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UP विधानसभा चुनाव 2017: प्रचार के दौरान बनीं तरह-तरह की सुर्खियां

aman
By aman
Published on: 12 March 2017 6:10 PM IST
UP विधानसभा चुनाव 2017: प्रचार के दौरान बनीं तरह-तरह की सुर्खियां
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UP विधानसभा चुनाव 2017: इस बार प्रचार में बनीं तरह-तरह की सुर्खियां

लखनऊ: यूपी विधानसभा चुनाव चुनाव के केंद्र में मानो काशी ही रही। चुनाव खत्म होते-होते 40 सीटों की आखिरी लड़ाई का ग्राउंड ज़ीरो काशी बन गया। सभी पार्टियों ने काशी में पूरी ताकत झोंक दी। दिग्गज नेता कई-कई दिन तक यहीं डेरा डाले रहे। मोदी का तीन दिन अपने संसदीय क्षेत्र काशी में डेरा डालना चर्चा का विषय बन गया।

सोशल साइट्स पर भी काशी की लड़ाई ही छाई रही। मोदी काशी में रोड शो करते हुए विश्वनाथ मंदिर व कालभैरव मंदिर पहुंचे तो उसी दिन दोपहर में राहुल गांधी,अखिलेश यादव और डिंपल यादव ने भी रोड शो निकालकर अपने प्रत्याशियों के पक्ष में माहौल बनाया।

मोदी शास्त्री जी के घर भी गए

अखिलेश यादव पत्नी के साथ पहली बार विश्वनाथ मंदिर में भी मत्था टेकने पहुंचे। मोदी उस रात दिल्ली चले गए मगर दूसरे ही दिन फिर काशी पहुंच गए और रोड शो निकालकर चुनावी सभा भी की। वे रात में भी काशी में ही रुके रहे। तीसरे दिन भी मोदी मुख्य रूप से यादवों का आस्था का केंद्र माने जाने वाले गढ़वाघाट और लालबहादुर शास्त्री के पैतृक गृह गए और चुनावी सभा भी की।

विपक्षियों ने की मोदी की खिंचाई

मोदी विरोधियों ने मोदी के काशी प्रवास पर उनकी खिंचाई की कि किसी पीएम को इस स्तर तक जाकर चुनाव प्रचार नहीं करना चाहिए। भाजपा की ओर से इसका यह जवाब दिया गया कि क्या मोदी अपने चुनाव क्षेत्र में भी मतदाताओं से नहीं मिल सकते? पार्टी नेताओं का कहना था कि पूर्वांचल में हार देखकर मोदी का काशी में रुकना विरोधियों को रास नहीं आ रहा।

आगे की स्लाइड्स में पढ़ें और किन खबरों ने बटोरी सुर्खियां ...

बीपीएल से मंत्री और रेप तक का गायत्री

पूरे चुनाव के दौरान अखिलेश सरकार के कैबिनेट मंत्री गायत्री प्रजापति सपा के लिए मुसीबत बने रहे। चुनाव के पहले खनन मामले की जांच फिर यदुकुल संग्राम में उनको लेकर रस्साकशी फिर बीच चुनाव उन पर रेप का केस, सब कुछ तो हो गया। पहले अखिलेश यादव ने गायत्री को बेईमान करार दे कर मंत्री पद से हटाया फिर चंद दिन बाद वापस मंत्री बना दिया। गायत्री को सपा का टिकट देने और बाद में उनके लिए सभा करने पर मुख्यमंत्री अखिलेश की भी काफी आलोचना हुई। वैसे सभा में भी खूब नाटक हुआ। पहले सभा में गायत्री ने जमकर आंसू बहाए और फिर अखिलेश के आने पर मंच से उतरकर नीचे जाकर लोगों के बीच बैठ गए।

गायत्री को कैबिनेट से बर्खास्त न करने पर भी विपक्षी दलों ने सीएम पर जमकर निशाना साधा। सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर गायत्री के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुयी। गायत्री व उसके साथियों पर जितनी गंभीर धाराएं लगी हैं उसमें तत्काल गिरफ्तारी हो जानी चाहिए थी लेकिन गायत्री अपने चुनाव क्षेत्र में खुलेआम घूमते और प्रचार करते रहे। मतदान के बाद गायत्री फरार हो गए। गायत्री के प्रति अगाध प्रेम की जो भी वजह रही हो, खुल कर कुछ सामने नहीं आया।

