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Adani Foundation: मेहनत और लगन के बूते महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रहा है अदाणी फाउंडेशन

Adani Foundation: अदाणी फाउंडेशन महिला सशक्तिकरण की दिशा में कर रहा है काम

Shalini Rai
Published on: 6 March 2024 12:34 PM GMT
Adani Foundation
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Adani Foundation

Adani Foundation : महिलाओं की शक्ति को विकसित कर आत्मनिर्भर बनाना महिला सशक्तिकरण कहलाता है। नारियों को शक्ति का रूप माना गया है। महिलाएं अब समाज के विकास में सहभागी बनने के लिए आगे आ रही हैं। समाज भी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए और आगे बढ़ाने के लिए सभी तरह का सहयोग कर रहा है। छात्राओं को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराई जा रही है और महिलाओं को सिलाई मशीन देकर ट्रेनिंग दी जा रही है। आर्थिक आत्मनिर्भरता महिलाओं को सशक्त बनाने का एक प्रभावी तरीका है। आर्थिक और सामाजिक आत्मनिर्भरता एक दूसरे के पूरक हैं। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में स्वयं सहायता समूह भी प्रभावी योगदान दे रहें हैं।

महिलाओं के अथक प्रयास का एक सफल सफर

वाराणसी के सेवापुरी क्षेत्र में ग्रामीण महिलाओं द्वारा बनाई जा रही प्राकृतिक उत्पादों वाली बांस और रसायन मुक्त गंगातिरी अगरबत्ती आपको इसका अहसास करवा सकती है। महिलाओं की काशी प्रेरणा सक्षम प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड नाम से अपनी खुद की प्रोड्यूसर फर्म है। इसके दो ब्रांड हैं। एक का नाम गंगातिरी और दूसरे का नाम नारी शक्ति है। जिसमें वे गाय के गोबर से अगरबत्ती बनाते हैं, जिससे पर्यावरण भी बचता है और गौमाता की भी रक्षा होती है। अदाणी फाउंडेशन की तरफ से वाराणसी के सेवापुरी क्षेत्र में ग्रामीण महिलाओं को इस काम मदद के तौर कुछ मशीनें दी गई है जिसमें लाइजर मशीन जो पीसने के काम आती है उसके अलावा डीवाटरिंग मशीन, स्क्रीन मशीन और पांच मैन्युअल मशीनें दी गई है जो इनके रोज के कामों में तेजी लाने में काफी मददगार है। अगरबत्ती बनाने वाली कंपनी में 300 महिलाएं काम करती हैं। यहां गाय के गोबर, कपूर, नारियल तेल, गुग्गल, चंदन पाउडर, चावल का आटा और गंगातीरी समेत अन्य 54 प्रकार की जड़ी-बूटियों जैसे प्राकृतिक सामग्रियों का उपयोग करके अगरबत्ती बनाई जाती है। ये महिलाएं करीब 3 से 4 हजार रुपये महीना कमा रही हैं। इसके अलावा केंद्र से प्रशिक्षण लेने वाली चंदा और आरती जैसी महिलाएं अगरबत्ती निर्माण कंपनी में पर्यवेक्षक के रूप में काम कर रही हैं। कौशल विकास केंद्र (सक्षम) अदाणी फाउंडेशन की एक प्रमुख पहल है जो सस्टेनेबल लाइवलीहुड के लिए समर्पित है




महिलाओं के लिए उद्योग विकास और वित्तीय साक्षरता

मध्य प्रदेश के सिंगरौली में माडा तहसील के बंधौरा गांव में महान इनर्जेन लिमिटेड के आसपास के गांवों में अदाणी फाउंडेशन उद्योग विकास के लिए बुनियादी वित्तीय साक्षरता और समुदाय आधारित काम कर रहा है। महिलाओं और युवाओं को बजट, बचत, निवेश, लोन मैनेजमेंट और जरुरी खर्च जैसे प्रमुख वित्तीय अवधारणाओं के बारे में शिक्षित करने के उद्देश्य से कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते है। ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के सहयोग से किसी व्यक्ति या समूह को बिजनेस शुरू करने से पहले गुणवत्ता, पैकेजिंग और मार्केटिंग जैसे कामों की जानकारी दी जाती है। महिलाओं में वित्तीय जिम्मेदारी और दीर्घकालिक योजना की मानसिकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वित्तीय साक्षरता के माध्यम से उनमें आर्थिक समझ का निर्माण किया जा रहा है। इस इलाके में अदाणी फाउंडेशन की मदद से उषा किरण महिला समिति की करीब 200 से ज्यादा सदस्य कई आजीविका कार्यक्रमों से जुड़कर अपने परिवार को आर्थिक मदद पहुंचा रही हैं।



