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इंटरव्यू: PM मोदी से प्रेरित युवा पत्रकार ने खादी अपनाई, शलभमणि त्रिपाठी हुए भाजपाई
Anurag Shukla
लखनऊ: मीडिया में रहकर सबकी आवाज नहीं बन पा रहा था लिहाजा राजनीति में आ गया। यह मानना है उत्तर प्रदेश में अपना चोला बदलने वाले तेज-तर्रार टीवी पत्रकार शलभमणि त्रिपाठी का।
शलभमणि त्रिपाठी ने शुक्रवार को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सदस्यता हासिल कर ली। शलभमणि त्रिपाठी ने newstrack.com ने एक्सक्लूसिव बातचीत में कहा, कि जेएनयू की घटना ने उनको दायरा तोड़ने पर मजबूर किया और उन्होंने खादी धारण कर लिया।
पेश है शलभमणि त्रिपाठी से बातचीत के प्रमुख अंश:
सवाल: आपको कब लगा कि बस अब पत्रकारिता के रास्ते को छोड़कर खादी पहनी जाए?
शलभ- देखिए, पत्रकारिता कभी छोड़ी नहीं जा सकती। पर पेशे के तौर पर उस दिन मीडिया का दायरा छोटा और संकुचित लगने लगा जब जेएऩयू में राष्ट्रविरोधी नारों के बाद राजनीति होती देखी। इस राजनीति में मीडिया को हिस्सा बनते देखा तो बस मन किया कि अब वही काम करें, जिसमें मजलूमों की आवाज बना जा सके। बहुत से ऐसे काम हैं, बहुत से ऐसे मुद्दे हैं, जो मीडिया में रहकर नहीं उठाए जा सकते हैं। मीडिया के दायरे की वजह से ही गरीबों की आवाज नहीं उठा पा रहा था। ऐसे में मन किया कि अब खादी पहनकर ही राजनीति के मुद्दे उठाए जाएं। सिस्टम में रहकर ही सिस्टम में बदलाव लाया जा सकता है।
सवाल: आपने बीजेपी को ही क्यों चुना?
शलभ- किसी भी फैसले में नीति, नेतृत्व और नीयत का बहुत बड़ा हाथ होता है। बीजेपी को चुनने के पीछे भी यही वजह है। बीजेपी की नीति में नेशन फर्स्ट है। ऐसे में मेरे लिए देश से बड़ा कुछ नहीं। राष्ट्रवाद की नीति मेरी आइडियोलाजी है। बीजेपी की नीयत पर कोई शक नहीं किया जा सकता। वहीं मौजूदा वक्त में बीजेपी के नेतृत्व से बेहतर देश में किसी भी पार्टी का नेतृत्व है ही नहीं।
सवाल: नरेंद्र मोदी इस फैसले का कितना बड़ा हिस्सा हैं?
शलभ- अगर हिस्से की बात की जाए तो माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी इस फैसले का तीन चौथाई हिस्सा हैं। दरअसल, उनके तीन फैसलों ने ही मेरे मन की रही-सही दुविधा को खत्म कर दिया। जेएनयू में लगे ऱाष्ट्र विरोधी नारों के खिलाफ सरकार का कड़ा कदम, पीओके में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी का निःस्वार्थ फैसला माननीय प्रधानमंत्री के तीन ऐसे बड़े कदम थे जिन्होंने मुझे उनका अऩुगामी बना दिया।
दरअसल, नोटबंदी का फैसला वही नेता ले सकता है जिसको देश की चिंता ज्यादा हो वोट की कम। वही नेता ले सकता है जिसे देश के भले की चिंता हो, न कि अपने चुनावी परिणामों की। यह फैसला वही ले सकता है जिसे गरीब, किसान और भ्रष्टाचारविहीन देश की चिंता हो, न कि अमीरों और ड्राइंग रूम ओपीनियन मेकर्स की।
सवाल: बीजेपी में अपनी क्या भूमिका देखते हैं?
शलभ- बीजेपी में मैंने कार्यकर्ता के तौर पर इंट्री ली है। मेरी न तो पद की इच्छा है न ही किसी लाभ की। सिर्फ सेवा करना चाहता हूं। पार्टी जो भी दायित्व देगी पूरा करूंगा।