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यहां हर सीट का है अपना अलग मिज़ाज, नजरअंदाज़ होती रही हैं चुनाव में महिलाएं

बाह सीट को राजा अरिदमन सिंह की पुश्तैनी सीट कहना गलत नहीं होगा। उनके पिता राजा महेंद्र रिपुदमन सिंह भी बाह सीट से चार बार विधायक रह चुके हैं। ऐन चुनाव के समय राजा अरिदमन बीजेपी में शामिल हो गए और बीजेपी ने उनकी पत्नी पक्षालिका सिंह को टिकट दे दिया।

zafar
Published on: 17 Jan 2017 12:47 PM GMT
यहां हर सीट का है अपना अलग मिज़ाज, नजरअंदाज़ होती रही हैं चुनाव में महिलाएं
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यहां हर सीट का है अपना अलग मिज़ाज, नजरअंदाज होती रही हैं महिलाएं

आगरा: उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए आगरा की 9 सीटों से प्रतिनिधि चुने जाते हैं। आजादी के बाद से यहां विधानसभा चुनाव ने कई करवटें बदली हैं। अलग अलग समय में अलग अलग दलों ने यहां अपना परचम लहराया है। एक नजर डालते हैं यहां के विधानसभा क्षेत्रों के चेहरे पर।

फतेहपुर सीकरी विधान सभा:

फतेहपुर सीकरी आगरा जिले का एक नगरपालिका बोर्ड है। शेख सलीम चिश्ती की दरगाह और बुलंद दरवाजे के लिए मशहूर। हिंदू और मुस्लिम वास्‍तुशिल्‍प के मिश्रण का उदाहरण। बाह और पतेहपुर सीकरी को छोड़ कर, आजादी के बाद से अब तक आगरा की शहर सीट से एक भी महिला विधायक नहीं चुनी गई है। 54 साल पहले फतेहपुर सीकरी विधानसभा सीट पर कांग्रेस की चम्पावती ने जीत दर्ज की थी।

आजादी के बाद 1957 में पहली बार किसी महिला ने विधानसभा चुनाव में उतरने का फैसला लिया था। यह चम्पावती थीं। लाख विरोध के बाद भी उन्होंने कांग्रेस से पर्चा भरा, खूब प्रचार भी किया, लेकिन चुनाव हार गईं। लेकिन इस हार से उनका विश्वास नहीं डिगा। 1962 में वह फिर कांग्रेस के टिकट से चुनाव मैदान में आईं और अपने विरोधी कुंवरसेन को करारी मात दी।

यहां कुल मतदाताओं की संख्या है-3,25,979, इनमें 1,48,031 महिला मतदाता और 1,77,947 पुरुष मतदाता हैं। 1 मतदाता अन्य की श्रेणी में है।

प्रत्याशी

उदयभान सिंह भाजपा

सूरज पाल सिंह बसपा

लाल सिंह लोधी सपा

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खेरागढ़ विधानसभा: आगरा की विधानसभा सीटों में खेरागढ़ पर निगाहें टिकी हैं। यहां से बसपा और भाजपा के उम्मीदवारों के नाम घोषित हो चुके हैं। यहां भाजपा के भीतर टिकट बंटवारे के बाद पनपे असंतोष से लड़ाई रोचक हो गई है।

यहां से समाजवादी पार्टी ने रानी पक्षालिका सिंह को प्रत्याशी घोषित किया था। लेकिन राजा अरिदमन के साथ पक्षालिका सिंह ने भाजपा ज्वाइन कर ली। फिलहाल सपा ने अपना दूसरा उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। अब राजनैतिक हलको में चर्चा है की सपा और कांग्रेस के गठबंधन की सूरत में यह सीट कांग्रेस के खाते में जा सकती है।

