाकिस्तान के साथ विलय करते हैं तो इंडिया कोई ऐतराज नहीं होगा। हरिसिंह को आश्वासन देते हुए माउंटबेटन ने ये भी कहा कि सरदार पटेल ने उन्हें ये भरोसा दिया है।
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माउंटबेटन ने हरिसिंह से सरदार को लेकर जो बात कही उसके मुताबिक रियासतों के विलय के मुद्दे पर नेहरू से ज्यादा पटेल की चल रही थी। पटेल कश्मीर को भारत में मिलाने के इच्छुक इसलिए नहीं थे। क्योंकि इसकी आबादी में मुसलमान बहुसंख्यक थे। बंटवारे की शर्तों के मुताबिक मुसलमानों के लिए पाकिस्तान, हिंदुओं के लिए हिंदुस्तान। लेकिन सभी मुसलमान नहीं, सिर्फ वो मुस्लिम जो पाकिस्तान जाना चाहें। इसीलिए हरिसिंह इंडिया के साथ रहेंगे या पाकिस्तान ये निर्णय पटेल ने हरिसिंह पर छोड़ दिया था। पटेल के मुताबिक राजा को तय करना चाहिए कि उन्हें इंडिया के साथ जाना है या फिर पाकिस्तान के।
उम्मीद है इसके बाद आपके सभी शक मिट गए होंगे।