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जनादेश के संदेश समझें बयानवीर

Dr. Yogesh mishr
Published on: 25 Dec 2018 3:44 PM IST
जैसे-जैसे चुनाव सिर पर आते हैं, बड़े-बड़ों की नीति और नियति बदल जाती है। किसी का भी चुनाव में दिमाग फिर सकता है, यह मानकर चला जाना चाहिए। चुनाव में किसी के चश्में से कुछ भी दिख सकता है। किसी को चुनाव के आसपास धर्म, जाति, राष्ट्र और धर्मनिरपेक्षता कभी भी खतरे में नजर आ सकती है। चुनाव में कोई कुछ भी दावा कर सकता है। जरूरी नहीं कि वह नेता ही हो। नेता सबसे बड़ा अभिनेता होता है। क्योंकि उसे हर तरह के मंच पर अभिनय करना होता है। पांच राज्यों के चुनावी नतीजों के बाद तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकारों ने यह बता दिया है कि 2019 भाजपा के लिए 2014 की तरह ‘वाॅक ओवर‘ वाला नहीं होगा। ऐसे में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों का सिर फिर जाना लाजमी है। तभी तो हनुमान जी हिंदू-मुसलमान हो रहे हैं। जाट, दलित और जनजाति के बताये जा रहे हैं। नामचीन अभिनेता नसीरुद्दीन शाह को अपने बच्चों के लिए भारत सुरक्षित नजर नहीं आ रहा है। गाय के लिए खुद ही यह समझ पाना मुश्किल हो गया है कि वह दूध ज्यादा देती है या वोट ज्यादा। जिसे देखिए वह अपने बयान के गुमान में है। उसके बयान कितनों का सीना चीर रहे हैं। इसकी फिक्र ही नहीं है किसी को।