इससे पहले 2012 के विधानसभा चुनाव में भी इस विधानसभा सीट पर सपा से पक्षालिका सिंह, बसपा से भगवान सिंह कुशवाह, भाजपा से अमर सिंह परमार, कांग्रेस-रालोद के संयुक्त प्रत्याशी उमेश सैंथिया मुकाबले में थे। हलांकि, बाजी मारी बसपा के भगवान सिंह कुशवाह ने। तब सपा प्रत्याशी के रूप में पक्षालिका सिंह दूसरे नंबर पर रही थीं। इस बार पक्षालिका सिंह को भाजपा ने बाह सीट से अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है।

प्रत्याशी

महेश गोयल भाजपा

भगवन सिंह कुशवाह बसपा

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फतेहाबाद विधान सभा:

फतेहाबाद विधानसभा सीट पर अब तक पार्टी से ज्यादा उम्मीदवार महत्वपूर्ण रहा है। 1993 के बाद से अब तक यानी पिछले पांच विधानसभा चुनावों में यहां छोटेलाल वर्मा का ही दबदबा रहा है। वह तीन बार यहां से विधायक तो दो बार निकटतम उम्मीदवार रहे हैं। खास बात ये है कि अंतिम तीन चुनाव उन्होंने तीन अलग-अलग पार्टियों से लड़े हैं और अगले चुनाव में भी वे किसी दूसरी पार्टी की ओर से मैदान में नजर आएं तो हैरानी नहीं होनी चाहिए।

इस सीट पर पिछले पांच चुनाव में से तीन में बीजेपी जीती है जबकि एक बार जनता दल और पिछली बार बीएसपी को इस सीट पर जीत मिली थी।

छोटेलाल 1993 में बीजेपी के टिकट पर मैदान में उतरे थे और जनता दल के तत्कालीन विधायक को 15 हजार वोटों के अंतर से हराया था। मगर अगले चुनाव यानी 1996 में छोटे लाल वर्मा से यह सीट विजय पाल ने छीन ली। हालांकि, वर्मा की हार का अंतर महज साढ़े तीन सौ वोट रहा था। 2002 के चुनाव में एक बार फिर बीजेपी ने उनपर ही दांव खेला और वर्मा ने पार्टी का भरोसा टूटने नहीं दिया। उन्होंने बसपा उम्मीदवार को तकरीबन 5 हजार वोटों से हराकर ये सीट बीजेपी की झोली में डाल दी।

2007 के चुनाव में छोटेलाल वर्मा का बीजेपी से मोहभंग हो गया। तब उन्होंने समाजवादी पार्टी की साइकिल की सवारी की लेकिन उनका ये दांव पब्लिक को पसंद नहीं आया। उन्हें बीजेपी उम्मीदवार राजेंद्र सिंह के हाथों पांच हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा। पिछले चुनाव यानी 2012 में वर्मा ने साइकिल से उतरकर हाथी की सवारी पकड़ ली। उन्हें इसका फायदा भी मिला और वे बहुजन समाज पार्टी के विधायक चुने गए। उनके प्रतिद्वंद्वी सपा के राजेंद्र सिंह उनसे करीब 700 वोटों से पिछड़ गए।

लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले छोटेलाल सपा में अघोषित रूप से शामिल हो गए और ढाई साल बाद विधानसभा चुनावों के लिए जब सपा ने पुनः राजेन्द्र सिंह पर ही विश्वास जताया तो छोटेलाल ने फिर से भाजपा का दामन थाम लिया। लेकिन भाजपा ने भी उन्हें टिकट न देकर सपा से भाजपा में आये जितेन्द्र वर्मा को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। अब छोटे लाल वर्मा किसी और सिंबल की तलाश में हैं।

प्रत्याशी

जितेन्द्र वर्मा भाजपा

राजेन्द्र सिंह सपा

उमेश सैंथिया बसपा

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आगरा ग्रामीण विधान सभा:

