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Sonbhadra: नमामि गंगे-हर घर नल, तीन प्रोजेक्टों पर अफसरों ने कर डाला 1186 करोड़ रुपये का खेल, शुद्ध पेयजल की आपूर्ति पर संकट

Sonbhadra News: नमामि गंगे-हर घर नल परियोजना के तीन प्रोजेक्टों में अफसरों ने 1186 करोड़ रुपये का घोटाला कर डाला। अब लगता है कि प्रदूषित पानी पर ही जीवन गुजारने की विवशता बनी रहेगी।

Kaushlendra Pandey
Published on: 31 Oct 2022 8:04 AM IST
In Sonbhadra, officers played a game worth Rs 1186 crore on three projects, how will the supply of pure drinking water
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सोनभद्र: नमामि गंगे-हर घर नल के तीन प्रोजेक्टों में 1186 करोड़ रुपये का घोटाला

Sonbhadra News: 2019 में चुनावी अभियान के दौरान ही पीएम मोदी (PM Narendra Modi) ने स्पष्ट कर दिया था कि अगला पांच साल घर-घर पानी यानी प्रत्येक व्यक्ति को शुद्ध पेयजल उपलबध कराने पर काम होगा। किए वायदे को उन्होंने निभाया भी और देश के अन्य हिस्सों के साथ, यूपी के विंध्य रीजन में भी सीएम योगी (CM Yogi Adityanath) के साथ मिलकर सोनभद्र में 14 और मिर्जापुर में नौ परियोजनाओं की नींव रखी। इसमें लगभग 1186 करोड़ रुपये की लागत वाली तीन परियाजनाओं की सौगात, यूपी के आधी बिजली की जरूरत पूरी करने के एवज में देश के तीसरे सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्र का दर्जा रखने वाले म्योरपुर, बभनी और अनपरा अंचल के लिए प्रदान की।

लेकिन सस्ती वाहवाही लूटने के चक्कर में तत्कालीन अफसरों ने ऐसा खेल खेला कि प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद भी, इससे संतृप्त होने वाली करीब पांच लाख की आबादी के लिए शुद्ध पेयजल की उपलब्धता वास्तव में सुनिश्चित हो पाएगी? या फिर पूर्व की तरह प्रदूषित पानी पर ही जीवन गुजारने की विवशता बनी रहेगी, यह एक बड़ा सवाल बन गया है।

यहां फंस रहा पेंच, अफसरों से भी नहीं देते बन पा रहा जवाब

देश के विशालतम जलाशयों में एक रिहंद डैम के पानी में मरकरी सहित कई खतरनाक रासायनिक तत्व पाए जाने की पुष्टि कई बार हो चुकी है। एनजीटी की तरफ से गठित शीर्ष भूजल वैज्ञानिकों वाली कमेटी भी अगस्त 2015 की रिपोर्ट में पेज नंबर 11 पर इस बात का जिक्र करते हुए रिपोर्ट एनजीटी को सौंप चुकी है । इस रिपोर्ट पर दिसंबर 2018 में एनजीटी की तरफ से कई निर्देश भी दिए जा चुके हैं। बावजूद अफसरों ने इस रिपोर्ट का वैज्ञानिक अध्ययन या शीर्ष वैज्ञानिकों की कमेटी से कोई विमर्श-राय लिए बगैर ही, रिहंद डैम के पानी पर आधारित 1186 करोड़ रुपये की लागत वाले बीजपुर के झीलो, अनपरा के परासी और कुलडोमरी के बेलवादह पेयजल परियोजना का खाका खींच डाला। पीएम-सीएम के हाथों इसका शिलान्यास कराने के साथ ही, इन प्रोजेक्टों पर अब तक करोड़ों खर्च भी किए जा चुके हैं।

हालांकि संबंधित अफसर, प्रोजेक्ट वाली जगह से उठाए जाने वाले पानी को पीने योग्य और ट्रीट करने के बाद आपूर्ति की बात कह रहे हैं । लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि दुनिया में अब तक कोई ऐसी सक्सेसफुल तकनीक सामने नहीं आई है जो किसी जलाशय से रोजाना 10 करोड़ लीटर उठाए जाने वाले पानी से मरकरी को अलग कर सके।

