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अभियन्ता दिवस: अभियन्त्रण सेवाओं व अभियन्ताओं की क्या है हालत, जानें पूरा सच

Abhiyanta Divas: भारत रत्न डा0 एम विश्वेश्वरैया के जन्मदिन को सारे देश में 'अभियन्ता दिवस' के रूप में मनाया जाता है। यह रस्म अदायगी वर्षों से चली आ रही है।

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Newstrack NetworkPublished By Shreya
Published on: 14 Sep 2021 3:39 AM GMT (Updated on: 14 Sep 2021 4:11 AM GMT)
अभियन्ता दिवस: अभियन्त्रण सेवाओं व अभियन्ताओं की दशा और दिशा
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डा0 एम विश्वेश्वरैया (फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

Abhiyanta Divas: भारत रत्न डा0 एम विश्वेश्वरैया (M. Visvesvaraya) के जन्मदिन 15 सितम्बर को सारे देश में 'अभियन्ता दिवस' (Engineer's Day) के रूप में मनाया जाता है। यह रस्मअदायगी वर्षों से चली आ रही है। आगे भी चलती रहेगी। अभियन्ता किसी भी देश के विकास कार्यों का नियोजन, परिकल्पना एवं निर्माण करने का नियन्ता माना जाता है। अभियन्ता दिवस पर भावभीनी श्रद्धांजलि मात्र दे कर अभियन्ताओं का गुणगान करना और शेष 364 दिन उनका तिरस्कार या उचित स्थान न देने के चलते उ.प्र. में अभियन्त्रण सेवाओं व अभियन्ताओं दोनों की भारी दुर्दशा हुई है। परिणाम स्वरूप जहां केरल, हिमाचल प्रदेश व गोवा आदि जैसे छोटे प्रान्त विकास की दौड़ में काफी आगे निकल गये हैं वहीं उ.प्र. अभी भी बहुत पीछे है।

70 का दशक: अभियन्त्रण सेवाओं का स्वर्णिम काल

उप्र में 1970 से 1981 तक का समय अभियन्त्रण विभागों व अभियन्ताओं का स्वर्णिम काल रहा है। इस अवधि में अभियन्त्रण विभागों के विभागाध्यक्षों को राज्य सरकार के सचिव का कार्यभार देकर विभागों को नौकरशाही की दखलन्दाजी से पूरी तरह मुक्त किया गया। उप्र राज्य विद्युत परिषद के अध्यक्ष पद पर 1973 में बिजली अभियन्ता की तैनाती के साथ ऊर्जा सचिव के पद पर भी बिजली अभियन्ता तैनात किये गये। यह परम्परा 1981 तक जारी रही। सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियन्ता एन सी सक्सेना को 1973 में सिंचाई सचिव पद पर तथा उ प्र रा वि प के अध्यक्ष व ऊर्जा सचिव रह चुके इं एल बी तिवारी को 1974 में तकनीकी शिक्षा विभाग का सचिव तैनात कर यह संदेश दिया गया कि सरकार की सोच बदल रही है। तकनीकी कार्यों का दायित्व तकनीकी हाथों में ही दिया जायेगा।

उप्र राज्य विद्युत परिषद (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

तकनीकीकरण के अच्छे परिणाम

अभियन्त्रण विभागों के तकनीकीकरण के अच्छे परिणाम शीघ्र ही दिखने लगा। देश में सबसे पहले 400 के वी पारेषण लाइन व उपकेन्द्र की परिकल्पना, निर्माण व संचालन का यशस्वी कार्य पूरा कर उप्र राज्य विद्युत परिषद देश के बिजली बोर्डों की अग्रिम कतार में आ गया। महाराष्ट्र जैसे अग्रणी प्रान्त के बिजली बोर्ड ने उप्र के विद्युत परिषद को अपना सलाहकार बनाया। बिजली उत्पादन के क्षेत्र में 100 मेगावाट एवं 200 मेगावाट की तापीय इकाइयां डिजाइन करने व सफलतापूर्वक संचालित करने वाला पहला प्रान्त उप्र है। आज कम लोग यह जानते हैं कि देश की महानवरत्न कम्पनी एन टी पी सी के गठन व प्रारम्भिक वर्षों में संचालन का कार्य उ प्र रा वि प के अभियन्ताओं ने ही किया है।