2012 के आंकड़ों के मुताबिक आगरा ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 3 लाख 80 हजार 477 है। सीट के अस्तित्व में आने के बाद से अब तक सिर्फ एक बार विधानसभा चुनाव हुआ है। जिसमें बहुजन समाज पार्टी के कालीचरण सुमन ने जीत दर्ज की थी। सुमन ने समाजवादी पार्टी की हेमलता को हराया था। कांग्रेस के उपेंद्र सिंह तीसरे स्थान पर रहे थे। जबकि भारतीय जनता पार्टी के ओमप्रकाश चलनीवाले चौथे स्थान पर रहे थे। फिलहाल सभी राजनैतिक पार्टियों ने अपनी-अपनी दावेदारी पेश करनी शुरु कर दी है।

प्रत्याशी

हेमलता दिवाकर कुशवाह भाजपा

कालीचरण सुमन बसपा

राकेश धनगर सपा

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आगरा उत्तरी विधान सभा:

आगरा में एक विधानसभा सीट ऐसी है जहां पर 31 साल से भाजपा का राज है। यहां पर न तो कभी सपा को जीत मिली न ही बसपा को। इस सीट पर वर्ष 1951 से 1980 तक कांग्रेस का कब्जा रहा। हां, दो चुनावों में यहां से बीजेएस और एजीपी को भी जीत मिल चुकी है। हम बात कर रहे है आगरा उत्तरी विधानसभा सीट की जहां वतर्मान में भाजपा के जगन प्रसाद गर्ग चार बार से लगातार विधायक हैं। लेकिन यहां से कभी भी महिला प्रत्याशी को जीत नहीं मिली। 2012 के चुनाव में दूसरे नंबर पर बसपा और तीसरे पर कांग्रेस थी। इस सीट पर 1998 में उपचुनाव भी हो चुका है।

आगरा उत्तरी विधानसभा सीट पर बसपा को भले ही जीत न मिली हो लेकिन वह लगातार दो बार से नंबर 2 पर है। 2012 के चुनाव में बसपा के राजेश कुमार अग्रवाल को 20 हजार से अधिक मतों से हार मिली थी। आगरा उत्तरी से भाजपा ने दो बार हैट्रिक लगाई है। इस सीट पर भाजपा के सत्यप्रकाश विकल पांच बार विधायक रहे। उसके बाद जगन प्रसाद गर्ग चार बार से विधायक है और प्रकाश नरायण गुप्ता के नाम कांग्रेस पार्टी से दो बार विधायक रहने का रिकार्ड है।

आंकड़े बोलते हैं कि 2012 में यहां कुल 3,98,495 मतदाता थे। जिनमें महिला 1,56,230 और पुरुष 1,92,393 थे। लेकिन यहां पिछली बार 1,96,716 कुल मत पड़े थे और 56.43 प्रतिशत मतदान हुआ था। 6 निर्दलियों समेत कुल 21 प्रत्याशी मैदान में थे जिसमें भाजपा को 34 प्रतिशत मत मिले थे।

प्रत्याशी

जगनप्रसाद गर्ग भाजपा

ज्ञानेंद्र गौतम बसपा

कुंदनिका शर्मा सपा

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आगरा दक्षिण विधानसभा:

आगरा की दक्षिण विधानसभा सीट परिसीमन के बाद 2012 में अस्तित्व में आयी। इससे पहले यह एरिया आगरा छावनी में आता था। बसपा से इस सीट पर टिकट की होड़ लगी थी, तो वहीं बीजेपी भी इस सीट पर अपनी जीत पक्की मान कर बैठी थी। चुनाव हुआ, तो परिणाम बीजेपी के पक्ष में आया भी और पहले चुनाव में ही कमल खिल गया।

