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रायबरेली में आजादी के बाद से अब तक पांच बार हुए सियासी परिवर्तन
रायबरेली: वीवीआईपी जनपद का तमगा हासिल करने वाली रायबरेली सियासत में सबसे अधिक बदलाव का शिकार हुई है। जनता के वादों और इरादों में भले ही यहां कुछ हासिल न हुआ हो लेकिन सियासत की मजबूती के लिए यहां बदले भूगोल से इतिहास जमींदोज हुआ है। उदाहरण के लिए राजा डल की नगरी और साहित्य, संस्कृति के नाम पर बसे डलमऊ विधान सभा को समाप्त कर नई विधान सभा पूर्व में बनाई जा चुकी है। बदलाव के शुरु हुए सुर में अभी रायबरेली के परिसीमन में और भी बड़ा बदलाव करने की मांग हो चुकी है। इस बदलाव में लालगंज से बैसवारा क्षेत्र अलग कर एक नया जिला बनाने की मांग शासन स्तर पर विचाराधीन है। वहीं ऊंचाहार क्षेत्र को भी तोड़कर कुंडा जिला बनाने की मांग हो रही है।
डलमऊ का नाम इतिहास के कई पन्नों में दर्ज
रायबरेली में अब तक पांच बार हुए परिवर्तन में सबसे अधिक फर्क विधान सभाओं में हो चुका है। यहीं कारण रहा है कि यहां कुछ सीटों को छोड़कर किसी भी सीट पर किसी भी पार्टी का स्थायित्व नहीं बन सका है। जिले की सबसे विवादित सीटों में शुमार हुई डलमऊ सीट वर्ष 2012 में सामप्त करके ऊंचाहार बना दी गई । पतित पावनी गंगा के तट पर बसे डलमऊ का नाम इतिहास के कई पन्नों में दर्ज है। लेकिन वर्षो पुरानी विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व करने वाली डलमऊ नगरी के नाम को ही मिटा दिया गया। डलमऊ को सरेनी का एक अंग बनाकर इस सीट को ऊंचाहार विधानसभा का नाम दे दिया गया। आने वाले समय में डलमऊ के ऐतिहासिक सोपानों को समझने के लिए नई पीढ़ी संर्घष करते दिखेगी।
क्षेत्रों के बदलाव का खामियाजा आम मतदाताओं को भुगतना पड़ा
इस सीट से हमेशा दिग्गजों की समर रहा है। ऊंचाहार बनने के बाद सीट पर स्वामी प्रसाद मौर्य के पुत्र और ब्राम्हणों के दिग्गज नेता और वर्तमान सपा सरकार के कैबिनेट मंत्री डा. मनोज पाण्डेय के बीच सियासी जंग शुरु हुई । मामूली मतों से चुनाव जीतने वाले मनोज को इसी जीत का तमगा मंत्री के रुप में मिला है। इसी प्रकार बछरावां, हरचंदपुर विधान सभा में परिसीमन के परिवर्तन की जमकर तोड़फोड़ की गई है। यहां भी राजनैतिक दलों में अपने पांव मजबूत करने का पूरा मौका नहीं मिल सका है। अब तक जिले में बार-बार हुए क्षेत्रों के बदलाव का खामियाजा आम मतदाताओं को भुगतना पड़ा। नए घर में ठौर और पुराने घर से दूरियां हमेशा सभी को सताती रही थी और आगे भी सताती रहेगी।
रायबरेली जिले का अब तक का सियासी परिवर्तन
- वर्ष 1957 में जिला दो संसदीय क्षेत्रों रायबरेली उत्तरी और रायबरेली आंशिक के नाम से जाना जाता था। दो सांसद जनपद का प्रतिनिधित्व करते थे।
- वर्ष 1962 में किए गए परिसीमन एक लोकसभा सीट बची जिसे रायबरेली का नाम दिया गया। रायबरेली और सुल्तानपुर जिले को तोड़कर अमेठी लोकसभा सीट को नया रुप दिया गया।
- वर्ष 1967 में सलोन क्षेत्र को तोड़कर प्रतापगढ़ व कुछ भाग अमेठी में जोड़ दिया गया। इसके बाद विधानसभा सीटों के क्षेत्रों में भी बदलाव किया गया।
- वर्ष 2012 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जिले की सभी विधानसभाओं के क्षेत्रों का बदल दिया गया। सदर और ऊंचाहार विधानसभा सीटों के क्षेत्रों को सिर्फ कटौती मिली तो बछरावां, हरचंदपुर और तिलोई को तोड़ा व जोड़ा गया।
- अब तक सलोन विधानसभा सीट ही ऐसी बची जिसको परिसीमन में सबसे अलग रखा गया।
परिचय रायबरेली
कुल विधान सभा क्षेत्र : छह
सरेनी विधान सभा क्षेत्र, ऊंचाहार विधान सभा क्षेत्र, हरचंदपुर विधान सभा क्षेत्र, सलोन विधान सभा क्षेत्र, सदर विधान सभा क्षेत्र, बछरावां विधान सभा क्षेत्र
कुल मतदाता : 1940106
पुरुष मतदाता :1043723
महिला मतदाता : 896354