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छह साल पहले बिछड़ी बहनें पैरेंट्स से मिलीं, मां ने कहा-छोड़ दी थी उम्मीद

Admin
Published on: 30 March 2016 4:28 PM IST
छह साल पहले बिछड़ी बहनें पैरेंट्स से मिलीं, मां ने कहा-छोड़ दी थी उम्मीद
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कानपुर: मंजला और मीना के आंसू थम नहीं रहे थे क्योंकि छह साल बाद ये बच्चियां अपने पैरेंट्स से मिली थीं। कुछ यही हाल पैरेंट्स का भी था। बच्चियों को दोबारा पाने की उम्मीद खो चुके परिजन चाइल्ड लाइन के पदाधिकारियों का शुक्रिया अदा करते नहीं थक रहे।

कैसे बिछड़ी थी बहनें?

-दिल्ली के वजीरपुर में रहने वाले लाल दिवान की दो बेटियां मंजला (12 वर्ष) और मीना (9 वर्ष) हैं।

-छह साल पहले अपनी बुआ के साथ ये बच्चियां घूमने निकली थीं।

-बच्चियों की बुआ मानसिक रूप से कमजोर थी।

-इस वजह से वो दोनों बच्चियों का ख्याल नहीं रख पाईं और बिछड़ गईं।

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दर्ज कराई थी गुमशुदगी रिपोर्ट

-इसके बाद पिता लाल दिवान ने तीनों की तलाश की, लेकिन किसी का कुछ भी पता नहीं चला।

-उन्होंने दिल्ली के वजीरपुर थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी।

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आगरा में मिली थी दोनों बहनें

-चाइल्ड लाइन के निदेशक कमल कांत तिवारी ने बताया कि छह साल पहले आगरा से इन बच्चियों को आरपीएफ ने देखा था।

-आरपीएफ ने दोनों बच्चियों को आगरा की चेतना संस्था को सौंप दिया था।

-बाद में मंजला और मीना को चाइल्ड लाइन कानपुर के सुपुर्द कर दिया गया था।

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संस्था ने स्कूल में दाखिला कराया

-मंजला बॉन टीवी से पीड़ित थी। इसका संस्था ने इलाज कराया।

-बाद में दोनों बच्चियों का एडमिशन स्कूल में कराया गया।

-मंजला कक्षा पांच और मीना कक्षा दो की छात्रा है।

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चाइल्ड लाइन ने प्रयास जारी रखा

-इस बीच चाइल्ड लाइन ने इन बच्चियों के परिजनों की तलाश जारी रखी।

-परिजनों का पता चलने के बाद अशोक विहार थाने से बच्चों की सत्यता की जांच हुई।

-जिसमें यह सिद्ध हुआ कि लाल दिवान और उमा देवी ही इन बच्चों के पैरेंट्स हैं।

साथ ही चाइल्ड लाइन, कानपुर की ओर से दोनों बहनों को कल्याण न्यायपीठ के समक्ष पेश किया गया। जिसके बाद बच्चियों को उनके पैरेंट्स के सुपुर्द कर दिया गया।

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मां ने कहा-छोड़ दी थी उम्मीद

बच्चियों की मां उमा देवी ने कहा कि इन्‍हें पाने की उम्मीद खो दी थी। उन्होंने कहा, 'जब यह जानकारी मिली कि दोनों बेटियां मिल गई हैं तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा'।

मंजला में दिखा संस्था छोड़ने का दर्द

बड़ी बेटी मंजला का कहना है, कि 'जितनी खुशी मम्मी-पापा के पास जाने की है उतना ही दुख यहां से जाने का है। यहां रह रहे सभी बच्चे मेरे भाई-बहन बन गए थे'।



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