छिबरो (240 मेगावाट- अब उत्तराखण्ड) में देश के सबसे पहले भूगर्भ जल विद्युत गृह और पहाड़ पर जगह कम होने के कारण पहले टू टियर पारेषण उपकेन्द्र की स्थापना का कार्य इसी अवधि में उ प्र रा वि प ने किया। 1972-73 में अभियन्ता प्रबन्धन आया तो समय रहते सही नियोजन परिकल्पना व निर्माण का नतीजा था कि नई परियोजनायें बडे़ पैमाने पर बनी। मांग व आपूर्ति का अन्तर घटने लगा। ओबरा में 3 ग् 100 मेगावाट (300 मेगावाट) व 5 ग् 200 मेगावाट (1000 मेगावाट) की परियोजनायें इसी दौरान बनी। अनपरा परियोजना (1630 मेगावाट) की नियोजन व परिकल्पना इसी अभियन्ता दौर में की गयी।

220 मेगावाट पनकी व 300 मेगावाट हरदुआगंज इसी दौर में बना। गंगा व यमुना पर 1000 मेगावाट से अधिक की मनेरी भाली, छिबरो, ढकरानी, ढालीपुर, कुलहल, चीला जैसी महत्वकांक्षी परियोजनायें इसी दौर में बनी। इन कार्यों को अंजाम देने वाले उ प्र के यशस्वी अभियन्ता इं एस एन राय केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण के 12 साल तक अध्यक्ष रहें। इं ए के साह एनटीपी सी के अध्यक्ष रहे। इं आर के नारायण पावर ग्रिड कारपोरेशन के अध्यक्ष बने बाद में उप्र पॉवर कारपोरेशन के भी पहले अध्यक्ष बने।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

मांग से काफी कम है उत्पादन

आज उप्र में बिजली की मांग लगभग 25000 मेगावॉट है। नौकरशाही के प्रबंधन का कुपरिणाम यह रहा कि उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक क्षेत्र में बिजली उत्पादन परियोजनाएं लगाई ही नही गईं। परिणामस्वरूप उप्र का अपना कुल उत्पादन मात्र 4000 मेगावॉट है जो सबसे सस्ती बिजली देता है। शेष 21000 मेगावॉट बिजली या तो केंद्रीय सेक्टर से लेनी पड़ती है या निजी घरानों से जो बहुत महँगी है। इस प्रकार बाहरी स्रोतों से बिजली की आपूर्ति की जा रही है। उप्र का पॉवर सेक्टर न ही उत्पादन के मामले में और न ही ट्रांसमिशन के मामले में आत्मनिर्भर बन सका है। दोनों ही मामलों में यह केंद्रीय सेक्टर और निजी क्षेत्र के सहारे चल रहा है।

बिजली के अलावा सिंचाई का जाल गांव-गांव तक 70 के दशक में ही पहुंचा। विकास कार्यों को राजनीति व नौकरशाही के चंगुल से मुक्त करने हेतु इसी दौरान जल निगम, सेतु निगम, निर्माण निगम, आवास विकास परिषद, प्रोजेक्ट कारपोरेशन आदि का गठन किया गया। शुरूआत जानदार रही । लेकिन धीरे-धीरे अभियन्ताओं की जगह आईएएस तैनात किये जाने लगे और अब तो राजनेताओं को भी यह खूब रास आने लगा है। नतीजा सामने है।

दुर्दशा की कहानी

अभियन्त्रण सेवाओं की दुर्दशा रातों-रात नहीं हुई है। पहले सचिव पद से अभियन्ता हटाये गये फिर निगमों में अध्यक्ष पद भी आईएएस को दिया गया। इन सबमें चाहे कोई और योग्यता रही हो लेकिन इनका इन्जीनियरिंग कार्यों से कोई रिश्ता नहीं रहा है। बिजली महकमा तोड़ा गया। आज प्रदेश में बिजली के नौ निगम हैं। इन सभी निगमों के अध्यक्ष आईएएस हैं। जल निगम के अध्यक्ष व एम डी आईएएस हैं। सेतु निगम, निर्माण निगम, प्रोजेक्ट कारपोरेशन , आवास विकास परिषद हर जगह आईएएस हैं। कहने की जरूरत नहीं ये सारे निगम अपने गठन के उद्देश्य से पूरी तरह भटक गये हैं। विकास कार्यों की धुरी बनने के बजाय राजनेताओं व नौकरशाहों की चारागाह बन गये हैं। नतीजा - दुर्दशा की पीड़ा आम जन भोग रहा है।

