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Tripura: त्रिपुरा में चुनावों से पहले भाजपा को कांग्रेस की चुनौती, फिर दलबदल की संभावना

Tripura: त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव साल भर बाद होने हैं लेकिन राजनीतिक सेंधमारी अभी से शुरू हो गई है। पूर्व मंत्री सुदीप रॉय बर्मन और उनके करीबी सहयोगी आशीष कुमार साहा के कांग्रेस में शामिल होने के साथ, त्रिपुरा में सरकार बनाने के बाद से भाजपा के तीन विधायक कम हो चुके हैं।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Deepak Kumar
Published on: 9 Feb 2022 7:16 PM IST
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Tripura: त्रिपुरा में चुनावों से पहले भाजपा को कांग्रेस की चुनौती

Tripura Election: त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव (Tripura assembly elections) साल भर बाद होने हैं लेकिन राजनीतिक सेंधमारी अभी से शुरू हो गई है। पूर्व मंत्री सुदीप रॉय बर्मन (Former Minister Sudip Roy Barman) और उनके करीबी सहयोगी आशीष कुमार साहा के कांग्रेस में शामिल होने के साथ, त्रिपुरा में सरकार बनाने के बाद से भाजपा के तीन विधायक कम हो चुके हैं। दो महीने पहले, एक अन्य भाजपा विधायक आशीष दास (BJP MLA Ashish Das) ने इस्तीफा दे दिया था और तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे।

2018 में भाजपा ने 36 सीटें जीती थीं और अब 33 विधायक बचे हैं और तने के बाद, यह केवल तीन विधायकों को छोड़ देता है। विधानसभा में आधे रास्ते के निशान के साथ, भाजपा गठबंधन अपने सहयोगी इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी, 8 विधायक) के साथ किसी तरह आधे निशान से ऊपर है।

पिछले चार वर्षों में भाजपा ने इसी तरह की अशांति के कई एपिसोड देखे हैं। दिल्ली में डेरा डाले हुए बागी विधायक मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब को बदलने की मांग के अलावा पार्टी और सरकार की भीतर से आलोचना करते रहे हैं। इस तरह के ज्यादातर असंतोष के केंद्र में बर्मन और साहा थे।

पांच बार के विधायक और राज्य के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक, बर्मन को 2019 में अज्ञात कारणों से स्वास्थ्य मंत्री के पद से हटा दिया गया था। बर्मन ने कहा है कि कई अन्य भाजपा नेता और विधायक पार्टी से जाने वाले हैं। उनका दावा है कि यह सरकार अल्पमत में हो जाएगी। दूसरी ओर भाजपा ने बर्मन और तीन बार के विधायक साहा पर सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश रचने का आरोप लगाया है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष माणिक साहा ने कहा है कि बर्मन का ड्रामा काफी समय से चल रहा है। उन्होंने न जाने कितनी बार पार्टियां बदली हैं। हमें इसकी बिल्कुल भी चिंता नहीं है।

कांग्रेस की डूबती नौका

जब से भाजपा ने राज्य में पैर जमाया है तबसे कांग्रेस की नैया डूबती जा रही थी लेकिन स्थ, बर्मन के प्रवेश के साथ निश्चित रूप से पार्टी को कुछ सहारा मिला है। बर्मन साढ़े पांच साल पहले पांच अन्य विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़कर तृणमूल में चले गए थे फिर भाजपा का दामन थाम लिया था। बर्मन ने दावा किया है कि कांग्रेस का वोट शेयर जो 2018 में भाजपा को मिला था, वह उसके पास वापस आ जाएगा। उन्होंने कहा है कि 2023 में त्रिपुरा में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद हमारी तपस्या पूरी होगी।

राह आसान नहीं

हालाँकि, कांग्रेस की राह आसान नहीं है। सीपीएम के जितेंद्र चौधरी और टीएमसी के सुबल भौमिक दोनों ने बर्मन के फैसले का स्वागत तो किया है, लेकिन ये भी स्पष्ट किया है कि वे भाजपा सरकार को गिराने की जल्दी में नहीं हैं। चौधरी ने कहा कि सीपीएम का रुख कांग्रेस की पहल पर निर्भर होगा। सुबल भौमिक ने कहा है कि तृणमूल को विधायकों को खरीदकर सरकार को उखाड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं है।

पिछले कुछ चुनाव राज्य में भाजपा और बाकी पार्टियों के बीच बढ़ती खाई का संकेत देते हैं। भाजपा ने 2018 में 43 फीसद वोटों के साथ जीत हासिल की थी। जबकि 2013 में उसे सिर्फ 1.87 फीसदी वोट मिले थे। भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनावों में 49 फीसदी वोट और नवंबर के नागरिक चुनावों में लगभग 60 फीसदी वोट हासिल किए।

सीपीएम का वोट

सीपीएम का वोट शेयर 2013 में 53.80 फीसदी से 2018 में 45.46 फीसदी और स्थानीय निकाय चुनावों में 18.13 फीसदी तक गिर गया है। 2019 के लोकसभा चुनावों में, यह भाजपा और कांग्रेस से पीछे रह गया था।

कांग्रेस का शेयर

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी गिरावट 2013 में लगभग 45.75 फीसदी से गिरकर 2018 में 1.86 फीसदी हो गई। यह दर्शाता है कि भाजपा ने उसके वोट छीन लिए। त्रिपुरा शाही परिवार से ताल्लुक रखने वाले प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा की राज्य प्रमुख के रूप में नियुक्ति ने 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को लगभग 27 फीसदी वोटों तक स्थिर करने में मदद की, लेकिन उनके जाने के बाद, कांग्रेस शहरी निकाय चुनाव में 1 फीसदी से भी कम हो गई।

अब बर्मन की वापसी से कांग्रेस को बूस्ट मिलेगा लेकिन उनको पार्टी के भीतर से चुनौती हो सकती है। उनके जाने के बाद उनके समर्थकों और अन्य लोगों के बीच प्रदेश कांग्रेस कार्यालय के अंदर हुए विवाद सहित काफी विद्वेष का सामना करना पड़ा था। कुछ पर्यवेक्षकों के अनुसार भाजपा से मोहभंग का सबसे बड़ा लाभ वामपंथियों को हो सकता है, जिनके पास एक प्रतिबद्ध कैडर है। दूसरी ओर, कांग्रेस का वोट पार्टी और देबबर्मा द्वारा गठित टीआईपीआरए मोथा के बीच बंट जाएगा। मुख्यमंत्री के खेमे का कहना है कि विद्रोहियों को खदेड़ने के बाद अब वह वास्तव में मजबूत हो गए हैं। लेकिन पार्टी को अपनी कमजोरी का एहसास है, क्योंकि उसके कैडर के एक बड़े हिस्से में अन्य पार्टियों से आये हुए लोग शामिल हैं।

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