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मिर्जापुर के सूरदास: बिना आँखों के कर रहे उजाला, 60 वर्षो से फैला रहे रोशनी

बसन्तु के नाना भी गरीबी और लाचारी के कारण अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाने का पुरखों के कार्य करते थे। जिसमे बसन्तु के नाना चॉक से मिट्टी के घड़े,दीपक,बर्तन और खिलौने बनाते थे।

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Published on: 13 Nov 2020 8:17 AM GMT
मिर्जापुर के सूरदास: बिना आँखों के कर रहे उजाला, 60 वर्षो से फैला रहे रोशनी
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मिर्जापुर के सूरदास: बिना आँखों के कर रहे उजाला, 60 वर्षो से फैला रहे रोशनी (PC: social media)

बृजेन्द्र दुबे

मिर्जापुर: अहरौरा बाजार में एक बुजुर्ग व्यक्ति है। जिनको बचपन से उनकी आंखों से कुछ दिखाई नही देता। सीधे शब्दों में वह देख नही सकते, वह अंधे है। लोग उन्हें सूरदास के नाम से भी बुलाते हैं। बिना आंखों के भी इनके इनके हाथों में जादू की छड़ी है। जिसको आंख से देखने वाले भी दांतो तले उंगली दबा लेते है। यह ऐसी कला है जिसको देखने के बाद लोग आश्चर्य में पड़ जाते है । यह बुजुर्ग है इनको आंखों से कुछ दिखाई नही देता है। यह जन्म से अंधे है।

इनको लोग बसन्तु कुम्हार उर्फ सूरदास के नाम से जानते है। बसन्तु एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखते है। बसन्तु जब दस वर्ष की उम्र में पहुचे तब इनको खिलौनों से खेलने का शौख था। लेकिन इनकी गरीबी लाचारी ने इनको कुछ खिलौनों से खेलने नही दिया। जिसकी वजह से बसन्तु अपने नाना के साथ उनके काम मे हाथ बंटाने लगे।

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नाना बनाते थे मिट्टी के बर्तन, दीपक

बसन्तु के नाना भी गरीबी और लाचारी के कारण अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाने का पुरखों के कार्य करते थे। जिसमे बसन्तु के नाना चॉक से मिट्टी के घड़े,दीपक,बर्तन और खिलौने बनाते थे।जिसको बसन्तु और उनके नाना बेच कर पूरे परिवार की रोजी रोटी चलाते थे। बसन्तु अपने नाना के काम मे हाथ बटाते-बटाते एक दिन अचानक अपने नाना से मिट्टी के पात्र बनाने को लेकर जिद करने लगे।

जबकि बसन्तु यह भलीभांति जानते थे उनको आंखों से कुछ भी दिखाई नही देता और वो कभी देख नही सकते है। इसके बावजूद बसन्तु ने नाना से नाराजगी जताते हुए कुछ दिनों के लिए गुस्सा भी हो गए। जिसके बाद बसन्तु के नाना ने उनका हाथ पकड़कर सबसे पहले दिवाली के दीपक बनवाये। उसके बाद गर्मियों में पानी पीने के लिए घड़े, उसके बाद बर्तन और खिलौने बनाना सीखने लगे, धीरे-धीरे बसन्तु बड़े होने लगे, करीब 18 वर्ष की आयु मे मिट्टी के पात्र बनाने में अपने नाना से महारथ हासिल कर लिए।

कुछ वर्षों बाद सिर से उठ गया नाना का साया

बसन्तु बेहद मेहनत, कर्मठी, हठी इंसान थे। इसकी वजह से वो जिंदगी जीने के लिए कुछ कर गुजरने के लिए दिन रात मेहनत करते रहे। लेकिन कुछ वर्षों के बाद इनके सिर के ऊपर से नाना का साया उठ गया। जिसके बाद बसन्तु कुम्हार बिल्कुल अकेले पड़ गए। दूर के रिस्तेदारो ने किसी तरीके से बसन्तु के ऊपर तरस कहकर एक विकलांग लड़की को जीवनसाथी के रूप में चुना जिसके बाद इनकी वैवाहिक जीवन की शुरुआत हो गयी। बसन्तु को शादी के कुछ वर्षों के बाद एक बेटा हुआ। बसन्तु बताते है कि उनका बेटा जो दिमागी रूप कमजोर है। लेकिन बसन्तु बताते है कि उनका बेटा उनके काम में सहयोग करता है।बसन्तु की उम्र 73 वर्ष है।

60 वर्षो से दीपावली के लिए दीपक तैयार करते है

बसन्तु बताते हैं कि वो लगभग 60 वर्षो से मिट्टी के सामानों को बनाकर बाजार में बेचते हैं जिससे अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। दीपावली का त्योहार बसन्तु के लिए बेहद खास रहता है। बसन्तु बताते है ये हर वर्ष दीपावाली के त्योहार का इंतजार करते रहते है। बसन्तु अपने दिन रात जागकर दीपावली त्योहार के लिए ग्रामीणों और कस्बो में लोगो के जरूरत के हिसाब से दीपक, घरिया,खिलौने बनाते है। जब त्योहार नजदीक आता है। तब उसे बाजार में ले जाकर बेचते है। जिससे उन्हें चार से पांच हजार की कमाई हो जाती हैं। जीसके मदत से बसन्तु अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते है। बसन्तु दीपावली त्योहार को लेकर बहुत जोर शोर से तैयारियां करते है।

चाइनीज सामानों के कारण बिक्री कम होती है

बसन्तु बताते है कि पहले हम लोग खूब दीपक बनाते थे। जब बाजार में दीपक बेचने जाते थे जब बेचकर वापस आते थे तब खूब ढेर सारा पैसा लेकर आते थे। लेकिन जब से चाइना का आइटम बाजार में फैला है तब से हमारे दीपक घरिया खिलौनों की खिंच कम हो गयी है। लेकिन गावों में ज्यादातर लोग हमारे पास दीपक के लिए आते है। बसन्तु बताते है कि जब से चाइनीज आइटम बाजार में आया है तब से हमारे मिट्टी के बर्तनों दीपक घरिया खिलौनों की बिक्री तेजी से घटी है। लेकिन गावों में ज्यादातर लोग अभी भी हमारे यहां से सामान खरीदकर ले जाते है। जिसकी मदत से हम लोगो की रोजी रोटी चल जाती है।

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एक बेटी भी है बसन्तु कुम्हार की

बसन्तु ने बताया कि हम जन्म से अंधे है। लेकिन हमारी शादी के बाद एक बेटा और एक बेटी भी है। मिट्टी के बर्तन बनाकर अपना परिवार चलाते है। हमारी बेटी सयानी हो गयी थी जिसकी वजह से हमने उसकी शादी कर दी है। लेकिन हमारे दामाद हमारे साथ रहते है। हमारी मदत करते है। बसन्तु बताते है बेटा थोड़ा दिमागी रूप से कमजोर है जिसकी वजह से काम मे भी परेशान होती थी। लेकिन हमने जब लड़की की शादी किया तो हमारे दामाद हमारी बहुत मदत करते है इसलिए वह हमारे साथ रहते है। जिससे काफी मदत मिल जाती है। हमारे दामाद मिट्टी गुथने में मदद करते है।

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