2012 के चुनाव में इस सीट से भाजपा ने योगेन्द्र उपाध्याय और बीएसपी ने मुस्लिम प्रत्याशी जुल्फिकार अहमद भुट्टो को चुनाव मैदान में उतारा था। एक तरफ बीएसपी के पूर्व विधायक तो दूसरी ओर बीजेपी के योगेन्द्र उपाध्याय में कांटे का मुकाबला था। उधर बीएसपी का खेल बिगाड़ने में सबसे बड़ा हाथ रहा कांग्रेस का। कांग्रेस ने इस सीट से प्रतिष्ठित व्यापारी नजीर अहमद को चुनाव मैदान में उतार दिया। कांग्रेस और बीएसपी में मुस्लिम वोट बंट गया, जिसका सीधा फायदा योगेन्द्र उपाध्याय को हुआ। बीजेपी के योगेन्द्र उपाध्याय को 74 हजार 324 वोट के साथ विजय मिली, जबकि बीएसपी प्रत्याशी जुल्फिकार अहमद को 51 हजार 364 और कांग्रेस के नजीर अहमद को 39 हजार 962 मत प्राप्त हुए।

आगरा दक्षिण विधानसभा में 3 लाख 51 हजार 573 वोटर हैं। इस सीट पर पुरुष वोटर 1 लाख 93 हजार 455 हैं, म​हिला वोटर 1 लाख 58 हजार 103 हैं। अन्य में 15 वोटर शामिल हैं। इस सीट पर दलित और हाईकास्ट वोटरों की संख्या लगभग बराबर है। इस सीट पर सर्वाधिक मुस्लिम मतदाता माने जाते हैं। इसीलिए नए परिसीमन के बाद बीएसपी और कांग्रेस ने मुस्लिम चेहरों को चुनावी मैदान में उतारा। इस बार सपा ने यहां से महिला प्रत्याशी को उतारा है। बसपा ने फिर से मुस्लिम प्रत्याशी जुल्फिकार भुट्टो पर ही दांव खेला है। इस उठापटक से अलग भाजपा ने योगेन्द्र उपाध्याय को फिर से प्रत्याशी घोषित किया है।

प्रत्याशी

जुल्फिकार अली भुट्टो बसपा

योगेन्द्र उपाध्याय भाजपा

क्षमा जैन सक्सेना सपा

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आगरा छावनी विधानसभा:

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित आगरा छावनी सीट को अगर बहुजन समाज पार्टी के लिए आरक्षित सीट कहा जाए तो गलत नहीं होगा। दरअसल इस सीट से पिछले तीन चुनावों में बीएसपी को ही जीत मिल रही है। प्रत्याशी कोई भी हो, किसी भी जाति या धर्म से ताल्लुक रखता हो, यहां के वोटरों को फर्क नहीं पड़ता, वो तो ईवीएम पर हाथी के सामने वाला बटन ही दबाते आए हैं।

पिछले चुनाव यानी 2012 में बहुजन समाज पार्टी की ओर से इस सीट पर गुटयारी लाल दुबेश ने जीत दर्ज की थी। उन्हें 67 हजार 786 वोट मिले जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी बीजेपी उम्मीदवार गिरिराज सिंह धर्मेश 61 हजार 371 वोट ही पा सके।

2017 के चुनाव के लिए भी बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने इस सीट से गुटयारी लाल दुबेश को ही उम्मीदवार बनाया है। सपा ने यहां से साफ़ छवि वाले चंद्र सेन टपलू को मैदान में उतारा था। वह पिछली बार भी चुनाव लड़े थे लेकिन हार गए थे। इस बार इस सीट से उनकी जीत पक्की मानी जा रही थी, लेकिन प्रत्याशी सूची तैयार होने वाले दिन ही उनका हार्ट फेल हो गया। माना जा रहा है कि अब इस सीट पर सपा से उनकी पत्नी ममता टपलू चुनाव लड़ेंगी।

प्रत्याशी

गुटियारी लाल दुवेश बसपा

जीएस धर्मेश भाजपा

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बाह विधानसभा:

