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शिवपाल और गायत्री पर मेहरबान मुलायम, क्या अब दीपक सिंघल को बचाएंगे

देश के सबसे बड़े राजनीतिक कुनबे में छह दिन तक चले घमासान में शनिवार को सब कुछ सामान्य हो गया। हार जीत के तराजू पर देखें तो ना किसी की हार हुई ओर न किसी की जीत, लेकिन सीएमअखिलेश की नापसंद होने के बावजूद मुख्य सचिव बनाए गए दीपक सिंघल इसमें बेवजह पिस गए।

tiwarishalini
Published on: 18 Sept 2016 3:13 AM IST
शिवपाल और गायत्री पर मेहरबान मुलायम, क्या अब दीपक सिंघल को बचाएंगे
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vinod kapoor Vinod Kapur

लखनऊ: देश के सबसे बड़े राजनीतिक कुनबे में छह दिन तक चले घमासान में शनिवार को सब कुछ सामान्य हो गया। हार जीत के तराजू पर देखें तो ना किसी की हार हुई ओर न किसी की जीत, लेकिन सीएम अखिलेश की नापसंद होने के बावजूद मुख्य सचिव बनाए गए दीपक सिंघल इसमें बेवजह पिस गए।

छह दिन तक चले ड्रामे में शिवपाल सिंह यादव और गायत्री प्रसाद प्रजापति अपना पद पा गए, लेकिन दीपक सिंघल का आंगन अभी तक सूखा है। आखिर इस पूरे मामले में उनकी क्या गलती थी।

शिवपाल और गायत्री प्रसाद प्रजापति को उनकी कुर्सी मुलायम सिंह यादव के हस्तक्षेप के बाद मिली। दीपक सिंघल, शिवपाल के खास पसंद माने जाते हैं। ये वो ही दीपक सिंघल हैं जिन्होंने हवाई जहाज से दिल्ली जाते वक्त मुलायम सिंह यादव के पैर पकड़े थे और वयोमबाला के रहते उन्हें पानी तक पिलाया था। नौकरशाही हलकों में अब ये सवाल तेजी से उठाया जा रहा हे कि क्या अब मुलायम दीपक सिंघल पर भी मेहरबान होंगे।

नौकरशाही में चल रही चर्चा के अनुसार, दीपक सिंघल को राजनीतिक कारणों से नहीं हटाया गया। वो तो मौका ऐसा था कि अखिलेश ने संभवत: पिता से सीखा हुआ चरखा दांव चल दिया और सिंघल चारो खाने चित हो गए। जब सपा में ये ड्रामा चल रहा था तब दीपक सिंघल ,मुलायम के साथ दिल्ली में थे।

अखिलेश के एक समर्थक और सपा नेता के अनुसार, अब सीएम किसी भी दागदार लोगों को अपने मंत्रिमंडल में नहीं रखना चाहते। इसीलिए गायत्री प्रसाद प्रजापति और राज किशोर को बाहर का रास्ता दिखाया गया। हालांकि अखिलेश के नहीं रहने के बावजूद दीपक सिंघल सीएस बन गए थे, लेकिन वो अपनी फिसलती जुबान के कारण अकसर सीएम के निशाने पर रहते थे।

अखिलेश ने आनन फानन में दीपक सिंघल का मुख्य सचिव का पद छीनकर राहुल भटनागर को दे दिया। राहुल की छवि अच्छी है और उन्हें तेज तर्रार अधिकारी माना जाता है लेकिन यूपी के जो राजनीतिक हालात चल रहे हैं उसमें किसी अधिकारी को अपना पद पक्का नहीं मानना चाहिए। यही बात मंत्रियों पर भी लागू होती है ।



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