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विकास के लिए तरस रहे ग्रामीणों ने किया चुनाव बहिष्कार, काले झंडों से सजाया गांव
झांसी: महोबा में विकास के लिए तरस रहे विकासखंड चरखारी के ग्राम नटर्रा के ग्रामीणों ने चुनाव बहिष्कार का ऐलान कर दिया है। ग्रामीणों ने एक सामूहिक 11 सूत्रीय मांग पत्र भेजकर चुनाव आयोग को भी अपनी बदहाली से अवगत कराया है। अपना विरोध जताने के लिए ग्रामीणों ने गांव के बाहर और अंदर काले झंडे लगा दिए हैं। बदहाल बुंदेलखंड के इस गांव में तमाम सुविधाओं की कमी है। गांव में सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और सिंचाई की व्यवस्था न के बराबर है। 2500 की आबादी वाले इस गांव में विकास दूर-दूर तक नहीं है।
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प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना क्या है? ये ग्रामीण नहीं जानते गांव के लोग पगडंडियों के सहारे जाने के लिए मजबूर हैं। शहर से आने वाली सड़क इनके गांव तक नहीं है। सरकारी योजनाएं तमाम हैं, मगर ये योजनाएं इनके लिए बेमतलब साबित हो रही हैं। सड़क न होने के कारण इनके गांव 102 और 108 एम्बुलेंस नहीं आती। बारिश के दिनों में गांव का अन्य ग्रामीण क्षेत्रों और शहर से संपर्क ही टूट जाता है। गर्भवती महिलाओं और बीमार अपने इलाज के लिए शहर तक नहीं जा पाते। गांव की मुख्य सड़क के अलावा गांव के अंदर भी पक्की रोड नहीं है। गांव के चारों ओर गंदगी पटी हुई है, तो रास्तों पर कीचड़ और जलभराव है। नतीजतन ग्रामीणों को खासी दिक्कतें झेलनी पड़ रही हैं।
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नटर्रा गांव में अधिकतर राजपूत और कुशवाहा जाति के लोग रहते हैं। यही वजह है कि चुनाव के समय गांव से वोट पाने की चाहत में राजनैतिक दल वादों की झड़ी लगा देते हैं, मगर इन्हें न तो पहले कुछ हासिल हुआ और न अब हो रहा है। गांव के बुजुर्ग भी इस चुनाव बहिष्कार का समर्थन कर रहे हैं। गांव के बुजुर्गों की माने, तो गांव में विकास को लेकर कोई परिवर्तन नहीं आया है। सड़क के बाद अगर स्वस्थ्य की बात की जाए, तो इस गांव में प्राथमिक उपचार के लिए कोई भी सरकारी और प्राइवेट अस्पताल तक नहीं है। मजबूरन यहां के लोग नीम-हकीमों से अपना इलाज करा रहे हैं। इलाज के अभाव में यहां कही मौतें भी होना। ग्रामीण बता रहे हैं कि सड़क न होने से बीमार समय से जिला अस्पताल तक नहीं पहुंच पाते।
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विधानसभा 231 चरखारी के गांव नटर्रा के ग्रामीणों का आरोप है कि उनके गांव में विकास कार्य नहीं कराए गए। जनप्रतिनिधि व नेताओं द्वारा आश्वासन तो दिया गया, लेकिन गांव में विकास कार्य को गति नहीं दी गई। गांव में सूखा और ओलावृष्टि का मुआवजा भी नहीं दिया गया। न ही प्रशासन द्वारा गांव के विकास की ओर कोई ध्यान दिया गया है। अब जब 2017 का विधानसभा चुनाव आ गया, तो नेताओं को गांव की याद आने लगी है, ग्रामीणों ने गांव के बाहर बैनर लगाकर अपना संदेश दिया है तथा गांव में अपने हाथों में काले झंडे लेकर विरोध दर्ज कराया है। ग्रामीणों का कहना है कि गांव में बारिश के पानी से जलभराव की समस्या बनी रहती है। चरखारी से नटर्रा व काकुन मार्ग का निर्माण कराया जाये, सिंचाई की सुविधा न होने पर किसान परेशान है। तालाबों में कार्य नहीं कराया गया, जिससे गांव बारिश के दिनों में जलमग्न हो जाता है।
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गांव में शिक्षा का हाल भी बेहाल है। वैसे तो इस गांव में दो सरकारी स्कूल हैं। प्राथमिक स्कूल के आलावा एक जूनियर हाई स्कूल भी है। पर इस जूनियर हाई स्कूल में पढ़ाने का जिम्मा सिर्फ एक अध्यापक का है। ऐसे में यहां की बदहाल शिक्षा का आप अंदाज ही लगा सकते। पूरे जनपद की तरह ही इस गांव में भी सूखे से किसानों की फसलें बर्बाद हुई हैं और हो रही हैं। यहां सिचाई का कोई भी साधन नहीं है। विकास की ऐसी ही पगडंडी से अछूते ग्रामीणों ने 11 सूत्रीय मांग पत्र के साथ अपने बहिष्कार का ऐलान किया है। इनकी माने तो यदि उन्हें सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और सिंचाई की सुविधा नहीं मिलेगी, तो वो आगे भी अन्य चुनावों का बहिष्कार करते रहेंगे।
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