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UP विधानसभा चुनाव: कांग्रेस के उत्थान की महारणनीति है सपा से समझौता

aman
By aman
Published on: 18 Jan 2017 3:28 PM GMT
UP विधानसभा चुनाव: कांग्रेस के उत्थान की महारणनीति है सपा से समझौता
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Anurag Shukla

लखनऊ: यूपी में अपनी सियासी जमीन तलाश सही कांग्रेस के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) से समझौता सिर्फ सीटों की संख्या नहीं बल्कि उसके राजनीतिक वजूद का पर्याय बन गया है। यह माना जा रहा है कि कांग्रेस के लिए यह समझौता सिर्फ किसी संख्या पर एकमत होने तक नहीं बल्कि ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक लाभ उठाने का सबब है।

कांग्रेस अपनी तरफ से 105 सीटें मांग रही है और सपा उसे अधिकतम 90 सीट देने को तैयार है। बीच के रास्ते वाले फार्मूले पर भी बातचीत चल रही है। जिसके तहत 90 सीटें कांग्रेस को दी जाए और 15 कांग्रेसी सपा की साइकिल के सवार बनें। यानी 15 कांग्रेसी प्रत्याशी सपा के सिंबल पर चुनाव लडेंगे। कांग्रेसियों की मानें तो यह कांग्रेस के वजूद की लड़ाई है और इसके लिए कांग्रेसी थिंक टैंक ने एक बड़ी रणनीति बनाई है।

महाउत्थान की रणनीति

कांग्रेस को यूपी की सियासत में गुमनामी से बाहर आना है। इसके लिए उसे अखिलेश के साथ से बेहतर विकल्प नहीं मिल सकता। सपा के युवा मुख्यमंत्री का चेहरा और उनके विकास की छवि को कांग्रेस भुनाना चाहती है। मगर कांग्रेस की चाहत यहीं तक सीमित नहीं है। उसने अपने राजनीतिक वजूद के बढोत्तरी की 'महारणनीति' बनाई है।

ये है कांग्रेस की रणनीति

-कांग्रेस अपने जीते हर विधायक की सीट मांग रही है। यह संख्या 29 है।

-कांग्रेस हर वो सीट चाहती है जिस पर वह साल 2012 में दूसरे स्थान पर थी। यह संख्या 32 है।

-कांग्रेस ने हर जिले में कम से कम से एक और कुछ जिलो में 2-3 सीटें भी मांगी है।

-इसके जरिए हर जिले में कांग्रेस को जिंदा करने में मदद मिलेगी।

-जिससे हर जिले में कांग्रेस के वोट बैंक को बिखरने से बचाया जाएगा।

-वहीं जिले भर के कांग्रेसी और काडर को 'एक्टिव' किया जाएगा।

-इसके जरिए कांग्रेसी वोट बैंक का बिखराव भी रोका जाएगा।

कांग्रेस के लिए अभी नहीं तो कभी नहीं

दरअसल, कांग्रेस पिछले तीन दशक से यूपी में सिर्फ एक रस्मी रवायत भर बनकर रह गई है। कांग्रेस के नारे '27 साल यूपी बेहाल' ने ना तो लोगों से कनेक्ट किया और न ही राहुल की 'खाट पंचायत' ने दूसरे दलों की खाट नहीं खड़ी की है। दिल्ली की सीएम यानी शीला दीक्षित के ब्राह्मण चेहरे का असर कुछ खास नहीं दिखा और चुनाव प्रबंधक प्रशांत किशोर (पीके) की कोशिशें परवान नहीं चढ़ सकीं। ऐसे में पीके ने आजमाए हुए फार्मूले ग्रांड अलायंस (महागठबंधन) पर भरोसा किया है। इसके जरिए मिलने वाले हर लाभ को लेने में कांग्रेस बिलकुल नहीं चूकने वाली।

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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