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Fertilizer Subsidy Scam: 1200 करोड़ का घोटाला रफा-दफा

Fertilizer Subsidy Scam: यूपी का खाद घोटाला भी कुछ बिहार की ही तर्ज पर हुआ। घोटालेबाजों ने कागजों पर खाद का उत्पादन किया और उत्पादित खाद को सरकार के हाथों सौंपने के लिए रिकॉर्ड में कई ऐसे वाहनों के नंबर दिखाये जो जांच में दुपहिया वाहनों के निकले।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 23 Aug 2022 2:17 PM GMT
1200 करोड़ का घोटाला रफा-दफा
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1200 करोड़ का घोटाला रफा-दफा (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

1200 Crore Fertilizer Subsidy Scam: उत्तर प्रदेश में साल की शुरूआत बड़े ही शानदार ढंग से हुई करीब 1200 करोड़ रूपये के खाद सब्सिडी घोटाले को बहुत ही सफाई से रफा-दफा कर देने का इंतजाम कर दिया गया है। ऐसा भी नहीं है कि जांच में इस घोटाले के सूत्र नहीं मिल रहे थे। जांच एजेंसिंयों ने यह भी पता कर लिया था कि इसमें कितने और कौन-कौन से अधिकारी उद्योगपति और राजनेता शामिल हैं। लेकिन पहली जनवरी को प्रदेश सरकार के संयुक्त सचिव बालकृष्ण दुबे ने कृषि निदेशक को लिखे पत्र (संख्या 2315) में विशेष अनुसंधान शाखा (कृषि) अपराध अनुसंधान प्रकोष्ठ नामक उस एजेंसी को समाप्त करने की सूचना दी है जिसका गठन ही इस घोटाले की जांच के लिए हुआ था। इस एजेंसी ने अपनी जांच में बताया था कि पिछले दस साल के दौरान हुए घोटाले में राज्य के लगभग सात कृषि सचिव, चार विशेष सचिव, (कृषि) और चार कृषि मंत्री संलिप्त रहे हैं। खास बात यह है कि इस एजेंसी को इस घोटाले की जांच केन्द्र सरकार के आदेश पर दी गई थी। हालांकि राज्य के कृषि राज्यमंत्री राजेंद्र सिंह उर्फ़ मोती सिंह का कहना है कि इस कदम से सरकार मनचाहे लोगों को अनचाहा लाभ देने की कोशिश नहीं कर रही है (देखें बातचीत) । लेकिन यह आशंका तो है ही कि इससे बड़े बड़ों को लाभ पहुंचेगा।

इस घोटाले के दस्तावेजों से गुजरते हुए बिहार के चर्चित चारा घोटाले (Fodder Scam) की याद आना स्वाभाविक है। चारा घोटाले की जांच में एक मजेदार तथ्य यह भी सामने आया था कि जब उन वाहनों की शिनाख्त और पड़ताल शुरू हुई जिन पर कथित रूप से गाय, भैंस, बकरियों की ढुलाई की गई थी। तब जांच में ऐसे कई नबंर मिले जो दरअसल स्कूटर या मोटरसाइकिल के थे। उत्तर प्रदेश का खाद घोटाला भी कुछ उसी तर्ज पर हुआ है। यहां के घोटालेबाजों ने कागजों पर खाद का उत्पादन किया और उत्पादित खाद को उत्तर प्रदेश सरकार के हाथों सौंपने के लिए रिकॉर्ड में कई ऐसे वाहनों के नंबर दिखाये जो जांच में दुपहिया वाहनों के निकले। यह घोटाला खाद सब्सिडी को लेकर हुआ है। किसानों को न्यूनतम मूल्य पर खाद उपलब्ध कराने के लिए केन्द्र सरकार खाद निर्माताओं को सब्सिडी प्रदान करती है। सब्सिडी का लाभ उठाने के लिए उत्पादन और वितरण के आंकड़ों में हेर-फेर का सिलसिला तो राज्य में पिछले 20 वर्षों से लगातार जारी है। लेकिन केन्द्र सरकार के कान तब खड़े हुए जब उसे राज्य को वर्ष 1998से 2000तक के केवल दो वर्षों में तकरीबन दो हजार करोड़ रूपये की सब्सिडी मुहैया करानी पड़ी। इस सब्सिडी में 75 फीसदी हिस्सा सिंगल सुपर फास्फेट (एसएसपी) के उत्पादन और वितरण से जुड़ा है। दानेदार एसएसपी की बिक्री दर 3,170 रूपये प्रति टन है। जबकि पाउडर एमएसपी 2,930 रूपये प्रति टन के हिसाब से बिकता है। केन्द्र सरकार इस पर 650 रूपये प्रति टन के हिसाब से सब्सिडी देती है। राज्य में एसएसपी उर्वरक आपूर्ति करने वाली 29 इकाइयां हैं। जिनमें ए श्रेणी की 8, बी श्रेणी की 10और सी श्रेणी की 11 इकाइयां आती हैं।