अजमेर लिटरेचर फेस्टिवल में शिरकत करने के ठीक पहले नसीरुद्दीन शाह ने अपनी अभिव्यक्ति की आजादी का उपयोग इस कदर किया कि भारतीय लोकतंत्र के सामने ही सवाल खड़ा हो गया। केंद्र और उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार प्रचंड बहुमत से चुनकर आई है। उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में पुलिस अफसर की हत्या से ज्यादा राज्य सरकार द्वारा गाय को तरजीह दिये जाने की बात रखते हुए नसीरुद्दीन ने कहा कि मुझे फिक्र होती है कि अगर मेरे बच्चों को भीड़ ने घेर लिया और पूछा कि तुम हिंदू हो या मुसलमान तो उनके पास कोई जवाब नहीं होगा। इन बातों से उन्हें डर नहीं लगता, गुस्सा आता है। समझ में नहीं आता कि आखिर अगर भीड़ को नसीरुद्दीन शाह के बच्चे यह बता दें कि वह मुसलमान हैं। तो क्या कहर बरप जाएगा। क्योंकि बुलंदशहर में मरने वाला पुलिस अफसर सुबोध सिंह और उसकी हत्या के आरोप में गिरफ्तार किये गये लोगों में कोई भी हिंदू-मुसलमान नहीं है। भारत के दर्शक यह जानते हैं कि नसीरुद्दीन शाह मुसलमान हैं। फिर भी उन्हें, उनकी कला को शिद्दत से सराहा। लेकिन आज उन्हें मुसलमान होने के ढाल और हथियार की जरूरत पड़ रही है? यह समाज के लिए भी चिंता का सबब है। पिछले लोकसभा चुनाव के आसपास भी तमाम लोगों को भारत में भय दिख रहा था। सुपर स्टार आमिर खान की पत्नी को भारत में असुरक्षा का बोध हो रहा था!
यह बोध निरर्थक निकला। आधारहीन निकला। नसीर अपनी बात को एक चिंतित भारतवासी की आवाज बता रहे हैं। पर शायद उन्हें यह नहीं पता है कि जिस बुलंदशहर में खौफ का खेल हुआ वहीं से पन्द्रह लाख मुसलमान अमन की आगोश में इज्तेमा करके अपने घरों को सकुशल लौटे। वहां लोगों ने अपनी चद्दरें नमाज पढ़ने के लिए दीं। जहां यह आयोजन था, वहां आसपास गुर्जर, ब्राह्मण और दलित रहते हैं। गुर्जर महासभा के दिनेश गुर्जर ने लोगों को खाना खिलवाया, मस्जिदों में नमाज अता करवाई। उनके साथ हिंदू समाज के ब्राहमण और दलित भी थे। नसीर को भारत की तासीर नहीं पता। यहां हर धर्म और संप्रदाय के लोग हैं। मुसलमानों के 72 फिरके दुनिया के किसी मुस्लिम देश में भी एक साथ नहीं हैं। पारसी और यहूदी भी भारत में हैं। गुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश, सैयद वंश, लोदी वंश और मुगल वंश के दौरान भारतवासियों के साथ बहुत अन्याय हुआ। धर्मांतरण कराया गया। लेकिन हिंदू-मुस्लिम की शुरुआत अंग्रेजों के शासन से हुई। सहिष्णुता, असहिष्णुता का विवाद स्वहितपोषी नहीं होना चाहिए। अजहरूद्दीन जब फिक्सिंग की लपेट में आये तब उन्हें लगा कि मुसलमान होने का दंड है। चिंता के लिए देश में ढेर सारे विषय हैं। किसान परेशान हंै। नौजवान रोजगार के लिए हैरान है। अर्थव्यवस्था अपनी गति नहीं पकड़ पा रही है। विकास अभी तक ऐसा नहीं हो पाया कि देश का कोई जिला संतृप्त हुआ हो। पढ़ाई, दवाई, कमाई, सिंचाई, बिजली, सड़क, पानी इन सबके लिए संघर्ष आजादी के बाद से जारी है। लेकिन इस पर कोई स्यापा नहीं पीटा जा रहा है।
खैर, सिर्फ नसीरुद्दीन को ही क्यों जिम्मेदार ठहरायें। एक बयान से अगर कई दिन की सुर्खियां मिल जाती हैं तो इससे आसान क्या है। यही तो राजनेता भी कर रहे हैं। भाजपा के एमएलसी बुक्कल नवाब- इमरान, रहमान, रमजान, कुर्बान के मार्फत हनुमान से गजब का रिश्ता बनाते हुए उन्हें मुसलमान बताते हैं। हमारे धर्मगुरु भी कम ज्ञानी नहीं हैं। वह इसकी काट देते हैं कि जब हनुमान जी थे तब मुस्लिम धर्म का अविर्भाव भी नहीं हुआ था। भाजपा नेता लक्ष्मी नारायण चैधरी हनुमान जी को इसलिए जाट मानते हैं क्योंकि उनके मुताबिक वे जाटों की तरह बगैर बात के दूसरे के काम में कूद पड़ते हैं। माता सीता के लिए उन्होंने भगवान राम के दास की तरह कूद के काम किया। सांसद कीर्ति आजाद हनुमान को चाइनीज बताने लगते हैं। अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंद कुमार साय के मुताबिक जनजातियों में हनुमान गोत्र होता है। इसलिए हनुमान जी जनजाति के थे। भाजपा सांसद सत्यपाल सिंह भी कोरस गाते हुए कहते हैं कि उस समय जाति व्यवस्था नहीं थी। जैन संत इसकी व्याख्या में सुर मिलाते हैं कि जैन दर्शन के अनुसार चक्रवर्ती, नारायण, प्रतिनारायण, बलदेव, कामदेव और तीर्थंकर के माता-पिता सभी क्षत्रिय हुआ करते हैं। जैन धर्म में 24 कामदेव हैं। इनमें ही हनुमान का नाम भी है। इस लिहाज से हनुमान जी क्षत्रिय और जैन हुए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हनुमान को दलित बताने के कोरस का आगाज किया था।
हनुमान जी धर्म संकट में हैं। अपना सीना चीर कर अब नहीं दिखा सकते। देश के लोग भी नसीरुद्दीन न शाह को सीना चीर कर नहीं दिखा सकते। दिखाना भी नहीं चाहिए। क्योंकि जो कुछ भी हो रहा है वह जन आस्थाओं का घोेर अपमान है। लोकतंत्र के फैसले का अनादर है। बुलंदशहर में इज्तेमा के दौरान जो साझी विरासत और साझी संस्कृति की नजीर पेश की गई, उससे मुंह चुराना है। किसी एक आदमी की सुरक्षा और असुरक्षा का रिश्ता देश की साझी संस्कृति और विरासत की बलिवेदी पर नहीं चढ़ाया जाना चाहिए। वह भी तब जब ऐसे बोध चुनावी समय में फितूर बनकर निकलते हों।
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Dr. Yogesh mishr

Dr. Yogesh mishr

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