राजस्थान में महिलाओं को सशक्त बनने के लिए दी जा रही ट्रेनिंग

अदाणी फाउंडेशन ने सस्टेनेबल लाइवलीहुड के लिए ग्रामीण महिलाओं को ट्रेनिंग, संसाधन और टेक्निकल सपोर्ट मुहैया कराकर उनके आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण की पहल की है। अदाणी फाउंडेशन महिलाओं को फायदेमंद आजीविका उपलब्ध कराकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की और उन्हें सस्टेनेबल लाइवलीहुड प्रदान करने की कोशिश में जुटा है। इसके तहत डेरी, कैंटीन चलाना, नाश्ते बनाना, मसालों को पीसना, मशरूम की खेती, इत्यादि जैसी गतिविधियों से सम्बंधित कार्य करनेवाले 275 सेल्फ हेल्प ग्रुप्स (SHGs) बनाए गए हैं। इनमें भारतभर की 2,700 से अधिक महिलाएं जुड़ीं हैं, इन्होंने अब तक कुल 20 करोड़ रूपए की कमाई की है।

इसके अलावा, महिलाओं को डेयरी बिजनेस की ट्रेनिंग देकर अदाणी फाउंडेशन महिलाओं की मदद कर रहा है जिससे महिलाओं को अपने पैरों पर खड़े होने का मौका मिल रहा है। उन्हीं महिलाओं में से एक शानदार उदाहरण हैं शहनाज बानो। राजस्थान के बारां ज़िले की अटरू तहसील में बेस गाँव स्थित खेरली की शहनाज़ अदाणी फाउंडेशन की ओर से उस इलाके में आयोजित किये गए एक आजीविका विकास कैंप का हिस्सा बनीं। इस कैंप में महिलाओं को डेरी व्यवसाय में सशक्त बनने की ट्रेनिंग दी गई। शहनाज़ का कहना है कि “उसके गांव में कोई दूध कलेक्शन केंद्र नहीं था। इससे पशुपालन के प्रति लोगों में निराशा थी। फिर जब फाउंडेशन ने हाड़ौती प्रगतिशील प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड बनाई, मैं उसकी बोर्ड मेंबर के रूप में उससे जुडी क्योंकि मुझे इस क्षेत्र में रूचि थी और मेरे बाद 33 महिलाएं एफपीओ का हिस्सा बनीं।“ शहनाज़ और उसकी टीम ने अपने गांव में एक दूध कलेक्शन केंद्र शुरू किया और अब कई महिलाएं इस मुहीम का हिस्सा बन चुकी है।





किचन गार्डन इंटरवेंशन प्रोग्राम से महिलाएं बन रहीं हैं सशक्त

सीएसआर पहल के एक भाग के रूप में एसीसी अदाणी फाउंडेशन अपने किचन गार्डन कार्यक्रम के माध्यम से ग्रामीण समुदायों की आजीविका में सुधार लाने में महत्वपूर्ण काम कर रहा है। ऐसी ही एक सफलता की कहानी कर्नाटक के बेल्लारी जिले के कुडिथिनी गांव की है। यहां सरोजम्मा जीवन बदलने में स्वयं सहायता समूहों और किचन गार्डन की परिवर्तनकारी शक्ति का प्रमाण बन गई हैं। किचन गार्डन इंटरवेंशन प्रोग्राम के माध्यम से अदाणी फाउंडेशन का लक्ष्य समुदायों के विकास को बढ़ावा देना है। स्वयं सहायता समूहों के साथ साझेदारी करके और आवश्यक संसाधन प्रदान करके, फाउंडेशन महिलाओं को समृद्ध किचन गार्डन विकसित करने के लिए सशक्त बनाता है। किचन गार्डन इंटरवेंशन प्रोग्राम ग्रामीण महिलाओं को उनके गार्डन की खेती के लिए आवश्यक संसाधन और ज्ञान प्रदान करके सशक्त बनाने पर केंद्रित है। इस पहल के माध्यम से, सरोजम्मा जैसी महिलाएं कई तरह के फल, सब्जियां और जड़ी-बूटियां उगा सकती हैं। दो लोगों के परिवार के साथ रहने वाली सरोजम्मा, जिले के कई लोगों की तरह अपने खेत में उगाई जाने वाली फसलों पर बहुत अधिक निर्भर थीं लेकिन नए रास्ते तलाशने की इच्छा के साथ वो फाउंडेशन के किचन गार्डन इंटरवेंशन प्रोग्राम में शामिल हुईं। इसका असर ये हुआ कि सरोजम्मा का बगीचा मिर्च, मूली, भिंडी, सेम, धनिया, हरी पत्तेदार सब्जियों और टमाटर के बगीचे में विकसित हुआ है। इसका फायदा पूरे परिवार को हुआ और पोषण संबंधी जरूरतें पूरा होने लगी। इस पहल ने बाहरी बाजारों पर उनकी निर्भरता को काफी हद तक कम कर दिया है।किचन गार्डन इंटरवेंशन प्रोग्राम, अदाणी फाउंडेशन का एक प्रोग्राम है जिसमें स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से बीज वितरित करना साथ ही हैंड-पंप और वेस्ट डिस्पोजल एरिया के पास गार्डन बनने लगे।



