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पारस छू कंचन भया, BJP के साथ आए छोटे दलों ने भी बिखेरी चमक

मतगणना के बाद अब छोटे दलों के जीते हुए प्रत्‍याशी अपना गुणा-गणित करने में जुट गए हैं। जीते हुए प्रत्‍याशी अब सरकार बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी के साथ अपने-अपने फायदे की बात करने में लग गए हैं।

zafar
Published on: 12 March 2017 6:07 PM IST
पारस छू कंचन भया, BJP के साथ आए छोटे दलों ने भी बिखेरी चमक
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पारस छू कंचन भया, BJP के साथ आए छोटे दलों ने भी बिखेरी चमक

लखनऊ: कहावत है कि पारस पत्‍थर से अगर कोई भी सामान्‍य से सामान्‍य पत्‍थर का स्‍पर्श हो जाए तो वह सोना बन जाता है। कुछ ऐसा ही हाल उत्‍तर प्रदेश विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन करने वाले दलों का हुआ है। जहां एक ओर छोटे राजनैतिक दलों को भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन करने से फायदा मिला, वहीं भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ सियासी अखाड़े में उतरने वाले सभी बडे छोटे दलों को मुंह की खानी पड़ी।

मतगणना शुरू होने के साथ ही जैसे जैसे रूझान आने लगे, भारतीय जनता पार्टी की जीत सुनिश्‍चित होती गई। इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी समर्थित छोटे दलों के प्रत्‍याशियों को गठबंधन का लाभ मिला और उन्होंने जीत का स्‍वाद चखा।

इस बार जिन छोटे दलों की काफी चर्चा रही उनमें लोकदल, अपना दल, पीस पार्टी, भारतीय समाज पार्टी, एआईएमआईएम, निषाद पार्टी समेत कई राजनै‍तिक दलों का नाम शामिल है। मतगणना के बाद अब छोटे दलों के जीते हुए प्रत्‍याशी अपना गुणा-गणित करने में जुट गए हैं। जीते हुए प्रत्‍याशी अब सरकार बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी के साथ अपने-अपने फायदे की बात करने में लग गए हैं।

आगे स्लाइड में जानिये किस दल ने अपनाये सबसे ज्यादा बागी...

लोकदल ने सर्वाधिक बागियों को अपनाया

यूपी विधानसभा चुनावों में सुनील सिंह की लोकदल पार्टी ने सर्वाधिक बागियों को टिकट दिए। इनमें सबसे ज्यादा नेता समाजवादी पार्टी से टिकट न पाने वाले शिवपाल यादव गुट के थे। इतना ही नहीं लोकदल ने तो मुलायम सिंह यादव को अपना स्‍टार प्रचारक भी घोषित कर दिया था। हालांकि मुलायम सिंह यादव ने लोकदल के प्रत्‍याशियों के लिए प्रचार नहीं किया। ऐसा तब हुआ जब वर्ष 2012 में लोकदल ने 90 सीटों पर अपने उम्‍मीदवार उतारे और सबकी जमानत जब्‍त हो गई थी।

इस बार लोकदल ने जिन प्रमुख लोगों को टिकट दिया उनमें विधानपरिषद के सभापति रमेश यादव के बेटे और एटा के सपा विधायक आशीष यादव, जसराना के सपा विधायक रामवीर सिंह और सीतापुर की बिसवां विधानसभा सीट के रामपाल यादव शामिल हैं। लोकदल के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष सुनील सिंह ने तो शिवपाल यादव खेमे के कई संभावित प्रत्‍याशियों को भी टिकट की पेशकश की थी। हालांकि इस बार भी लोकदल का कोई प्रत्‍याशी अपना खाता खोलने में सफल नहीं रहा। इससे लोकदल का कद बहुत ज्‍यादा घट गया।

आगे स्लाइड में जानिये किसने पाया भाजपा से लाभ ...

