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BJP के सिंहासन में कुछ यूं जड़े 4 'B', वनवास से लौट कर बन गई बेताज बादशाह
सियासी पायदान पर पहले नंबर पर पहुंचने वाली भाजपा को चार बी यानी ब्रांड मोदी, ब्राह्मण, बैकवर्ड, और बैकलैश ने उसका मुकाम दिला दिया। लोकसभा चुनाव में मोदी ने जब दिल्ली के तख्त के लिए उत्तर प्रदेश का रास्ता चुना, तो सख्त पड़ी जमीन बीज बोने के अनुकूल होने लगी
ANURAG SHUKLA
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए 300 से ज्यादा सीटें जीतकर अपनी सियासी जमीन वापस पा ली है। दरअसल भारतीय जनता पार्टी की बात की जाय तो उसे चार ‘बी’ ने इस मुकाम तक पहुंचा दिया। सियासी पायदान पर पहले नंबर पर पहुंचने वाली भाजपा को चार बी यानी ब्रांड मोदी, ब्राह्मण, बैकवर्ड, और बैकलैश ने उसका मुकाम दिला दिया।
बंजर में बीज
भाजपा ने 300 से ज्यादा सीटें जीती हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले सात गुना सीटें ज्यादा जीतकर उसने खुद को सियासी तौर पर मुकम्मल कर लिया है। यह बात और है कि लोकसभा में चली सुनामी और लोकसभा नतीजों के मुताबिक उसे 337 सीटें तो हासिल नहीं हुई पर जो सीटें मिलीं, वो इससे बहुत कम भी नहीं हैं उसने कमल को पूरी तरह खिला दिया है। दरअसल पिछले दो चुनाव से उत्तर प्रदेश की सियासी जमीन कमल के लिए बंजर हो गयी थी। 2007 और 2012 के चुनाव में अपने ही शक्ति-प्रदेश में सीटों के लिहाज से 50 का आंकडा उसके लिए दूभर हो रहा था।
लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने जब दिल्ली का तख्त हासिल करने के लिए उत्तर प्रदेश का रास्ता चुना तो सख्त पड़ी सियासी जमीन भाजपा के सियासी बीज बोने के अनुकूल होने लगी। लोकसभा चुनाव में वाराणसी से उठी सुनामी ने उत्तर प्रदेश में क्लीन स्वीप किया तो विधानसभा चुनाव में भी कमल खिलने की इबारत लिखी जाने लगी। उत्तर प्रदेश में 14 साल के सियासी वनवास से निकलने के लिए नायक मिल गया था। नायक ब्रांड बन चुका था। ब्रांड मोदी। यानी नरेंद्र दामोदर दास मोदी।
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B से ब्रांड मोदी
ब्रांड मोदी को लोकसभा में जिस तरह से लोगों ने हाथोंहाथ लिया उससे जगी उम्मीद की सुनामी इतनी बड़ी थी कि नोटबंदी का पहाड़ उसे रोक नहीं सका। मोदी ने जिस तरह से लोकसभा चुनाव में टोपी पहनने से इनकार कर अपने समर्थकों को एकजुट किया था वैसे ही इस चुनाव में शमशान, रमज़ान और दीवाली की बातकर इसी वर्ग को एक सियासी संदेश दिया।
ब्रांड मोदी की देन थी कि इस पूरे चुनाव में बहुत सी सीटों पर वोट भाजपा के अलावा भी मोदी को मिला है। नरेंद्र मोदी ने जिस तरह अपनी रैलियों से माहौल बनाया। जिस तरह से अपनी लकीर को लंबा किया उससे साफ है कि वो पूरे चुनाव में ‘एक्ट’ कर रहे थे और दूसरे ‘रिएक्ट’। कानून व्यवस्था, बिजली, पानी, सड़क, भ्रष्टाचार हर मुद्दे पर जहां मोदी ने मुद्दे छेड़े वहीं दूसरे दलों ने सिर्फ प्रतिक्रिया ही की। यानी हर जगह मोदी लीक बना रहे थे और दूसरे उस पर चल रहे थे।
वहीं जहां मोदी पर गुजरात के गधों को लेकर अखिलेश यादव ने हमला किया तो मोदी ने उसे मुद्दा बना दिया। इस कदर कि यह दांव भी उनके हक में चला गया। बनारस में पार्टी की ढीली हालत का पता चलते ही एक जुझारु लड़ाके की तरह मोदी ने तीन दिन बिताकर अपनी पार्टी की हालत पूरे इलाके में सुधार दी। ऐसे में साफ है कि इस चुनाव की ताबीर भाजपा के पक्ष में लिखने में ब्रांड मोदी का बड़ा हाथ है।
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बीजेपी का दूसरा B
उत्तर प्रदेश में भाजपा के कमल की सेहत एक और ‘बी’ ने सुधारी। वह है बी यानी ब्राह्मण। इस बार के चुनाव बहुत ही अलग तरह के थे। इस बार चुनाव में दो ऐसे वर्गों ने चुनाव की तस्वीर बदली जो पहले कभी नहीं हुआ था। ये दो वर्ग हैं सवर्ण और पिछड़े मतदाता। पहली बार ऐसा हुआ कि सवर्ण मतदाताओं का करीब करीब सारा वोट भाजपा के पक्ष में गया है।