डिंपल यादव की सक्रियता

इस बार के चुनाव की एक और खूबी यह रही कि सीएम अखिलेश यादव की पत्नी व सांसद डिम्पल यादव ने अलग पहचान बनाई। अभी तक अखिलेश की छाया में रहकर ही राजनीति करने वाली डिंपल ने धुंआधार प्रचार किया और इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी पर तीखा हमला भी बोला। सपा प्रत्याशियों में उनकी सभाओं की काफी डिमांड भी थी। सपा में स्टार प्रचारकों की कमी होने व मुलायम सिंह यादव के प्रचार से किनारा कर लेने के कारण डिंपल को अपने पति की मदद के लिए मैदान में उतरना पड़ा। डिंपल ने विभिन्न जिलों में चुनावी सभाएं कर सपा प्रत्याशियों की स्थिति मजबूत बनाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी।

डिंपल ने लगभग सभी चुनाव सभाओं में मोदी पर हमला करते हुए यह बात जरूर कही कि पीएम ने मन की बात तो बहुत कर ली मगर कभी काम की बात भी कर लिया करें। अखिलेश तो लखनऊ कैंट में अपने छोटे भाई प्रतीक की पत्नी अपर्णा यादव का प्रचार करने नहीं गए मगर डिंपल ने इस इलाके में भी सभा कर अपनी देवरानी अपर्णा यादव को वोट देने की अपील की।

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‘दादा’ बने मुसीबत

वैसे तो इस चुनाव में राजनीतिक दलों ने कई प्रमुख नेताओं का टिकट काटा मगर बीजेपी में एक टिकट का कटना सुर्खियों में रहा। वाराणसी शहर दक्षिणी के सात बार के विधायक और भाजपा के कद्दावर नेता श्यामदेव रायचौधरी ‘दादा’ की नाराजगी दूर करने के लिए बीजेपी को काफी पापड़ बेलने पड़े। पीएम का संसदीय क्षेत्र होने के कारण वाराणसी में बीजेपी वैसे भी अतिरिक्त सतर्कता बरत रही थी। उनकी नाराजगी से लखनऊ और दिल्ली में पार्टी के अंदर इस बात को लेकर बैचेनी रही कि इसका बनारस में पार्टी उम्मीदवारों पर प्रभाव पड़ेगा। उन्हें मनाने के लिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, ओम माथुर और केशव प्रसाद मौर्य ने काफी प्रयास किया मगर नाकाम रहे।

उन्हें विधानपरिषद का सदस्य बनाने का ऑफर भी दिया गया मगर दादा नहीं माने। अंतिम समय तक उम्मीदवार बदलने तक की चर्चा चली। वैसे पार्टी ने यहां घोषित प्रत्याशी नीलकंठ तिवारी का टिकट नहीं काटा। दादा को मनाने के लिए अंत में पार्टी ने ब्रह्मास्त्र चला। बाबा भोलेनाथ का दर्शन करने के लिए जाते समय प्रधानमंत्री मोदी उन्हें हाथ पकडक़र अपने साथ मंदिर के गर्भगृह में ले गए और पूरी पूजा के दौरान उन्हें अपने पास बिठाए रखा। प्रधानमंत्री ने कुछ देर उनसे बातचीत की। वैसे एन मतदान वाले दिन दादा ने राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया।

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डॉक्टरी और रेप

किसी समय पीस पार्टी पूर्वांचल में एक ताकत बन कर उभरती दिखती थी लेकिन चुनाव का आखिरी दौर आते-आते इस पार्टी का नाम गलत वजह से चर्चा और सुर्खियों में रहा। असल में इस पार्टी के अध्यक्ष डा.अयूब पर एक युवती के यौनशोषण का आरोप लगा। युवती के परिजनों का आरोप था कि डॉक्टर बनाने का सपना दिखाकर डा.अयूब चार साल तक यौनशोषण करते रहे। परिजनों का कहना था कि लोकलाज के डर से उन्होंने इस बाबत पहले कोई शिकायत नहीं दर्ज कराई।

2012 के चुनाव में खलीलाबाद सीट से चुनाव जीतने वाले डा.अयूब ने इसे समाजवादी पार्टी की साजिश बताते हुए कहा कि उन्हें चुनाव में हरवाने के लिए यह साजिश रची गयी। उन्होंने कहा कि 2012 में भी उन्हें ऐसे एक मामले में फंसाने की साजिश हुई थी मगर बाद में उस मामले में कोई दम नहीं निकला। कहने को डॉक्टर साहब पूरा मामला फर्जी और राजनीतिक साजिश करार दे रहे हैं। लेकिन अभी तो बात खत्म होना बाकी ही है।

