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30 अक्टूबर तब और अब! जानें क्या हुआ था अयोध्या में

30 अक्टूबर 1990। अयोध्या के इतिहास में यह दिन कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। इस दिन अयोध्या में सुबह से शाम होने तक कई घटनाएं हुईं। हमने उस दिन अयोध्या में सूबे की सरकार को फेल होते देखा।

Shivakant Shukla
Published on: 9 Nov 2019 1:40 PM GMT
30 अक्टूबर तब और अब! जानें क्या हुआ था अयोध्या में
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राजेंद्र कुमार

30 अक्टूबर 1990। अयोध्या के इतिहास में यह दिन कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। इस दिन अयोध्या में सुबह से शाम होने तक कई घटनाएं हुईं। हमने उस दिन अयोध्या में सूबे की सरकार को फेल होते देखा।

लिस की लाठी से घायल हुए कई कारसेवक

रामजन्म भूमि मंदिर के प्रति इसी दिन हमने ग्रामीण श्रद्धालुओं की अपार आस्था को देखा। और देखा कि कैसे इन श्रद्धालुओं ने पुलिस के हर सुरक्षा इंतजाम को ध्वस्त करते हुए विवादित ढ़ाँचे के गुंबद पर झंडा लगाया। मंदिर के गुंबद, दीवार और खिडकियों को उन्होंने कैसे क्षति पहुंचायी थी, ये भी देखा। और उस दिन पुलिस और अर्धसैनिक बलों की गोली से कैसे दो श्रद्धालु जिन्हें तब कारसेवक कहा जाता था कि मौत भी हुई थी? पुलिस की लाठी से घायल हुए कई कारसेवक भी उस दिन हमने देखे थे। कैसे कारसेवकों ने पुलिस की हर नाकेबंदी को तोड़ कर सरकार के परिंदा पर ना मार पाने के दावे को चकनाचूर किया था, यह भी हमें उसी दिन देखा था।

यह सब अब फिर तब याद आ गया जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह के घर जाकर उन्हें दीपावली की बधाई दी। इसके बाद मुख्यमंत्री पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के आवास गए और उन्हें दीपावली की बधाई दी।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की दो पूर्व मुख्यमंत्रियों से हुई मुलाकात के इस घटनाक्रम की फोटोग्राफ देखकर याद आया कि 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में घटे घटनाक्रम के बाद जहां मुलायम सिंह मंदिर भक्तों के विलेन बन गए थे, वही कल्याण सिंह उनके हीरो हो गए थे। लेकिन तब लेकर आज तक अयोध्या में 30 अक्टूबर 1990 को पुलिस की लाठी से घायल हुआ ये बुजुर्ग कारसेवक किसी की भी यादों में नहीं है।

कारसेवकों की भीड़ में गायब हुई राम की मूर्ति

मैं मंदिर के गर्भगृह की तरफ पहुंचा तो देखा कि भगवान की मूर्तियां वहां से गायब हैं। पूरा गर्भगृह खाली हो गया था। मंदिर की दीवार पर लगी घड़ी जमीन पर टूटी पड़ी थी। पूजा की सामग्री भी जमीन पर बिखरी थी। मुख्य पुजारी जयश्री राम के नारे लगा रहे थे। यह जानकारी जब बाबा रामचंद्र परमहंस को हुई तो उन्होंने अपने एक चेले को राजा अयोध्या के यहां से भगवान राम की मूर्ति लाने के लिए भेजा और भगवान राम का अस्थायी मंदिर बनाने के लिए कारसेवकों के साथ जुट गए।

राजा अयोध्या से जब भी बात हुई वह यही बताते कि जो मूर्ति उन्होंने बाबा के शिष्य को दी थी, आज उसी मूर्ति की पूजा हो रही है। राजा अयोध्या राममंदिर में राम की मूर्तियों के बार-बार बदले जाने की भी कहानी बताते हैं। कहते हैं कि मंदिर पर बार-बार हमले हुए, हर बार मूर्ति बदली। छह दिसंबर को जो मूर्ति गायब हुई वह 1949 को 22 दिसंबर की आधी रात वहां रखी गई थी। चार सौ साल पहले जब मीर बाकी ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई तो उस वक्त की विक्रमादित्य द्वारा स्थापित मूर्ति टीकमगढ़ के ओरछा राजमहल में चली गई। ओरछा की महारानी अयोध्या आकर वह मूर्ति ले गई थी। ओरछा के मंदिर में वह मूर्ति आज भी है।

Shivakant Shukla

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