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Tripura Assembly Election 2023: कौन हैं प्रद्योत बिक्रम, जिन्हें कहा जा रहा है त्रिपुरा का किंगमेकर
Tripura Assembly Election 2023: उत्तर-पूर्वी राज्य त्रिपुरा में चुनावी बिगुल बज चुका है। राज्य में विधानसभा चुनाव के लिए अब 1 महीने से भी कम का समय रह गया है। चुनाव में मुख्य लड़ाई सत्तारूढ़ बीजेपी गठबंधन और सीपीएम-कांग्रेस गठबंधन के बीच है।
Tripura Assembly Election 2023: उत्तर-पूर्वी राज्य त्रिपुरा में चुनावी बिगुल बज चुका है। राज्य में विधानसभा चुनाव के लिए अब 1 महीने से भी कम का समय रह गया है। चुनाव में मुख्य लड़ाई सत्तारूढ़ बीजेपी गठबंधन और सीपीएम-कांग्रेस गठबंधन के बीच है। इन दोनों बड़े गठबंधन के अलावा एक और पार्टी मैदान में है, जिसे लेकर किंगमेकर मान रहे हैं। इस पार्टी का नाम है टिपरा मोथा। टिपरा मोथा ने बहुत ही कम समय में दोनों प्रमुख गठबंधनों को अपनी सियासी ताकत का अहसास करा दिया है।
टिपरा मोथा के जरिए त्रिपुरा राजघराना एकबार फिर राज्य में अपनी खोई जमीन वापस पाने के जुगत में है। पार्टी प्रमुख और त्रिपुरा राजवंश के वारिस प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देबबर्मन की लोकप्रियता हाल के दिनों में काफी बढ़ चुकी है। उनकी रैलियों में लोगों की भारी भीड़ उमड़ रही है। देबबर्मन त्रिपुरा की राजनीति में आदिवासियों का नेतृत्व करने का दावा कर रहे हैं। उनकी पार्टी ग्रेटर टिपरालैंड की मांग कर रही है।
कभी राहुल गांधी के यूथ ब्रिगेड में थे शामिल
त्रिपुरा के शाही परिवार के वंशज प्रद्योत बिक्रम युवा जरूर हैं, लेकिन वो कोई सियासत के नए खिलाड़ी नहीं हैं। उन्होंने कांग्रेस में एक लंबी राजनीतिक पारी खेली है। एक समय उनकी गिनती कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के टीम के युवाओं नेताओं के तौर पर होती थी। सिंधिया और पायलट जैसे नेताओं के कैंप में वो भी शामिल थे। 2019 में उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी, उस दौरान वे त्रिपुरा कांग्रस के अध्यक्ष हुआ करते थे।
प्रद्योत बिक्रम को राजनीति विरासत में मिली है। उनके पिता किरीट बिक्रम देबबर्मा तीन बार के सांसद थे और मां बिभु कुमारी कांग्रेस की विधायक रह चुकी हैं। वह त्रिपुरा सरकार में राजस्व मंत्री के तौर पर काम भी कर चुकी हैं। राज्य में बीजेपी के उभरने से पहले सीपीएम के विरूद्ध कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा प्रद्योत बिक्रम ही थे। उनका जन्म दिल्ली में हुआ था लेकिन वह अगरतला में रहते हैं। राजनीति में आने से पहले वह पत्रकारिता करते थे।
प्रद्योत बिक्रम ने ऐसे दिखाई अपनी ताकत
कांग्रेस में लंबी पारी खेलने के बाद प्रद्योत बिक्रम ने टिपरा मोथा के रूप में अपनी एक अलग पार्टी बनाई। इसे शुरू में गंभीरता से नहीं लिया जा रहा था। लेकिन अप्रैल 2021 में उनकी पार्टी ने आदिवासी क्षेत्र स्वशासी जिला परिषद के चुनाव में प्रचंड जीत हासिल कर सियासी हलकों में खलबली मचा दी थी। इस चुनाव में टिपरा मोथा को 28 में से 18 सीटों पर जीत मिली थी।
सत्तारूढ़ बीजेपी को इस चुनाव में शर्मनाक हार तब झेलनी पड़ी, जब आदिवासियों की पार्टी होने का दावा करने वाली इंडिजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा उसके साथ थी। इस नतीजे ने त्रिपुरा की राजनीति में टिपरा मोथा को स्थापित कर दिया और प्रद्योत बिक्रम राज्य में आदिवासियों के बड़े नेता के तौर पर उभऱे।