रिहंद जलाशय के अलावा पानी का दूसरा स्रोत ही रहेगा सही विकल्प

वैज्ञानिक, भूजल तथा पर्यावरण के शीर्ष वैज्ञानिकों में एक तथा सोनभद्र में प्रदूषण पर लंबे समय तक अध्ययन कर चुके डा. एके गौतम Newstrack से इस मसले पर, एक्सक्लूसिव वार्ता में बताते हैं,"रिहंद डैम में सिर्फ मरकरी ही नहीं, कई ऐसे खतरनाक रासायनिक तत्व हैं, जो मानव जीवन के लिए नुकसानदेह हैं। जहां तक मरकरी की बात है तो अभी तक ऐसी कोई सक्सेसफुल तकनीक नहीं आई है ।


जिससे यह दावा किया जा सके कि किसी भी दशा में पानी से मरकरी को अलग किया जा सकता है। जो तकनीक है भी वह इतनी महंगी है, जिसे आसानी से प्रयोग किया जाना संभव है।" जहां रिहंद जलाशय से रोजाना तीन प्रोजेक्टों के जरिए 10 करोड़ लीटर पानी की आपूर्ति का सवाल है तो इससे राहत नहीं, बल्कि जलाशय में पानी कम होने के साथ ही मरकरी सहित अन्य रासायनिक तत्वों की मात्रा और गंभीर रूप अख्तियार करती जाएगी। इसका सही निदान यही है कि प्रोजेक्टों के लिए पानी की जरूरत का दूसरा स्रोत बनाया जाए।

एनजीटी के निर्देश के बाद भी नहीं स्थापित हो सकता मरकरी के अध्ययन का केंद्र

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एनजीटी की तरफ से सोनभद्र के पर्यावरण में प्रदूषण सहने की क्षमता कितनी रह गई है, इसके विस्तृत अध्ययन और सोनभद्र के पानी, मिट्टी, हवा में मरकरी की मौजूदगी और उसके दुष्प्रभाव के विस्तृत अध्ययन के लिए केंद्र स्थापित करने का निर्देश दिया था। तात्कालिक समय में म्योरपुर ब्लाक मुख्यालय और अनपरा के औड़ी में केंद्र स्थापित करने का प्रस्ताव भी बनाया गया । लेकिन अब इस प्रस्ताव पर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मौजूदा अफसर चर्चा करने से भी परहेज करने लगे हैं।

बता दें कि एनजीटी की कोर कमेटी ने जो रिपोर्ट दी थी उसमें यह स्पष्ट इंगित किया था कि मरकरी का कोई सामान्य प्रभाव नहीं है। इसके दुष्प्रभाव को लेकर विस्तृत अध्ययन होने के बाद ही, इससे राहत को लेकर कोई प्रभावी प्रक्रिया अमल में आ सकती है। बावजूद न तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से ही इस पर गंभीरता दिखाई गई, न ही पेयजल प्रोजेक्ट तैयार करने वालों ने ही इस बिंदु पर ध्यान देने की जरूरत समझी। रविवार को भी इस बारे में जानकारी के लिए क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी टीएन सिंह ने उनके सेलफोन पर संपर्क की कोशिश की गई लेकिन वह उपलब्ध नहीं हो पाए।

इन परियोजनाओं को लेकर उठाए जा रहे हैं सवाल

बीजपुर में 727.59 करोड़ रुपये की लागत से झीलों , पेयजल प्रोजेक्ट का निर्माण किया जा रहा है। इससे रोजाना बभनी, म्योरपुर और दुद्धी ब्लाक के 169 गांवों में लगभग तीन लाख आबादी को पानी की आपूर्ति दी जानी है। अनपरा के परासी में 312.51 करोड़ रुपये की लागत वाले प्रोजेक्ट से 17 ग्राम पंचायतों की एक लाख आबादी को रोजाना दो करोड़ लीटर पानी दिया जाना है। कुलडोमरी के बेलवादह में 146 करोड़ की लागत वाली परियोजना से 34 टोलों की 60 हजार से अधिक आबादी को प्रतिदिन एक करोड़ लीटर पानी की आपूर्ति की जानी है।



Shashi kant gautam

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