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1980 Moradabad Riots: वो सच्चाई, जिसे 43 साल बाद योगी सरकार सामने लाई...मुस्लिम लीग के नेताओं ने भड़काया था दंगा !

1980 Moradabad Riots: यूपी में तब विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार थी। उन्होंने इस मामले की जांच जस्टिस सक्सेना आयोग को सौंपी। मामले की रिपोर्ट 3 साल बाद यानी 1983 में सरकार को सौंप दी गई। रिपोर्ट आने के इन 40 वर्षों में सरकारें बनती-बदलती रही, लेकिन किसी ने भी यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की।

Aman Kumar Singh
Published on: 8 Aug 2023 1:58 PM GMT (Updated on: 8 Aug 2023 5:43 PM GMT)
1980 Moradabad Riots: वो सच्चाई, जिसे 43 साल बाद योगी सरकार सामने लाई...मुस्लिम लीग के नेताओं ने भड़काया था दंगा !
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1980 Moradabad Riots: उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) सरकार ने मंगलवार (08 अगस्त) को मुरादाबाद में 13 अगस्त 1980 को हुए दंगों की रिपोर्ट विधानसभा में पेश की। 43 वर्षों बाद यूपी सरकार ने दंगा रिपोर्ट सार्वजनिक की। बता दें, इस दंगे में 83 लोगों की मौत हुई थी, वहीं 113 लोग घायल हुए थे। मुरादाबाद दंगे (Moradabad Riots) की जांच जस्टिस एमपी सक्सेना की अगुवाई में गठित आयोग से कराई गई थी।

जस्टिस एमपी सक्सेना की अगुवाई वाले आयोग ने 3 साल बाद यानी 1983 में ही अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। इतने साल बीत गए यूपी में कितनी ही सरकारें आई और गई लेकिन किसी ने भी रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की जहमत नहीं उठाई। योगी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में आख़िरकार इस रिपोर्ट को विधानसभा में सार्वजनिक किया।

मुरादाबाद दंगा रिपोर्ट में क्या?

यूपी विधानसभा में मंगलवार को पेश की गई जस्टिस एमपी सक्सेना आयोग (Justice MP Saxena Commission) की रिपोर्ट में बताया गया कि, 'मुस्लिम लीग (Muslim League) के दो नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की वजह से ये दंगा हुआ था। सक्सेना आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, 'मुरादाबाद शहर में बने ईदगाह सहित अन्य स्थानों पर गड़बड़ी पैदा करने के लिए कोई भी सरकारी अधिकारी, कर्मचारी या हिंदू उत्तरदाई नहीं था। इस दंगे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) या बीजेपी का भी हाथ नहीं था।'

दंगे के लिए आम मुस्लिम नहीं, ये जिम्मेदार

जस्टिस एमपी सक्सेना आयोग की रिपोर्ट की मानें तो मुरादाबाद जिले का आम मुसलमान भी ईदगाह (Moradabad Idgah) पर उपद्रव करने के लिए उत्तरदाई नहीं था। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दंगे के लिए सिर्फ और सिर्फ डॉ. शमीम अहमद (Dr. Shamim Ahmed) के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग और डॉ. हामिद हुसैन के नेतृत्व वाले 'खाकसारो संगठन', उनके समर्थकों और भाड़े के लोग जिम्मेदार थे। उन्हीं की कारगुजारी के चलते मुरादाबाद दंगे की आग में झुलसा। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि, यह पूरा दंगा पूर्व नियोजित था। इन्हीं नेताओं के दिमाग की उपज थी।

दंगों में इस वजह से मारे गए थे अधिक मुस्लिम

जस्टिस एमपी सक्सेना आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि, दंगा भड़काने के लिए उपरोक्त लोगों ने ईदगाह में नमाजियों के बीच सुअर छोड़ दिए। उसके बाद अफवाह फैला दी, कि हिंदुओं के द्वारा इस कृत्य को अंजाम दिया गया। जब 'समुदाय विशेष' का नाम सुनने को मिला तो मुसलमानों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। मुस्लिमों की भीं ने पास के थाने, पुलिस चौकी और हिंदुओं पर हमला बोल दिया। अपने ऊपर हमला होता देख हिंदू उत्तेजित हो गए। देखते ही देखते सांप्रदायिक हिंसा (Communal violence) भड़क गई। भगदड़ में अधिकांश अल्पसंख्यक समाज के लोग शामिल थे, जिनमें कईयों की मौत हो गई।

पुलिस की गोली नहीं, भगदड़ बनी मौत का कारण

मुरादाबाद में हुए 1980 दंगे की रिपोर्ट में जस्टिस सक्सेना आयोग ने PAC, मुरादाबाद पुलिस (Moradabad Police) और जिला प्रशासन को भी दंगों के आरोपों से बरी किया था। आयोग ने जांच में पाया था कि अधिकांश मौतें पुलिस फायरिंग की वजह से नहीं, बल्कि भगदड़ के कारण हुई थी। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि राजनीतिक दल धर्म विशेष को वोट बैंक के रूप में ना देखें। सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने के दोषी पाए जाने वाले किसी भी संगठन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।

मौत के आंकड़े भी छिपाए गए !

मुरादाबाद के इस बहुचर्चित दंगे में दो समुदाय के लोग आमने-सामने आ गए थे। हिंसा भड़कने के बाद स्थानीय पुलिस ने मोर्चा संभाला। आपको बता दें, तब मुरादाबाद में करीब एक महीने तक कर्फ्यू लगा रहा था। उस वक़्त दंगे में मरने वालों की संख्या 250 से भी ज्यादा बताई गई। हालांकि, इस आंकड़े की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई। रिपोर्ट में 83 लोगों की मौत और 113 लोगों के घायल होने की जानकारी है।

अब तक बने 15 मुख्यमंत्री, लेकिन पेश नहीं की रिपोर्ट

गौरतलब है कि, उत्तर प्रदेश में तब विश्वनाथ प्रताप सिंह (VP Singh) की सरकार थी। उन्होंने इस मामले की जांच जस्टिस सक्सेना आयोग को सौंपी। इस मामले की रिपोर्ट 3 साल बाद यानी 1983 में सरकार को सौंप दी गई। रिपोर्ट आने के इन 40 वर्षों में सरकारें बनती-बदलती रही, लेकिन किसी ने भी यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि, इस दंगे के बाद से अब तक यूपी में 15 मुख्यमंत्री बने, लेकिन किसी ने भी रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर रखने की हिम्मत नहीं जुटाई।

योगी सरकार बोली- दंगे की सच्चाई सामने लाना जरूरी

इसी वर्ष 12 मई को उत्तर प्रदेश की मौजूदा योगी आदित्यनाथ सरकार ने घोषणा की थी कि, 'यूपी विधानसभा में 1980 मुरादाबाद दंगों (1980 Moradabad Riots) को लेकर जस्टिस एमपी सक्सेना आयोग की रिपोर्ट पेश की जाएगी। दंगों के बाद पीढ़ियां गुजर गई, लेकिन 43 साल तक इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया। हमारी सरकार ने फैसला लिया है कि इस रिपोर्ट को सदन में पेश किया जाए। इसका मकसद, दंगों की सच्चाई प्रदेश की जनता के सामने लाना है।'

Aman Kumar Singh

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