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24 साल से लटकी है विकास की महायोजना, गोंडा देश का सबसे गंदा शहर घोषित

tiwarishalini
Published on: 24 Nov 2017 10:20 AM GMT
24 साल से लटकी है विकास की महायोजना, गोंडा देश का सबसे गंदा शहर घोषित
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तेज प्रताप सिंह की रिपोर्ट

गोंडा। अवध क्षेत्र में अहम स्थान रखने वाले गोंडा नगर के विकास की गाड़ी बीते 24 वर्षों से हिचकोले खा-खाकर पटरी से उतर रही है। यहां की तंग गलियों और सडक़ों पर जलभराव, तमाम स्थानों पर कूड़े के ढेर, शुद्ध पेयजल की कमी और सीवर लाइन जैसी तमाम समस्याएं नागरिकों का जीना मुहाल किए हुए हैं। हालात यहां तक पहुंच गए कि गोंडा देश का सबसे गंदा शहर घोषित हो गया। नगर के नियोजित विकास की महायोजना महज कागजी खानापूर्ति तक सीमित होकर रह गयी है। योगी सरकार में भी इसे तवज्जो न मिलने से नगरवासी निराश हैं।

राजा मानसिंह ने बसाया था गोंडा शहर

देवीपाटन मंडल मुख्यालय का यह शहर विसेन वंश के क्षत्रिय और गोंडा के राजा मानसिंह ने स्थापित किया था। उनके वंशज और अन्तिम शासक राजा देवी बख्श सिंह अन्त तक स्वाधीनता के लिए लड़ते रहे। अंग्रेज शासनकाल में इस नगर का प्रबन्ध गोंडा मंडल के जिलाधीश को सौंप दिया गया जो वर्ष 1868 तक चलता रहा।

1993 में हुई नियोजित विकास की पहल

वर्ष 1993 में शहर के नियोजित विकास के लिए शहर के निकट स्थित 34 राजस्व ग्रामों का विनियोजित क्षेत्र में विलय करके महायोजना 2021 का प्रारूप तैयार करने का जिम्मा विनियोजित क्षेत्र के नियंत्रक प्राधिकारी को सौंपा गया। इसमें जिलाधिकारी को अध्यक्ष नामित किया गया और चार अफसरों को सदस्य बनाया गया। नगर की भावी जरुरतों के हिसाब से नीतियां बनाने के लिए नियंत्रक प्राधिकारी की 12 नवम्बर 1993 में हुई पहली बैठक में ही महायोजना तैयार करने का निर्णय ले लिया गया था।

ट्रांसपोर्ट नगर, बाईपास, हरित पट्टी के विकास की योजना

इस महायोजना में शहर से भारी वाहनों की आवाजाही रोकने के लिए लखनऊ मार्ग पर ट्रांसपोर्टनगर और फैजाबाद मार्ग पर बलरामपुर,बहराइच और उतरौला मार्गों को जोड़ते हुए 45 मीटर चौड़े बाईपास मार्ग का निर्माण, गोंडा-लखनऊ रेल लाइन के ऊपर से कराने, उच्चस्तरीय शैक्षिक सुविधाओं के लिए बहराइच व उतरौला रोड पर इंजीनियरिंग मेडिकल कालेज व अन्य संस्थानों का निर्माण, फैजाबाद रोड पर नये बस स्टेशन का निर्माण, बस स्टेशन के निकट व्यापारिक काम्प्लेक्स, प्रस्तावित बाईपास और अन्य प्रमुख मार्गों पर 100 फिट चौड़ी हरित पट्टी बनाने समेत तमाम अन्य प्रस्ताव तैयार किये गये। इस महायोजना के प्रारूप को 17 अगस्त 2004 को अनुमोदन मिला, किन्तु तत्कालीन सरकार में एक कद्दावर नेता के आदेश पर 2005 में प्रस्तावों पर आपत्ति और सुझाव के लिए होने वाले आयोजन को स्थगित कर दिया गया।

सत्ता बदली तब महायोजना के बढ़े कदम

प्रदेश में सत्ता बदली और महायोजना पुन: चलने लगी। 31 जनवरी 2008 को नियंत्रक प्राधिकारी की 15वीं बैठक में निर्णय के बाद 1 मार्च 2008 से 31 मार्च 2008 तक सुझाव और आपत्ति के लिए प्रदर्शनी लगायी गयी। योजना से जुड़े जानकार सूत्र बताते हैं कि इस दौरान तकरीबन तीन दर्जन आपत्तियां प्राप्त हुईं जिनका निराकरण करने के बाद 13 जून 2008 को महायोजना का प्रारूप शासनस्तर पर गठित महायोजना परीक्षण समिति के समक्ष प्रस्तुत किया गया। इसमें राजस्व अभिलेखों में दर्ज तालाबों और जलाशयों को भी मानचित्र और समावेशित करने का सुझाव दिया गया। संशोधित महायोजना तैयार होने पर शासन ने आपत्ति एवं सुझाव का निराकरण कराकर नियंत्रक प्राधिकारी बोर्ड से अनुमोदन के बाद ही प्रस्ताव भेजने के निर्देश दिये। इस क्रम में 29 नवम्बर 2011 को जिलाधिकारी की अध्यक्षता में बैठक तो हुई मगर कोई फैसला न हो सका।

पांच साल से हो रहे पत्राचार पर शासन मौन

16 फरवरी 2012 को हुई बैठक में नियंत्रक प्राधिकारी ने अनुमोदन प्रदान किया और इसे शासन को भेजने का निर्णय लिया गया, किन्तु अफसरों की उपेक्षा के चलते इसे मार्च में शासन के पास भेजा गया। इसके बाद दिसम्बर 2013 एवं मार्च 2015 में जिलाधिकारी ने महायोजना की स्वीकृति के लिए अनुरोध पत्र भेजा, लेकिन शासन से मंजूरी नहीं मिली। जुलाई 2017 में भी नगर मजिस्ट्रेट पीडी गुप्ता पत्रावली और पत्र के साथ विशेष सचिव उप्र शासन आवास एवं शहरी नियोजन की बैठक में शामिल हुए और महायोजना की मंजूरी का अनुरोध किया। बैठक के बाद भी महायोजना को मंजूरी नहीं मिली। मार्च में योगी सरकार के गठन को भी कई महीने बीत चुके हैं मगर यह महायोजना अभी तक हिचकोले ही खा रही है। इसे अभी तक मंजूरी नहीं मिल सकी है।

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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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