बसपा अब तक के सबसे बुरे दौर में, मायावती के लिए राज्यसभा के रास्ते हो सकते हैं बंद

बहनजी का मुस्लिम दांव

यह चुनाव ऐसा रहा जिसमें हिन्दू-मुस्लिम कार्ड खुल्लमखुल्ला खेला गया। वह भी उस सथ्तिि में जबकि सुप्रीम कोर्ट का स्पष्टï आदेश है कि कोई भी दल चुनाव धर्म व जाति का सहारा लेकर मतदाताओं का समर्थन हासिल करने की कोशिश न करे और चुनाव आयोग इसकी सख्ती से निगरानी करे मगर सही मायने में इसका पालन होता नहीं दिखा।

बसपा सुप्रीमो मायावती ने चुनाव से पहले बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर इस बात का ढिंढोरा पीटा कि उन्होंने किस-किस जाति के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। वे जोर देकर यह बताना भी नहीं भूलीं कि बसपा ने 97 मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया है। मुस्लिम बहुल इलाकों में वे पार्टी के मुस्लिम प्रत्याशियों के बारे में बतना नहीं भूलती थीं। इसके पीछे बहनजी की कोशिश मुस्लिमों का समर्थन हासिल करना था मगर चुनाव आयोग ने इसका कोई संज्ञान नहीं लिया।

एक नारा जो बन गया मजाक

चुनाव से पहले कांग्रेस ने नारा दिया था -27 साल यूपी बेहाल। कांग्रेस ने इसी नारे के साथ यूपी भर में यात्राएं निकालीं, सभाएं कीं और जगह-जगह होर्डिंग, बैनर-पोस्टर लगवाए। चुनाव से ऐन पहले पार्टी ने सपा के साथ ही चुनावी गठबंधन कर लिया। इसके बाद आनन-फानन में सारे होर्डिंग, पोस्टर-बैनर हटा लिए गए। दीवारों पर लिखे नारे पुतवा दिए गए और कांग्रेस नेताओं ने भी अपने भाषणों में इस नारे का जिक्र बंद कर दिया। वजह थी कि जिन 27 साल का जिक्र किया गया था उसमें सपा के शासनकाल भी तो थे। विरोधी दलों खासकर बीजेपी ने इस नारे को लेकर सपा-कांग्रेस गठबंधन पर जमकर हमला बोला।

सोशल साइट में भी यह नारा चर्चा का विषय बना रहा और लोगों ने इसे लेकर कांग्रेस का खूब मजाक उड़ाया। कहने वालों ने तो यहां तक कह डाला कि गठबंधन उसकी मजबूरी थी क्योंकि वह अपने दम पर सारी सीटों पर चुनाव लडऩे की स्थिति में ही नहीं थी।

माफिया से माननीय बने मुख्तार अंसारी को मिली पैरोल, कर सकेंगे चुनाव प्रचार

विलय पर बवाल

मुख्तार अंसारी की वजह से कौमी एकता दल को लेकर खूब राजनीतिक नाटक हुआ। चुनाव के काफी समय पहले शुरू हुआ यह नाटक चुनावी तिथि नजदीक आने तक जारी रहा। पहले शिवपाल यादव ने कौएद का सपा में विलय करा दिया तो यह बात मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का नागवार गुजरी। उनके लाल झंडी दिखाने पर मुलायम को अपना फैसला बदलना पड़ा और विलय को रद्द कर दिया गया। बाद में बसपा के कुछ नेताओं ने पार्टी सुप्रीमो को अंसारी बंधुओं को पार्टी में लेने के फायदे बताए तो मायावती ने इसकी मंजूरी दे दी। ऐन चुनाव के समय अंसारी बंधु बसपा में शामिल हो गए।

मायावती ने अंसारी बंधुओं के साथ ही मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी को भी घोसी से टिकट दे दिया। वैसे मुख्तार समर्थकों को उस समय मायूसी हाथ लगी जब उन्हें मिली पेरोल पर चुनाव आयोग ने आपत्ति जता दी। मुख्तार समर्थकों की लाख कोशिशों के बावजूद दिल्ली हाईकोर्ट ने पेरोल को रद्द करते हुए मुख्तार को प्रचार करने की अनुमति नहीं दी। कोर्ट ने स्पष्टï कहा कि जेल से चुनाव लडऩे के अधिकार किसी को प्रचार करने के लिए रिहाई का अधिकार नहीं देता। मुख्तार भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के आरोप में जेल में बंद हैं

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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