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राजनीतिक उपेक्षा का शिकार रहा पूर्वांचल, हाशिये पर ही रह गईं समस्याएं
नेताओं के उपेक्षा के चलते अब पूरे इलाके में गिनी चुनी निजी चीनी मिलें ही चालू रह गई हैं। किसानों ने गन्ना उत्पादन छोड़ आजीविका के लिए पलायन शुरू कर दिया। आज भी चीनी मिलों पर हजारों किसानों का गन्ना भुगतान बकाया है, जिस पर नेताओं ने कभी गंभीर प्रयास नहीं किये।
गोरखपुर: पूर्वांचल की राजनीति में स्थानीय समस्याएं हमेशा हाशिये पर रही हैं। यहां सभी दल केवल धर्म और जाति के आधार पर ही चुनावी नैया पार लगाने की फिराक में लगे रहे। इस प्रयास में बुनियादी मुद्दे पीछे छूटते गए। ताजा हालात में फर्टिलाइजर प्लांट और एम्स का मुद्दा तो है, लेकिन फिलहाल सारे नेता अपनी सारी शक्ति एक दूसरे पर कीचड़ उछाल कर बढ़त हासिल करने में जुटे हैं। इस तरह बुनियादी समस्याएं एक बार फिर छिटकी हुई नजर आ रही हैं।
पिछड़ गया इलाका
-पूर्वांचल का यह इलाका कभी चीनी का कटोरा कहा जाता था और गन्ने की पैदावार यहां की खुशहाली का प्रतीक था।
-लेकिन नेताओं के उपेक्षा के चलते अब पूरे इलाके में गिनी चुनी निजी चीनी मिलें ही चालू रह गई हैं।
-किसानों ने गन्ना उत्पादन छोड़ आजीविका के लिए पलायन शुरू कर दिया।
-आज भी चीनी मिलों पर हजारों किसानों का गन्ना भुगतान बकाया है, जिस पर नेताओं ने कभी गंभीर प्रयास नहीं किये।
स्थायी बनीं समस्याएं
-पूर्वांचल की एक अहम और स्थायी समस्या जलजनित रोग इंसेफेलाइटिस है।
-इस बीमारी से पूरे इलाके में पिछले साढ़े चार दशकों में अनगिनत परिवारों ने अपने मासूमों को अकाल मौत मरते देखा है।
,इस मुद्दे पर राजनीति तो बहुत हुई लेकिन कभी कोई हल निकलता नहीं दिखाई दिया।
-करीब 7 माह पहले पीएम ने यहां एम्स का शिलान्यास किया तो लगा कि अब शायद इंसेफेलाइटिस से निजात मिल सके।
-इस बेल्ट में भूगर्भ से निकले जल में आर्सेनिक समेत विभिन्न तरह के रासायनिक तत्वों की अधिकता है।
-क्षेत्र में कोई उद्योग धंधा न होने की वजह से युवाओं को रोजगार की समस्या का सामना करना पड़ता है और अक्सर वे अपराध का मार्ग चुन लेते हैं।
-नदियों के पानी की विभीषिका से तराई के इस इलाके में हर साल जान और माल का भारी नुकसान होता है।
-1998 की बाढ़ ने इस क्षेत्र में ऐसा तांडव मचाया कि पूरे देश की निगाहें यहां लगी रहीं, लेकिन कामचलाऊ राजनीति के बाद सब कुछ ठप हो गया।
नहीं बदले हालात
-कई दल बने बिगड़े, सरकारें बदलीं, लेकिन नही बदलीं तो यहां की परिस्थितियां।
-पिछले दो-ढाई दशकों में घूम फिर कर दो-तीन सरकारें प्रदेश की सत्ता चलाती रहीं, लेकिन इन्होंने कभी गंभीरता से क्षेत्र की समस्याओं के निदान के बारे में नहीं सोचा।
-नदियों की बाढ़ से होने वाले नुकसान पर चर्चा तो बहुत हुई, लेकिन उसका कोई रास्ता नहीं तलाशा जा सका। नतीजतन पूर्वांचल आज भी विकास की राह ताक रहा है।
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