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60 की उम्र में एवरेस्ट की ओर बढ़े इनके कदम, गजब का था जज्बा और दम
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सैर कर दुनिया की ग़ालिब, जिंदगानी फिर कहां,
जिंदगानी गर रही तो नौजवानी फिर कहां।
लखनऊ: शायद ग़ालिब की यही वो चंद लाइनें हैं, जिसने मुझे इस उम्र में भी उस जगह जाने का हौसला दिया, जहां का नाम सुनते ही अक्सर लोगों के रोएं तक कांप जाते हैं। वैसे तो इससे पहले भी मैं कई और खतरों भरे पर्वतारोहण अभियानों पर गया हूं। पर एवरेस्ट को स्पर्श कर लौट आने का रोमांचक अनुभव कभी नहीं भूल पाऊंगा। एडवेंचर का शौक तो मुझे हमेशा से रहा है और अनेक खतरों का मैंने मुकाबला भी किया है पर जिंदगी में मेरे लिए एवरेस्ट से बड़ा एडवेंचर शायद ही अब कभी हो।
अभी कुछ समय पहले हम कुछ दोस्तों राजेंद्र अरोरा , अरुण सिंघल, ताशी जांगीला और नवांग शेरपा ने एक साथ माउंटेनियरिंग का प्लान बनाया। हमने इसके लिए एवरेस्ट की ओर जाने का फैसला लिया। अक्सर लोग कहते हैं कि इस उम्र में एडवेंचर नहीं, बल्कि आराम करना चाहिए , ये सारे एडवेंचर तो जवानी के होते हैं। पर हमारे दिल में माउंटेनियरिंग के लिए अनोखा जोश भरा हुआ था। हम सारे दोस्तों की औसत उम्र करीब 60 के आसपास ही होगी। पर हमें उम्र से क्या लेना देना था। बस कुछ एडवेंचरेस करने का मूड था। फिर क्या था, निकल पड़ी हम मन के जवानों की टोली लुकला में माउंटेनियरिंग के लिए।
( राइटर दुनिया के पहले जर्नलिस्ट हैं, जो अंटार्कटिका मिशन में शामिल हुए थे और उन्होंने वहां से रिपोर्टिंग की थी।)
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जब पहुंचे तेनजिंग हिलेरी एयरपोर्ट पर
हम सब लोग जहाज से लुकला के लिए निकले। जब हम वहां पहुंचने वाले थे तो हमारा छोटा जहाज हवा में तेज हिचकोलें लेने लगा। इसी के बीच जब हमें बताया गया कि हम अब दो हजार आठ सौ मीटर की ऊंचाई पर बने लुकला के तेनजिंग हिलेरी एयरपोर्ट पर पहुंचने वाले हैं। ये सुनते ही मेरी और मेरे दोस्तों की धड़कनें बढ़ने लगीं।
हैं यहां दुर्घटनाओं का बड़ा लंबा इतिहास
एक जर्नलिस्ट होने की वजह से मैं लुकला एयरपोर्ट की कई बातों से वाकिफ हूं। 1970 से नियमित रूप से शुरू इस हवाई अड्डे का दुर्घटनाओं से लंबा इतिहास है। इस हवाई अड्डे के निर्माण में सर एडमंड हिलेरी की बड़ी भूमिका रही थी। उन्हीं के ‘एवरेस्ट ट्रस्ट’ ने 1965 में इस हवाई अड्डे का निर्माण कराया था। इसलिए नेपाल सरकार ने जनवरी 2008 में इसका नाम तेनजिंग हिलेरी एयरपोर्ट रख दिया। इस एयरपोर्ट पर पहली बड़ी दुर्घटना 1973 में हुई थी।
उसके बाद से हर वर्ष यहां एक न एक दुर्घटनाएं होती रहीं। अक्टूबर 2008 से अक्टूबर 2013 के बीच तो लुकला एयरपोर्ट में हुई अलग-अलग दुर्घटनाओं में 33 लोगों की जान गईं। नवम्बर 2008 में याति एयरलाइन के विमान में घने कोहरे के दौरान लुकला एयरपोर्ट पर उतरते वक्त आग लग गई और 18 लोग मारे गए। अगस्त 2010 में एक डोरनियर विमान की दुर्घटना में 14 मरे। इस विमान को लुकला एयरपोर्ट में मौसम बहुत खराब होने के कारण वापस भेजा जा रहा था।
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बड़ी खतरनाक है इस तेनजिंग हिलेरी एयरपोर्ट की बनावट