मशरूम की खेती और वेस्ट मैनेजमेंट कर महिलाएं बन रही हैं आत्मनिर्भर

अदाणी फाउंडेशन और अंबुजा सीमेंट्स सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से प्रेरित होकर स्वयं-सहायता समूहों (एसएचजी) की मदद करके हाशिए पर रहने वाले समुदायों के उत्थान पर काम कर रहा है। हाल ही में, देवर समुदाय की महिलाओं से बनी पूजा एसएचजी को फाउंडेशन से 300 टन प्लास्टिक कचरे की आपूर्ति के लिए एक महत्वपूर्ण ऑर्डर मिला।छत्तीसगढ़ के बलौदा बाज़ार तहसील के रावन गांव में रहने वाले देवार समुदाय लंबे समय से सामाजिक हाशिए और आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहा है वे अक्सर अपनी आय के मुख्य स्रोत के रूप में कचरा संग्रहण पर निर्भर रहते हैं। अदाणी फाउंडेशन के महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम ने इन चुनौतियों का समाधान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है औऱ महिलाओं के प्लास्टिक वेस्ट कलेक्शन के माध्यम को कमाई का जरिया बनाया साथ ही उन्हें और वैकल्पिक कचरा देकर वेस्ट मैनेजमेंट ब्रांच के साथ जोड़ा है। अब देवार महिलाओं के लिए आशा की किरण के रूप में काम करता है। इस अतिरिक्त आय के माध्यम से बेहतर आजीविका और उज्जवल भविष्य के अवसर और बढ़ने लगे।

छत्तीसगढ़ में रायगढ़ के पुसौर में एनर्जी जेनरेशन लिमिटेड के आसपास के 10 गांवों में स्वयं सहायता समूहों की मदद से महिलाएं मशरूम की खेती कर आत्मनिर्भरता की नई कहानी लिख रही है। छोटे भंडार, अमलीभौना, जेवरीडीह और बुनगा गांव में अदाणी फाउंडेशन के सहयोग से स्वयं सहायता समूहों को प्रशिक्षण दिया गया और तकनीकी मार्गदर्शन में उन्हें मशरूम की खेती से संबंधित जसामग्री जैसे मशरूम बीज, पॉलीथीन बैग्स, चाक पाउडर का सहयोग देकर उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया गया।

मशरूम की खेती के लिए 10 स्वयं सहायता समूह हैं, जिनमें से अब तक 48 महिलाएं जुड़ चुकी हैं। बुनगा गांव के भारती स्वयं सहायता समूह की संध्या साव, उन महिला उद्यमियों में शामिल हैं, जो इस पहल पर काम कर रही हैं और आत्मनिर्भर भारत और महिला सशक्तिकरण का अनोखा उदाहरण पेश कर रही हैं. संध्या साव ने कहती है “मेरे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर बहुत पैसा ख़र्च होता है, जिसका खर्च वहन करने में मेरे परिवार को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जब मुझे अदाणी फाउंडेशन के इस पहल के बारे में पता चला तो मैं और मेरे समूह के सदस्य घर पर मशरूम उगाने और स्थानीय बाजार में बेच कर आय अर्जित करने काफी उत्साहित हुए”।

एक आंकड़े के अनुसार, देश भर में करीब 118 लाख से ज्यादा समूह संचालित हो रहे हैं, जिसने करीब 14 करोड़ से ज्यादा ग्रामीण परिवारों को सशक्त किया है। इसके अतिरिक्त महिलाओं को स्वयं सहायता समूह के गठन और अन्य सहायता के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत संसाधन भी मुहैया कराये जाते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाना, स्थानीय स्तर पर रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराकर शहरों होने वाले पलायन को रोकना और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना प्रमुख लक्ष्य रहा है।

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