आदिवासी वोट प्रद्योत बिक्रम की ताकत
त्रिपुरा में एसटी समुदाय की आबादी 32 फीसदी है। इन्हें त्रिपुरा की सत्ता की चाबी कहा जाता है। बगैर आदिवासी समुदाय के समर्थन के सत्ता हासिल करना मुश्किल है। राज्य की कुल 60 में से 20 सीटें ट्रायबल्स के लिए आरक्षित है। शेष 40 सीटों में भी कुछ सीटों पर इनकी प्रभावी भूमिका है। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 25 वर्षों का वामपंथी शासन इसलिए उखाड़ पाई क्योंकि आदिवासी ने उसे जमकर वोट किया था। बीजेपी और आईएफटी गठबंधन को विधानसभा चुनाव में 20 सीटों पर जीत मिली थी।
पिछले दो-तीन साल में प्रद्योत बिक्रम आदिवासी समुदाय के बीच काफी लोकप्रिय हो गए हैं। उनके द्वारा उठायी जा रही ग्रेटर टिपरालैंड की मांग से आदिवासी समुदाय काफी प्रभावित है। वह अपने भाषाणों में स्वदेशी त्रिपुरी लोगों की अधिकारों की बात करते हैं, जिससे ट्रायबल उनसे खुद को कनेक्ट कर लेता है। आदिवासी बहुल त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद में उनकी विराट जीत इस बात की तस्दीक भी करती है।
बीजेपी और कांग्रेस अपने खेमे में लाने में जुटे
आदिवासी समुदाय पर जबरदस्त पकड़ रखने के कारण टिपरा मोथा के प्रमुख प्रद्योत बिक्रम देबबर्मन का सियासी कद राज्य में काफी बढ़ चुका है। 44 वर्षीय इस युवा नेता को अपने पाले में लाने के लिए सत्तारूढ़ बीजेपी और विपक्षी कांग्रेस पूरा जोर लगा रहे हैं। असम के सीएम और पूर्वोतर में बीजेपी के इंचार्ज हिमंत बिस्वा सरमा उनके साथ दिल्ली में मुलाकात कर चुके हैं।
दरअसल, बीजेपी जनजातीय क्षेत्र के चुनाव परिणाम को देखते हुए केवल आईएफटी के सहारे चुनाव के दौरान आदिवासियों के बीच नहीं जाना चाहती। आईएफटी के कुछ विधायक और नेता टिपरा मोथा ज्वाइन भी कर चुके हैं। वहीं, कांग्रेस पुराने संबंधों का हवाला देकर उन्हें साथ लाने की कोशिश में जुटी हुई है। कांग्रेस के बड़े नेता भी उनसे संपर्क साधे हुए हैं।
प्रद्योत बिक्रम की क्या है डिमांड
टिपरा मोथा के प्रमुख प्रद्योत बिक्रम ने दोनों दलों के नेताओं से मुलाकात के दौरान अपना रूख स्पष्ट कर दिया है। उनका कहना है कि जब तक जनजातीय समूहों के लिए अलग टिपरालैंड राज्य की उनकी मांग को लिखित रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा, हम किसी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। बिक्रम ने कहा कि उनकी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में अकेले लड़ने में सक्षम है।
विधानसभा चुनाव 2018 के नतीजे
2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पहली बार त्रिपुरा में जीत दर्ज कर सरकार बनाई। 60 विधायकों वाली त्रिपुरा विधानसभा में बीजेपी को 36 और उसकी सहयोगी पार्टी आईएफटी को 8 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं, 25 सालों से सत्ता में काबिज सीपीएम 16 सीटों पर सिमट गई थी। कांग्रेस का तो खाता तक नहीं खुल पाया था।
हालांकि, उसका वोट प्रतिशत अच्छा था। आगामी विधानसभा चुनाव सीपीएम और कांग्रेस ने साथ मिलकर लड़ने का फैसला किया है, जिससे बीजेपी परेशान है। क्योंकि दोनों दलों का मत प्रतिशत जोड़ दें तो ये करीब 50 प्रतिशत को छू लेता है। यही वजह है कि बीजेपी टिपरा मोथा के प्रमुख प्रद्योत बिक्रम को अपने साथ लाना चाहती है। त्रिपुरा में 16 फरवरी को वोटिंग होगी और नतीजे 2 मार्च को आएंगे।