UP में पिता के प्रयोग को दोहरा रहे हैं अखिलेश यादव, कांग्रेस को साथ लेकर खेला बड़ा दांव

aman
By aman
Published on: 29 Jan 2017 10:32 AM GMT
UP में पिता के प्रयोग को दोहरा रहे हैं अखिलेश यादव, कांग्रेस को साथ लेकर खेला बड़ा दांव
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vinod kapoor

लखनऊ: समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष और सीएम अखिलेश यादव गठबंधन को लेकर अपने पिता और अब संरक्षक मुलायम सिंह यादव के किए प्रयोग को दोहरा दिया है। फर्क सिर्फ इतना कि मुलायम सिंह यादव ने क्षेत्रीय दल बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ गठबंधन किया था, जबकि अखिलेश ने बडा दांव खेलते हुए राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस को चुना है।

ये गठबंधन भी सत्ता के लिए राजनीतिक मजबूरी है, जैसा कि 1993 में सपा, बसपा के गठबंधन की थी। मुलायम का किया गठबंधन ऐसा था कि यदि वो चलता रहता तो कोई अन्य दल सत्ता में आने के बारे में सोच भी नहीं सकता था।

दलित-पिछड़ा गठबंधन ही सत्ता की चाबी

यूपी समेत देश के किसी भी उत्तरी राज्य में दलित, पिछडा गठबंधन सत्ता की चाबी है। साल 1993 के चुनाव में सपा, बसपा के गठबंधन में ये हुआ भी। उस वक्त यूपी का विभाजन नहीं हुआ था। राज्य में विधानसभा की 422 सीटें थीं, जो उत्तराखंड के गठन के बाद 403 रह गईं। गठबंधन के तहत सपा ने 256 सीटों पर चुनाव लड़ा और बसपा के हिस्से 164 सीटें आईं। गठबंधन में हुए समझौते के तहत मुलायम सिंह यादव सीएम बने। लेकिन उन्हें बसपा के संस्थापक कांशीराम से इतनी जलालत झेलनी पड़ी जिनती उन्होंने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में नहीं झेली थी।

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गेस्ट हाउस कांड ने बदली राजनीति

लेकिन वो सरकार दो साल भी नहीं चल सकी। 2 जून 1995 को गेस्ट हाउस कांड हो गया जिसमें मायावती को जान से मारने की साजिश की गई। बस उसी दिन दोनों दलों का गठबंधन टूट गया और सपा, बसपा के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा 'निजी दुश्मनी' में बदल गई। उस घटना को हुए 22 साल हो चुके हैं लेकिन दोलों दल नदी के दो छोर की तरह कभी एक नहीं हुए।

अखिलेश के लिए रास्ता कांटों भरा था

गौरतलब है कि कांग्रेस पिछले 28 साल से यूपी की सत्ता से बाहर है। सत्ता में आने की उसकी छटपटाहट समझी जा सकती है। दूसरी ओर, अखिलेश अकेले सरकार बनाने का जितना भी दावा करते रहे हों, लेकिन राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इस बार अकेले उनके लिए रास्ता कांटो भरा था। एक ओर बसपा थी तो दूसरी ओर पूरी तैयारी के साथ बीजेपी, जो पीएम नरेंद्र मोदी के भरोसे ताल ठोंक रही है।

अमेठी-रायबरेली पर अखिलेश हुए 'मुलायम'

इस गठबंधन में भी सपा बड़ी पार्टी है। क्योंकि उसने कांग्रेस को मात्र 105 सीटें ही दी है। हालांकि अमेठी, रायबरेली की 10 विधानसभा सीटों को लेकर अखिलेश कुछ 'मुलायम' भी हुए हैं। उन्होंने सभी सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ने पर हामी भर दी है जबकि उसने तीन सीटों पर अपने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर दी थी। दो सीट पर तो मंत्री चुनाव लड़ रहे थे। एक पर गायत्री प्रजापति थे, तो दूसरे पर मनोज पांडे। अब इस दो नेताओं को समझाना या एडजस्ट करना बड़ा सिरदर्द होगा।

अब दोनों की गतिविधियों पर रहेगी नजर

चूंकि ये गठबंधन साम्प्रदायिक ताकतों को रोकने के नाम पर सत्ता के लिए है इसलिए राजनीतिक जानकारों की नजर दोनों दलों की गतिविधियों पर होगा। ये देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस विरोध के नाम पर अब तक राजनीति कर रही सपा, अपने सहयोगी कांग्रेस के उम्मीदवारों को जीत दिलाने में कितना जोर लगाती है। या कांग्रेस का बचा-खुचा वोट बैंक सपा के पक्ष में कितना लामबंद होता है।

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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