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UP विधानसभा चुनाव: पहले चरण में BJP उत्साहित, सपा के लिए साख बचाने की चुनौती
Vinod Kapoor
लखनऊ: यूपी में विधानसभा चुनाव की अब उलटी गिनती शुरू हो गई है। पहले चरण में पश्चिम उत्तर प्रदेश के 15 जिलों की 73 सीटों पर गुरुवार (9 फरवरी) पांच बजे शाम प्रचार खत्म हो गया।
पहले चरण में मिलने वाली बढ़त किसी भी दल के लिए यूपी में सत्ता का दरवाजा खोलेगी। ये बात सभी पार्टियां जानती हैं इसलिए प्रचार के अंतिम दिन सभी दलों ने पूरी ताकत झोंक दी है। बीजेपी और बसपा जहां सत्ता पाने के लिए छटपटा रही है तो सपा को अपनी साख बचानी है।
इन जिलों में होने हैं पहले चरण का मतदान
पहले चरण में शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, हापुड़, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा, हाथरस, आगरा, फिरोजाबाद, एटा और कासगंज जिलों में मतदान होने हैं। कुल 2.57 करोड़ लोग 839 प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करेंगे। इसमें 1.17 करोड़ महिलाएं हैं। पश्चिमी यूपी की 73 सीटों में 24 सीटों पर सपा, 23 पर बीएसपी, 12 पर बीजेपी, 9 पर आरएलडी और 5 पर कांग्रेस का कब्जा है।
सभी दलों की ध्रुवीकरण पर खास नजर
पीएम नरेंद्र मोदी भी इस बात को समझते हैं इसलिए उन्होंने आगरा, अलीगढ और गाजियाबाद में रैली की जिसमें अच्छी खासी भीड जुटी थी। इसके अलावा बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी ताबड़तोड़ रैली की। राजनाथ की सभा में भी अच्छी भीड़ जुटी। पीएम की सभा में आई भीड से बीजेपी कुछ ज्यादा ही उत्साहित है। चूंकि मुज़फ्फरनगर और शामली में 2013 के दंगा प्रभावित इलाके हैं। इसलिए सभी दलों की ध्रुवीकरण पर खास नजर है।
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मुस्लिम महिला मतदाताओं पर भी बीजेपी की नजर
बीजेपी ने हिंदूवादी छवि वाले गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ को भी मैदान में उतारा। उन्होंने लगातार चार दिन इन इलाकों में रैली की और कैराना से पलायन पर ही जोर दिया। मुस्लिम महिलाओं के मत पर नजर गड़ाए बीजेपी ने तीन तलाक के सवाल भी उठाए।
पार्टी ने सीटों को तीन चरणों में बांटा
बिहार से पार्टी के विधायक और बिहार विधानसभा की लोक लेखा समिति के अध्यक्ष नंदकिशोर यादव कहते हैं कि पहले चरण में पार्टी ने सीटों को ए, बी और सी श्रेणी में बांटा है। ए श्रेणी में वो 50 प्रतिशत सीटें हैं जहां पार्टी अपनी जीत पक्की मान रही है। बी श्रेणी की सीटों को पार्टी ए में बदलने में पूरी ताकत लगा रही है। जबकि सी श्रेणी की सीटों पर पार्टी की हालत लगभग शून्य है। नंदकिशोर यादव के दावे के अनुसार पार्टी इस चरण में कम से कम 50 सीट जीतेगी। यह संख्या बढ़ भी सकती है।
जात-मुस्लिम वोट होंगे निर्णायक
जाटों को अपने पक्ष में बनाए रखने के लिए बीजेपी पूरा प्रयास कर रही है। लोकसभा के 2014 के चुनाव में जाट पूरी तरह बीजेपी के पक्ष में थे। लेकिन हाल के दिनों में आरएलडी ने अपने इस वोट बैंक को वापस पाने में पूरी ताकत लगाई है। इन सीटों पर जाट और मुस्लिम निर्णायक होंगे। उनका वोट जिसे मिल जाएगा उसे जीत मिल जाएगी।
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मुस्लिम बहुल इलाके में दंगे का असर
मुस्लिम बहुल इस इलाके में लगभग तीन साल पहले दंगों का दंश झेल चुके मुजफ्फरनगर और शामली जैसे इलाके भी शामिल हैं। इन दंगों का असर 2014 के लोकसभा चुनावों में भी देखने को मिला। साल 2012 के विधानसभा चुनाव में इन 73 सीटों में से 11 सीटें जीतने वाली बीजेपी ने इलाके की सभी लोकसभा सीटों पर अपना परचम लहराया था। लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने सहयोगी अपना दल के साथ प्रदेश की 80 में से 73 सीटें जीती थीं।
मुस्लिमों को अपने पाले में करने में जुटीं मायावती
बसपा ने 403 विधानसभा सीटों में से 102 पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर इस चुनाव में मुस्लिमों को अपने पाले में करने की कोशिश की है। मायावती ने अपनी हर रैली में अल्पसंख्यकों को बीजेपी, सपा और कांग्रेस को वोट न देने की अपील की है। उनका कहना है कि अगर इनमें से कोई सत्ता में आया तो मुसलमानों की और भी बदतर हालत हो जाएगी।
अंतिम स्लाइड में पढ़ें किस तरह मायावती के पक्ष में आई उलेमा काउंसिल
मायावती को उलेमा काउंसिल का समर्थन
लखनऊ में उलेमा काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना आमिर रशादी ने मायावती को सपोर्ट करने का ऐलान किया। इसके अलावा हिंदू महासभा चक्रपाणि गुट ने भी मायावती को समर्थन दिया है और कहा है कि कानून व्यवस्था पर वो ही अंकुश रख सकती हैं। हिंदू महासभा तो मायावती को राजनीतिक संत कहने से भी नहीं चूकी। मुस्लिम और दलितों की जरूरत तथा हालात एक जैसे हैं। उन्हें मायावती पर पूरा भरोसा है।
मुलायम को प्रचार में नहीं उतारना दे सकता है झटका
सपा लगातार अपने विकास के एजेंडे को आगे रख रही है। अखिलेश लगातार सभाएं कर विकास की ही बात करते रहे हैं। मुस्लिम वोट छिटके नहीं इसलिए उन्होंने कांग्रेस के साथ समझौता किया। उन्होंने सभाओं में जानबूझ कर दादरी के अखलाक का मुद्दा नहीं उठाया ताकि बीजेपी को ध्रुवीकरण से रोका जा सके। सपा ने मुलायम सिंह को प्रचार में नहीं उतारकर गलती की है। मुसलमानों को मुलायम ज्यादा अपील करते हैं। यदि वो प्रचार में उतरते तो सपा को उसका फायदा मिल सकता था।
दूसरी ओर, मुस्लिम मतदाता किसी एक पार्टी के पक्ष में जाते नहीं दिख रहे। वो 'टैक्टिकल वोटिंग' में माहिर हैं। जो पार्टी भी बीजेपी को हराने में सक्षम होगी वो उसे ही वोट देंगे।