भारतीय समाज पार्टी ने प्‍लांट किए 8 प्रत्‍याशी

भारतीय समाज पार्टी राजभरों की पार्टी के रूप में अपनी पहचान बनाती नजर आई। राजभर वोट बैंक को अपनी ओर खींचने के इरादे से भारतीय समाज पार्टी ने 8 प्रत्‍याशी मैदान में उतारे। भासपा के संगठन मंत्री पीआर राजभर ने बताया कि इस बार विधानसभा चुनावों में रणनीतिक रूप से 8 प्रत्‍याशी उतारे गए। सारे जिताऊ प्रत्‍याशियों पर दांव लगाया गया।

भारतीय समाज पार्टी के टिकट पर जहूराबाद से ओम प्रकाश राजभर, जखनिया से त्रिवेणी राम, बांसडीह से अरविंद राजभर, मऊ से महेंद्र राजभर, बनारस की अजगरा सीट से कैलाश सोनकर, जौनपुर के शाहगंज से राणा सिंह, मेहनगर से महिला प्रत्‍याशी मंजू सरोज और रामकोला से रामानंद बौद्ध प्रत्‍याशी को मैदान में उतारा गया था।

इनमें से चार प्रत्‍याशियों के सर जीत का सेहरा बंधा। इनमें जहूराबाद विधानसभा से ओम प्रकाश राजभर, जखनियां से त्रिवेणी राम, अजगरा से कैलाश नाथ सोनकर, रामकोला से रामानंद बौद्ध ने जीत दर्ज की।

इसके अलावा शेष चार प्रत्‍याशियों ने सपा-कांग्रेस और भाजपा जैसे बड़े दलों के प्रत्‍याशियों के चुनाव को कठिन कर दिया था।

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पीस पार्टी को शून्‍य और निषाद पार्टी को 1 सीट

यूपी विधानसभा चुनावों में मुस्लिम वोट बैंक के रूप में दांव लगाने वाली पीस पार्टी और निषाद वोटों के दम पर चुनावी ताल ठोंकने वाली निषाद पार्टी ने भी जमकर सियासी लड़ाई लड़ी। लेकिन इस बार पीस पार्टी के खाते में एक भी सीट नहीं आई। हालांकि निषाद पार्टी के खाते में एक सीट जरूर आ गई।

वर्ष 2012 के पिछले विधानसभा चुनावों की बात करें तो पीस पार्टी ने पिछले चुनाव में चार सीटों पर जीत दर्ज की थी। पीस पार्टी ने इस बार भी बागियों को टिकट दिया था। रामनगर बाराबंकी से सपा के पूर्व विधायक सरवर अली और कुर्सी से भाजपा की पूर्व विधायक राज लक्ष्मी को मैदान में उतारा गया।

इसी तरह बागी हुए ज्ञानपुर भदोही के सपा विधायक विजय मिश्र को निषाद पार्टी (निर्बल इंडियन शोषित हमारा अपना दल) के टिकट पर चुनाव लड़ाया। हालांकि निषाद पार्टी के खाते में एक सीट ही आई।

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रालोद नहीं बनी सपा-कांग्रेस गठबंधन का हिस्‍सा

विधानसभा चुनावों में राष्‍ट्रीय लोकदल की समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के साथ गठबंधन की चर्चाएं काफी तेज रहीं। लेकिन ऐन वक्‍त पर राष्‍ट्रीय लोकदल सपा-कांग्रेस के गठबंधन की चर्चा से बाहर हो गया। गठबंधन से बाहर होते ही रालोद ने ज्‍यादा से ज्‍यादा बागियों को टिकट देने की कवायद की। इस क्रम में रालोद ने अलग-अलग पाटियों के 6 विधायकों और 16 पूर्व विधायकों को सियासी अखाडे में अपने टिकट पर उतार दिया।

सपा सरकार के कैबिनेट मंत्री रहे शारदा प्रताप शुक्ला हो या मोहनलालगंज की सपा विधायक चंद्रा रावत इस चुनाव में रालोद के टिकट पर लड़ी। सपा विधायक भगवान शर्मा गुड्डू पंडित और उनके भाई मुकेश शर्मा हो या नौगांवा सादात के विधायक अशफाक अली खान सबको रालोद ने अपने टिकट पर चुनाव लड़ाया। पिछले विधानसभा चुनावों में भी रालोद ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करके 46 सीटों पर प्रत्‍याशियों को लड़ाया था। इसमें उसके खाते में 9 सीटें आई थीं। इस बार यह संख्‍या घटकर एक रह गई।

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