हर किसी ने धोए बहती गंगा में हाथ

दिलचस्प तथ्य है कि राज्य को एसएसपी उर्वरक आपूर्ति करने वाली कोई भी इकाई ऐसी नहीं है जिसने सब्सिडी घोटाले की बहती गंगा में हाथ न धोए हों। इस घोटाले में न केवल खाद उत्पादन की मात्रा को सब्सिडी का लाभ लेने के लिए बढ़ा चढ़ाकर दिखाया गया, बल्कि खाद बनाने में प्रयुक्त कच्ची सामग्री लाने और खाद के वितरण के लिए जिन वाहनों का प्रयोग किया गया, उनके नंबर स्कूटर, मोपेड और कारों के निकले हैं। कई खाद कारखानों के मालिकों ने तो अपने प्लांट के उत्पादन क्षमता से कई गुना अधिक खाद उत्पादन दिखाकर सब्सिडी का लाभ उठाया। गोरखपुर, बहराइच, फर्रूखाबाद, गजरौला (ज्योतिबा फुले नगर) फैजाबाद के कारखानों पर हेरा-फेरी के गंभीर मामले सामने आए हैं।

एक कंपनी ने यू्एचएन 1907 नबंर के टैंकर और यूपी 13 सी 9046 नंबर के स्वराज ट्रैक्टर से टनों खाद की सप्लाई दिखाई है। इस फैक्ट्री ने यूपी 21-6385 नंबर के वाहन का खाद ढुलाई के लिए उपयोग किया जाना बताया है जबकि आरटीओ ऑफिस में यह मोपेड हीरो मैजेस्टिक दर्ज है। यूपी21-9234नंबर के टेम्पो तथा यूपी21-8420 नंबर के चेतक स्कूटर से भी इसी कंपनी ने अपनी टनों खाद राज्य के विभिन्न इलाकों में पहुंचाकर सब्सिडी का लाभ कमाया है। फैजाबाद के एक कारखाने का किस्सा तो और भी दिलचस्प है। उसने खाद आपूर्ति के लिए जिन 10 वाहनों का नंबर दिया है, उनमें यूएसवाई 7321नंबर का खुला ट्रक भी शामिल है। शिकोहाबाद के एक कारखाने ने यूपी14-6938 नंबर के बजाज चेतक स्कूटर तथा यूएमयू 4767थ्री व्हीलर पर टनों खाद ढोने के कागजात खाद की सब्सिडी लेने के लिए सरकार को सौंपे।

संभागीय परिवहन कार्यालयों में पंजीकृत ही नहीं वाहन

इतना ही नहीं, यूएमएफ 9787 नामक जिस वाहन का प्रयोग इस कंपनी ने माल ढुलाई के लिए किया है। वह उत्तर प्रदेश सरकार के संभागीय परिवहन कार्यालयों में पंजीकृत ही नहीं है। रामपुर के खाद कारखाने ने सब्सिडी पाने के लिए जो दस्तावेज सरकार को सौंपे हैं उनमें से आठ गाड़ियों के नंबर दिए गए हैं जिनसे उसने राज्य के विभिन्न इलाकों में खाद की आपूर्ति की गयी है। इन गाडिय़ों में यूपी 14- 7400 नंबर की मारूति कार, यूपी 14-6016 नंबर का एमएलएम स्कूटर, यूपी14-9292 नंबर का बजाज सुपर औ यूपी13-1781 नंबर वाली मोटरसाइकिल भी शामिल हैं। रामपुर की भी एक कंपनी ने एलएमएल स्कूटर, टीवीएस सुज़ुकी और बजाज टैंपो पर टनों खाद ढोने का करिश्मा कर दिखाया है।लेकिन ये तो बानगी है। अगर इस घोटाले के दस्तावेज पलटें तो न जाने कितने ऐसे फर्जी वाहन मिलते हैं। इस तरह देखें तो इस खाद सब्सिडी घोटाले का चरित्र भी बिहार के चारा घोटाले से कम बेशर्म नहीं है। जिसमें अफसर, राजनेता, व्यावसायिक गठजोड़ ने खतरनाक खेल खेले तथा केन्द्र सरकार को चूना लगाया। सरकार ने इसका जिम्मा कृषि विभाग के अपराध अनुसंधान प्रकोष्ठ को सौंपा। अपराध अनुसंधान प्रकोष्ठ न केवल 50 मामलें में कृषि विभाग के 200 अधिकारियों-कर्मचारियों के विरूद्ध 50 करोड़ रूपये के घोटाले का पर्दाफाश किया और इन अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की अनुमति राज्य सरकार से मांगी।

