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कम बोलने वालों को Covid 19 का गंभीर खतरा कम : रिसर्च
कोरोना वायरस (Coronavirus) से संक्रमित लोगों पर हुए एक रिसर्च से पता चला है कि कम बोलने वाले लोगों या मूक लोगों में कोरोना वायरस से गंभीर संक्रमण होने का ख़तरा कम रहता है।
लखनऊ। कोरोना वायरस (Coronavirus) से संक्रमित लोगों पर हुए एक रिसर्च से पता चला है कि कम बोलने वाले लोगों या मूक लोगों में कोरोना वायरस से गंभीर संक्रमण होने का ख़तरा कम रहता है। दरअसल, कोरोना वायरस तब घातक साबित होता है जब ये फेफड़े को संक्रमित कर देता है। लेकिन ये वायरस फेफड़े में पहुंचता कैसे है, इसके बारे में जानने के लिए महामारी की शुरुआत से ही रिसर्च चल रही है।
हालांकि, एक बात पक्के तौर साबित हो गयी है कि अधिकांश लोगों के नाक या मुंह में सबसे पहले वायरस पहुंचता है। जब लोग अचानक, आमतौर पर सोते समय, अपनी ही लार या नाक का द्रव्य अपने फेफड़े में खींच लेते हैं तो ये वायरस फेफड़े में पहुंच जाता है।ये तो था फेफड़े में वायरस पहुंचने का प्राइमरी रास्ता लेकिन अब शोधकर्ताओं ने एक और रास्ते का पता लगाया है जिसके जरिये वायरस फेफड़े में चला जाता है। और ये रास्ता है खुद का बोलना। वैज्ञानिकों का कहना है कि संक्रमित व्यक्ति के खुद के बोलने से भी वायरस उसके फेफड़े में पहुँच सकता है। इसे रिवर्स इन्फेक्शन कहा गया है।
जब कोई संक्रमित व्यक्ति कम मुंह खोलेगा, कम बोलेगा तो उसके द्वारा कम मात्रा में वायरस बाहर निकलेंगे और फिर अपनी ही सांस से वायरस को भीतर खींचने की संभावना भी कम रहेगी। जर्नल ऑफ़ इंटरनल मेडिसिन में प्रकाशित एक रिसर्च पेपर में ये जानकारी दी गयी है।
अमेरिका में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ डायबिटीज,डाईजेस्टिव एंड किडनी डिजीज के एड्रिअन बाक्स इस रिसर्च के सह लेखक हैं, उनका कहना है कि जब कोई संक्रमित व्यक्ति बोलता है तो उसके चेहरे के इर्दगिर्द संक्रामक छींटों का बादल कुछ मिनट तक बना रहता है। जब भी ऐसा व्यक्ति बोलेगा तब यही स्थिति बनती है। ऐसे में बोलते वक्त खुद के इन छींटों को अपने भीतर सांस द्वारा खींच लेने का ख़तरा बना रहता है।
इस रिसर्च में ऐसे लोगों का अध्ययन किया गया जो या तो जन्मजात बधिर थे या जिनकी सुनने की क्षमता बचपन में ही किसी करणवश खत्म हो गयी थी। अध्ययन में शामिल ये लोग कोरोना से संक्रमित होने के बाद ठीक हो चुके थे। इन लोगों पर किये गए अध्ययन से पता चला कि जो प्रतिभागी कम बोलते थे और जो नियमित रूप से मास्क लगाते थे उनमें हलकी-फुलकी बीमारी ही हुई। शोधकर्ताओं ने विश्लेषण करने के बाद पाया कि कम बोलना और नियमित रूप से मास्क लगाने का बीमारी की अवस्था से गहरा सम्बन्ध है।
वैज्ञानिक एड्रिअन बाक्स का कहना है कि जब हम बोलते हैं तो मुंह से बड़े, गर्म और गीले छींटे बहार निकलते हैं और चेहरे और मास्क के बीच के गर्म वातावरण में पहुँचते हैं। जब मास्क को क्रॉस करते ही सूक्ष्म कण बाहर की हवा से ठन्डे हो कर और बड़े आकार के हो जाते हैं। ऐसे में ये बड़े कण मास्क के कपड़े में फंस जाते हैं और फिर सांस के जरिये भीतर खींचे भी नहीं जा सकते हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि जब कोई संक्रमित व्यक्ति कम बोलता है या नहीं बोलता है तो उसके द्वारा वायरस को अपने फेफड़े में खींचने की संभावना बहुत कम या नगण्य हो जाती है। ऐसे में अगर मास्क भी लगा हुआ है तो काफी ज्यादा प्रोटेक्शन मिलता है। वैज्ञानिक एड्रिअन बाक्स का कहना है कि उनके द्वारा की गयी स्टडी को और आगे बढ़ाने की जरूरत है क्योंकि ज्यादा लोगों पर रिसर्च करने से और भी प्रमाणिक नतीजे हासिल होंगे।