पहाड़ी एरिया होने की वजह से यहां ज्यादातर समय कोहरा छाया रहता है। लेकिन सिर्फ खराब मौसम के कारण ही लुकला के तेनजिंग-हिलेरी एयरपोर्ट को विश्व के सबसे खतरनाक हवाई अड्डों में शुमार नहीं किया जाता। इसका असल कारण तो लुकला एयरपोर्ट की भौगोलिक स्थिति और इसका आकार है। लुकला हवाई अड्डे का रनवे बहुत छोटा है। एक ही रनवे वाले इस हवाई अड्डे के रनवे की कुल लम्बाई 527 मीटर है। रनवे लास्ट पॉइंट पर अंग्रेजी के पी अक्षर की तरह मुड़ा हुआ है। रनवे के उत्तरी भाग में जहां यह ‘पी’ की तरह मुड़ता है, वहां पर पहाड़ियां हैं।
दक्षिणी छोर पर जहां से रनवे शुरू होता है, लगभग 2 हजार फीट से ज्यादा गहरी खाई है। रनवे पर उत्तर से दक्षिण छोर तक ग्यारह डिग्री से ज्यादा ढलान है और रनवे का सीधा भाग जहां पर ‘पी’ की तरह मुड़ता है। वहां पर यह ढलान लगभग 20 डिग्री से ज्यादा हो जाता है। इस एक्स्ट्रा ढलान के कारण रनवे छोटा होने के बावजूद उतरते समय जहाज की गति पर रोक लग जाती है जबकि उड़ान भरते समय यही एक्स्ट्रा ढलान विमान को गति दे देता है। लेकिन यही खासियत लुकला हवाई अड्डे को सबसे खतरनाक भी बना देती है।
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आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इन तमाम खतरों के बावजूद लुकला हवाई अड्डे पर रोजाना 60 से ज्यादा विमान उड़ान भरते हैं। 2015 के भूकंप के दौरान घायलों को ले जाने और राहत सामग्री लाने में भी इस एयरपोर्ट ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। लुकला हवाई अड्डा नेपाल के दुर्गम सोल खुम्भू जिले के लोगों के लिए लाइफ लाइन का काम करता है क्योंकि नेपाल के इस दुर्गम पहाड़ी इलाके में हवाई अड्डा तो है, मगर सड़क सम्पर्क अभी भी नहीं है।
सड़क सम्पर्क के लिए स्थानीय लोगों को लुकला से तीन या पांच दिन पैदल चलकर जिरी या सलैरी तक जाना होता है। जहां से उन्हें जीप सड़कों से आगे 60-70 किलोमीटर का सफर करके गाड़ी मिलती हैं। सड़क संपर्क न होने से सोल खुम्भू का इलाका नेपाल के सबसे महंगे इलाकों में माना जाता है, क्योंकि एक गैस सिलेंडर की ढुलाई पर ही दस हजार नेपाली रुपयों तक खर्च आता है।
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पहुंच गए सुरक्षित लुकला
खैर किसी तरह हम लोग आराम से सुरक्षित लुकला पहुंच गए और यहां से अब हमारी असली यात्रा शुरू होनी थी। चूंकि हमने अपने सामान को पहले दिल्ली में और फिर काठमाण्डू में इस तरह से व्यवस्थित कर लिया था। तो हमें लुकला में सामान खोलने की जरूरत ही नहीं पड़ी। वहीं हमने नाश्ता किया। राजेन्द्र और अरूण हवाई अड्डे की तस्वीरें खींचते रहे और फिर हम एवरेस्ट की ओर चल दिए। उमंगों से सराबोर दूधकोसी की कलकल के संगीत से झूमते हुए हम एवेरस्ट की ओर बढ़ रहे थे।
उन ऊंची पहाड़ियों को देखकर लग रहा था कि जैसे वे खुद ही हमारे स्वागत में खड़ी हुई हों। वहां की गहराई देखकर ही दिमाग चकराने सा लगता है। माउंट एवरेस्ट की चोटी तो ऐसे चमक रही थी कि मानो उस पर किसी ने चांदी की परत बिछाई हो। आपको बता दें कि तेनजिंग हिलेरी एअरपोर्ट दुनिया के सबसे खतरनाक एयरपोर्ट में से एक है, यहां से जब जहाज गुजरते हैं। तो सड़क पर चलने वालों को लगता है कि जहाज उनके सिर के ऊपर से ही निकल रहा है। जरा सा हाथ और ऊंचा करेंगे तो उसे हाथ से छू लेंगे।
हिमालय के रोमांच की ये दिलचस्प कहानी आगे भी जारी रहेगी...
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