राज्य सरकार ने न केवल दो उर्वरक निर्माताओं तथा कृषि विभाग के निदेशक सहित पांच अधिकारियों के विरूद्ध मुकदमा लिखवाए जाने की अनुमति प्रदान की। इस मामले में अपराध अनुसंधान प्रकोष्ठ ने तत्कालीन कृषि निदेशक इक्ष्वाकु सिंह, आरकेएस चौहान सहित पांच अधिकारियों को जेल भेज दिया। लेकिन परत दर परत खुलते घोटालों का अंत न होता देख अपराध अनुसंधान विभाग ने राज्य सरकार से किसी अन्य एजेंसी को भी शरीक किए जाने का अनुरोध किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) को भी इस घोटाले की जांच का जिम्मा सौंपा । दोनों एजेंसियों से जांच की बात तत्कालीन कृषि उत्पादन आयुक्त एवं अपर मुख्य सचिव अजय प्रकाश वर्मा ने अपने पत्र संख्या(3269/12-2-2000 एव 74/99 दिनांक 14 अगस्त, 2000) में स्वीकार की।

बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार 17 सौ करोड़ रूपये के सब्सिडी घोटाले की उर्वरक इकाइयों की जांच का कार्य ईओडब्ल्यू और कृषि विभाग के अपराध अनुसंधान शाखा को सौंपा गया। इस बैठक की कार्यवाही में यह स्वीकार किया गया कि आदेश के अनुपालन में जांच पूर्ण कर आख्या शासन को प्रेषित की जा चुकी है। वैसे राज्य के पूर्व कषिमंत्री दिवाकर विक्रम सिंह को खुद इस बात पर आश्चर्य होता है कि सरकार दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने से क्यों कतरा रही है? वह कहते हैं मेरे ही कार्यकाल में सब कुछ तय हो गया था। जांच रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी जा चुकी थी। लेकिन हकीकत यह है कि जांच एजेंसियों ने बाइकेरियस लायबिलिटी (जिसके तहत अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को गलती के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं) का जिक्र करते हुए इस घोटाले के लिए 1994 से लेकर 2000 तक के कृषि उत्पादन आयुक्त और कृषि सचिवों सहित कृषि मंत्री तक पर उंगली उठाई है। अगर इस जांच रिपोर्ट पर अमल हो तो 16 आईएएस अधिकारी सहित केन्द्र सरकार में बैठे तमाम आला अफसर और राजनेता इसकी जद में आते हैं। लेकिन ऐसा कुछ होता नहीं दिखता। भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बृजेन्द्र यादव पिछले साल 30 जून को जब कृषि उत्पादन आयुक्त बनने में सफल हुए तो उनकी निगाह सबसे पहले राज्य सरकार को सौंपी घोटाले की इस फाइल पर पड़ी।

घोटाले की जांच कर रहे एक वरिष्ठ आईपीएस अफसर के मुताबिक, सरकार की ओर से पहले इन जांचों को अलग-अलग निपटाए जाने के दबाव बनाए गए। इसके तहत कृषि अनुसंधान प्रकोष्ठ में तैनात 16 में से दस अफसरों का तबादला कर नए इस्पेक्टरों की तैनाती की पैरवी शुरू हो गई। लेकिन इस खराब जगह पर तैनाती के लिए खुले रेटों ने शासन-प्रशासन के कान खड़े कर दिए। जब मायावती मुख्यमंत्री बनी तो उन्होंने सभी फाइलें मंगाई। इसी प्रकरण में बृजेन्द्र की विदाई हो गई और अखण्ड प्रताप सिंह कृषि उत्पादन आयुक्त बना दिए गए। अफसर राजनेता और उद्योगपतियों के गठजोड़ को घोटाले से निजात दिलाने का रास्ता यह निकला कि जांच कर रहे कृषि अनुसंधान प्रकोष्ठ को ही समाप्त कर दिया जाए। सरकार ने पहली जनवरी को जारी अपने शासनादेश द्वारा कृषि अनुसंधान प्रकोष्ठ को समाप्त करने का फरमान जारी कर दिया। सरकार ने शासनादेश में यह जरूर लिखा है कि जरूरी हुआ तो आवश्यक जांच अन्य एजेंसियों से कराई जाएगी। लेकिन विश्वास तो नहीं हो रहा।

( मूल रूप से 03.Feb,2005 को प्रकाशित।)

Shreya

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