ब्राह्मण मतदाताओं ने इस बार एक मुश्त भाजपा के पक्ष में वोट दिया है। यही ब्राह्मण वोट जब 2007 में बसपा में गये तो उसकी पूर्ण बहुमत की सरकार बनी और जब 2012 में प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर जब सपा के साथ खड़े हुए तो उसकी पहली बार यूपी में उसकी पूर्ण बहुमत की सरकार बन गयी।
इस बार न सिर्फ ब्राह्मणों बल्कि क्षत्रियों के एक बड़े हिस्से, कायस्थ, बनिया भूमिहार समेत पूरे सवर्ण वर्ग ने दिल खोलकर भाजपा को अपनाया।इस बार ब्राह्मण-ठाकुर, ब्राह्मण-भूमिहार, ठाकुर-भूमिहार जातियों ने भेद मिटाकर एक साथ भाजपा को वोट दिया।
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साथ आया बैकवर्ड का B
इस बार पिछड़ी जातियों यानी, तीसरे ‘बी’ जिसका मतलब है बैकवर्ड है, ने भी भाजपा को फर्श से अर्श तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई है। पिछड़ी जातियों में गैरयादव जातियों के करीब 60 फीसदी वोटों ने भाजपा की सियासी जमीन को विस्तार दिया और रही-सही कसर दलित वोटबैंक के गैरजाटव मतदाताओं के 65 फीसदी समर्थन ने पूरी कर दी।
इस बार की खास बात यह रही है कि जाटव और यादव दोनों मतदाताओं ने भी भाजपा को अछूत नहीं माना। कई जगहों पर स्थानीय विवादों और रंजिश के चलते जहां दलित जीत रहे थे वहां यादव और जहां यादव जीत रहे थे वहां दलितों ने अपनी परंपरागत पार्टी तक को छोड़ दिया।
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अहम है चौथा B
चौथे ‘बी’ यानी ‘बैकलैश’ जिसे इन दिनों मीडिया में ‘रिवर्स पोलराइजेशन’ का नाम दिया जा रहा है उसकी बहुत बड़ी भूमिका है। दरअसल मायावती ने 100 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे और मुस्लिम वोटों को न बंटने देने के लिए कांग्रेस के साथ सपा ने गठबंधन कर यह संदेश दिया कि सभी दलों को मुस्लिम वोट की चिंता है।
ऐसे में इसकी प्रतिक्रिया में बहुसंख्यक वोट एक हो गये और कई तरह के साधारण समीकरण नज़रअंदाज कर दिए गये। यही वजह है कि दलितों में जाटव और पिछड़ों में यादव वोट भी भाजपा के खाते में आए। इसके अलावा जाट, दलित ने एक साथ वोट दिया जो इससे पहले सिर्फ 2014 के लोकसभा चुनाव में ही देखने को मिला था।
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2019 का रास्ता
भारतीय जनता पार्टी ने इस बार एक बड़ा खतरा मोल लिया था। इस बार जिताऊ उम्मीदवार की तलाश में उसने बहुत से दलबदलुओं को टिकट दिया था। करीब तीन दर्जन सीटों पर मोदी ने अपनी विशिष्ट शैली में इस खतरे को अवसर में बदल दिया। वहीं इस बार भाजपा ने पूरा चुनाव किसी चेहरे पर नहीं लड़ा। यह प्रयोग बिहार में फेल हो चुका था ऐसे में यूपी जैसे राज्य में यह एक बड़ा मुद्दा था, पर भाजपा ने खतरा मोल लिया। दरअसल यह दांव से ज्यादा मजबूरी था क्योंकि किसी एक नाम पर सहमत होने से लेकर उसके झंडे तले चुनाव लड़ाना यूपी के महारथियों के लिए बहुत मुश्किल था।
उतर प्रदेश में चुनाव नतीजों ने सिर्फ यूपी में भाजपा की सीटें ही नहीं बढा दी हैं बल्कि वोट फीसदी में भी करीब तीन गुना बढोत्तरी की है।इस बार भाजपा को उसके सहयोगियों के साथ करीब 41 फीसदी वोट मिले हैं जो 2012 के 15 फीसदी आंकडे से करीब तीन गुना हैं। इस जीत का असर सरकार तक सीमित नहीं है।यूपी में सरकार बनाने और सीटें बढाने का मतलब है कि राज्यसभा में भाजपा की ताकत बढ़ना जो इस समय केंद्र सरकार के गले की फांस बन गया है। इसके अलावा सरकार को अपना राष्ट्रपति चुनवाने में भी काफी आसानी होगी। वहीं सबसे अहम यह कि यह साबित करता है कि नोटबंदी और सिर्फ वादे करने के आरोप को झुठलाते हुए मोदी लहर कायम है। और यही लहर 2019 में भाजपा की सियासी नैय्या पार लगा सकती है।