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यूपी के मुख्य सचिव और डीजीपी पर रोक का आदेश: चुनाव आयोग चाहता क्या है ?

सवाल यह उठता है कि क्या आयोग इन दोनों शीर्षस्थ अफसरों की निष्पक्षता पर संदेह करता है, अगर नहीं तो इस निर्देश की क्या ज़रुरत थी? और अगर हाँ, तो इन अधिकारियों को हटाने में क्या व्यवधान है?

zafar
Published on: 24 Jan 2017 5:29 PM IST
यूपी के मुख्य सचिव और डीजीपी पर रोक का आदेश: चुनाव आयोग चाहता क्या है ?
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लखनऊ: उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान आचार संहिता के मद्देनज़र चुनाव आयोग का एक निर्देश अनेक अनुत्तरित सवाल छोड़ गया है। चुनाव आयोग ने एक अजीब से निर्देश में प्रदेश के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक के फील्ड में जाने और वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के माध्यम से ज़िलों के अधिकारियों से बातचीत पर रोक लगा दी है।

इस आदेश से साफ़ ज़ाहिर है कि चुनाव आयोग आचार संहिता का कड़ाई से पालन करवाना चाह रहा है जिसके लिए उसने ऐसा किया। अब सवाल यह उठता है कि क्या आयोग इन दोनों शीर्षस्थ अफसरों की निष्पक्षता पर संदेह करता है, अगर नहीं तो इस निर्देश की क्या ज़रुरत थी? और अगर हाँ, तो इन अधिकारियों को हटाने में क्या व्यवधान है?

सवाल यह भी उठता है कि ये अधिकारी किसी संवेदनशील मामले में अगर फील्ड अफसरों से बातचीत करके कोई हल निकालना चाहें तो कैसे करें क्योंकि चुनाव आयोग का निर्देश स्पष्ट है। ऐसी परिस्थितियों में क्या वे अपने पद के साथ न्याय करते नज़र आएंगे? ये परिस्थितियां सिर्फ कनफ़्यूज़न ही बढ़ा सकती हैं, इसका निष्पक्ष चुनाव से कितना सम्बन्ध हो सकता है यह भी सवालों के घेरे में ही है।

अब दूसरी स्थिति यह है कि क्या आयोग मुख्य सचिव अथवा डीजीपी को फील्ड अफसरों से बात करने से वाकई रोक सकता है? मोबाइल, लैंडलाइन फ़ोन और वीडियो चैटिंग जैसे अनेक ऐसे तरीके हैं जो तकनीकी रूप से उपलब्ध हैं। इस सूरत में भी इस निर्देश की उपयोगिता पर संदेह लाज़िमी है। वैसे भी देखा जाये तो चुनाव आयोग का यह आदेश ये तो दर्शाता ही है कि ये अधिकारी चुनाव को प्रभावित करने की स्थिति में हैं। बस, आयोग को यह स्पष्ट करना है कि उसको इन अधिकारियों पर 100 प्रतिशत, 50 प्रतिशत, 30 प्रतिशत या इससे भी कम विश्वास है।

वैसे आयोग ने पिछले दिनों 13 ज़िलाधिकारियों और 9 ज़िला पुलिस प्रमुखों को सत्तापक्ष से उनके संबंधों के चलते हटाने के आदेश दिए हैं। लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों पर अभी गाज नहीं गिरी है, सिवाय इस आदेश के जिसका आशय समझना मुश्किल है।

यहाँ ये बताना समीचीन होगा कि भारतीय जनता पार्टी की ओर से डीजीपी के खिलाफ समाजवादी पार्टी के पक्ष में कार्य करने की एक शिकायत की गयी थी हालांकि चुनावी माहौल में ऐसी शिकायतें तो होती भी हैं।



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