क्या कहते हैं सुधार आयोग

इन्दिरा गांधी ने 1969 में प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया जिसके अध्यक्ष हनुमन्तैया थे। आयोग ने प्रबल अनुशंसा की कि अन्य विकासशील व विकसित देशों की तरह भारत में भी विशेषज्ञ विभागों के सचिव विशेषज्ञ ही बनाये जायें।

उत्तर प्रदेश में भी 1974 में पूर्व मुख्य सचिव बी डी सानवाल की अध्यक्षता में आयोग गठित किया गया, जिसने इन्जीनियरिंग सेवाओं को अपग्रेड करने व अभियन्ताओं को उनका हक देने की अनुशंसा की। केन्द्र व राज्य दोनों के आयोगों की रपट पर उप्र में कुछ नहीं किया गया। नये निगमों का गठन होता रहा जो आईएएस की ट्रान्सफर पोस्टिंग के पड़ाव मात्र बन कर रह गये। अभियंत्रण सेवाओं की दुर्दशा होती रही और अभियन्ता उपेक्षा व अपमान के शिकार बनते रहे।

(कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

उ प्र के बाहर कुछ बेहतर हालात

आज राजनीति में विकास माडल की खूब चर्चा हो रही है। दुनिया का सबसे बड़ा विभाग भारतीय रेल है जिसके संविधान में लिखा है कि रेलवे बोर्ड का चेयरमैन ही रेल विभाग का सचिव होगा, जो आवश्यक तौर पर इन्जीनियर ही होगा। उतार-चढ़ाव के दौर में रेल की प्रगति के पीछे अभियन्ता प्रबन्धन है। दिल्ली व कई शहरों में मेट्रो का सफल चमत्कारिक संचालन श्रीधरन ने किया।

देश के अन्य बड़े प्रान्तों महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगला, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान और छोटे प्रान्तों हिमाचल प्रदेश, असम, मेघालय, मिजोरम, अरूणांचल प्रदेश, सिक्किम में अभी भी कई इंजीनियरिंग विभागों के सचिव इन्जीनियर है। देश की नवरत्न एवं महानवरत्न कम्पनियों की अन्तराष्ट्रीय स्तर पर कामयाब प्रतिद्वन्दिता का सबसे बड़ा राज यही है कि इन सब में प्रबन्धन के शीर्ष पद पर विशेषज्ञ है। यहां तक कि निजीकरण की दलील देने वालों से मेरा सवाल है कि वे बताएं कि देश की किस निजी कम्पनी का प्रबन्धन आईएएस या राजनेता के पास है।

युग बदल रहा है। समय की रफ्तार में हम पीछे और और पीछे न चले जाये तो अब समय आ गया है कि हमे पुनर्विचार करना ही होगा। देश के शीर्ष सस्थानों आईआईटी एवं आईआईएम से निकले इंजीनियर या तो आईएएस बन रहे हैं या विदेश जा रहे हैं। विचार का विषय है कि अभियन्ताओं की उपेक्षा के चलते इन प्रतिभाशाली इंजीनियरों का लाभ देश को विकास कार्यों में नहीं मिल पा रहा है। सवाल यह है कि भारत रत्न डॉ विश्वैश्वरैय्या ने अभियन्ता सम्मान के लिए निजाम हैदराबाद से वेतन के रूप में मुख्य सचिव की तुलना में एक रूपया अधिक वेतन लिया तभी निजाम की नौकरी स्वीकार की। उनकी नजर में एक रूपया अधिक लेना सम्मान व स्वाभिमान का प्रतीक था। क्या प्रदेश के नीति नियंता अभियन्ता दिवस पर समय की चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार है?

एक सवाल अभियन्ताओं से भी। समाज में अभियन्ता वर्ग के प्रति आई उपेक्षा व अनादर की भावना के लिए कहीं हमारा व्यवसायिक स्वार्थपरक रवैय्या तो जिम्मेदार नहीं है? डा. एम विश्वेश्वरैया , डा. ए पी जे कलाम और डॉ के एल राव अभियन्ताओं के प्रेरणा स्त्रोत है तो क्या हम उनके बताये रास्ते पर चल रहे हैं?

राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में:-

हम कौन थे, क्या हो गये है।

और क्या होगें अभी।

आओ विचारें आज मिलकर।

यह समस्या हम सभी।

- शैलेन्द्र दुबे

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