बाह तहसील में गांव बटेश्वर पूर्व प्रधान मंत्री अटल जी का जन्म स्थान है। यमुना तट पर बसे इस गांव का नाम शौरिपुर है। अपनी पौराणिकता और ऐतिहासिकता के लिए प्रसिद्ध बाह से दस किलोमीटर उत्तर में यमुना नदी के किनारे बाबा भोले नाथ का प्रसिद्ध स्थान बटेश्वर धाम है।

इतिहास पर नजर डालें तो बाह सीट को राजा अरिदमन सिंह की पुश्तैनी सीट कहना भी गलत नहीं होगा। क्योंकि उनके पिता राजा महेंद्र रिपुदमन सिंह भी बाह सीट से चार बार विधायक रह चुके हैं। दलित, गुर्जर, और भदौरिया ठाकुर बाहुल्य बाह क्षेत्र में तासोड़, पुरा कुरकियान, पुराअनिरूद्ध, पलोखरा, सुखमानपुरा, मंसुखपुरा, करकौली, नयावास, बसई अरेला, उमरैठा, भदरौली, पिनहाट, चौसिंगी, फरैरा, जरार, बटेश्वर, बिजौली, कचरौघाट, कूकापुर, जैतपुर कलां आदि इलाके व गांव आते हैं। यहां 2014 में हुए आम चुनाव में 1 लाख 71 हजार 969 पुरुष और 1 लाख 34 हजार 830 महिलाएं और 10 अन्य मतदाता सहित कुल 3 लाख 6 हजार 809 मतदाता थे।

2012 के विधानसभा चुनाव में सपा की ओर से इस सीट पर राजा अरिदमन सिंह ने जीत दर्ज की थी। यह पहला मौका था जब सपा ने बाह सीट पर खाता खोला, और रिकॉर्ड जीत दर्ज की। उन्हें 99 हजार 389 वोट मिले जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी बीएसपी उम्मीदवार मधुसूदन शर्मा 72 हजार 908 वोट ही पा सके। हालांकि 2007 के विधानसभा चुनाव में मधुसूदन शर्मा ने राजा अरिदमन सिंह को 4623 वोटों से शिकस्त दी थी। दलित बाहुल्य इलाका होने के बावजूद यह पहला मौका था जब बीएसपी ने यहां जीत दर्ज की थी।

2017 के चुनाव के लिए भी बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने इस सीट से मधुसूदन शर्मा को ही उम्मीदवार बनाया है। जबकि सपा और बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है। इससे पहले 2002 में बीजेपी की ओर से राजा अरिदमन सिंह ने सपा के संतोष चौधरी को मात दी थी। राजा अरिदमन सिंह को 54 हजार से ज्यादा वोट मिले थे। 1996 में बीजेपी की ओर से अरिदमन सिंह ने कांग्रेस के अमर चंद को हराया। उन्हें 48 हजार 817 जबकि अमर चंद को 44 हजार 809 मिले थे। 1993 में अरिदमन सिंह जनता दल की ओर लड़े थे और कांग्रेस के अमर चंद शर्मा को हराया था।

सीट के चुनावी आंकड़ों से स्पष्ट है कि यहां पार्टी से ज्यादा व्यक्ति विशेष है। राजा अरिदमन सिंह का दबदबा साफ दिखाई देता है। ऐसा माना जाता रहा है कि वे किसी भी पार्टी के टिकट पर लड़ें जीत उन्हीं की होगी, लेकिन 2007 के बाद समीकरण बदले और बीएसपी का प्रभुत्व इलाके में बढ़ा है। लेकिन चुनाव के ऐन मौके पर राजा ने भाजपा ज्वाइन कर ली जिसके बाद भाजपा के स्थानीय लोगो ने उनका विरोध शुरू कर दिया। भाजपा ने हालात देखते हुए राजा अरिदमन के बजाय उनकी पत्नी पक्षालिका सिंह को बाह से अपना उमीदवार घोषित किया है।

प्रत्याशी

रानी पक्षालिका सिंह भाजपा

मधुसुदन शर्मा बसपा

zafar

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