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Agra News: भ्रष्टाचार में लिप्त मानसिक स्वास्थ्य संस्थान, आमने-सामने अधिकारी व कर्मचारी

Agra News: आगरा के मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय के अधिकारी और संविदा कर्मचारी एक दूसरे पर गंभीर आरोप लगा रहे है।

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Published on: 23 Jun 2021 5:17 PM IST (Updated on: 8 Jun 2022 3:42 PM IST)
Mansik Swasthya Sansthan & Chikitsalya
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मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय (फाइल फोटो- सोशल मीडिया) 

आगरा: आगरा के मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय में व्याप्त भ्रष्टाचार का जिन्न बाहर निकल आया है । संस्थान के अधिकारी और संविदा कर्मचारी आमने सामने है । एक दूसरे पर गंभीर आरोप लगा रहे है। पुलिस मामले की जांच कर चुकी है। पुलिस अपनी जांच में भ्रष्टाचार के आरोप साबित कर चुकी है। लेकिन अब तक मामले में किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नही हुई है। आइए जानते है कि क्या है पूरा मामला।

आगरा के मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय में भ्रष्टाचार की संभावना से इंकार नही किया जा सकता है। यह बात हम नहीं बल्कि हरीपर्वत थाना पुलिस (Hariparvat Police) की रिपोर्ट कह रही है । मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में भ्रष्टाचार होने की आख्या खुद सीओ हरीपर्वत ने लगाई है । रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा गया है कि प्रथम दृष्टया जांच से मानसिक स्वास्थ्य संस्थान के अंदर भ्रष्टाचार किए जाने से इनकार नहीं किया जा सकता है। मामले की जांच वरिष्ठ अधिकारी से कराया जाना अपेक्षित है। यह पहली रिपोर्ट है ।

हरीपर्वत थाने की रिपोर्ट

दूसरी रिपोर्ट हरी पर्वत थाने के उप निरीक्षक जितेंद्र सिंह की है । उप निरीक्षक जीतेंद्र सिंह ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा है कि कार्यवाहक निदेशक डॉक्टर ए.के. सिंह द्वारा अपर निदेशक स्वास्थ्य आगरा कार्यालय में नियुक्त क्लर्क पीके मिश्रा व गोविंद सिंह राणा को अपने स्तर से मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में लगाया गया था। जो कि कार्यवाहक निदेशक के कहने पर अस्थाई कर्मचारी गण को उनका वेतन दिलाने एवं सेवा विस्तार कराए जाने का आश्वासन देते थे। संस्थान में संविदा पर नियुक्त एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अनिल गौर को माह दिसंबर 2020 में दिनांक 12 से 31 तक का वेतन बिना संस्थान में आए दिया गया है, जिसकी पुष्टि संस्थान के उपस्थिति रजिस्टर की प्राप्त छायाप्रति से होती है। जिससे संस्थान के अंदर भ्रष्टाचार किए जाने से इनकार नहीं किया जा सकता है।

बता दें कि पुलिस रिपोर्ट 10 मार्च 2021 की है। पुलिस की रिपोर्ट 3 महीने पहले उच्च अधिकारियों को सौंप दी गई है। लेकिन अब तक मामले में कोई कार्यवाही नहीं हो पाई है । हालात इस कदर बेकाबू है कि प्रभारी निदेशक और संविदा पर लगे एसोसिएट प्रोफेसर एक दूसरे पर खुलकर गंभीर आरोप लगा रहे हैं । मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में संविदा पर काम कर रहे कर्मचारी और अधिकारी खुद मान रहे हैं कि संस्थान में कब आना है । कब जाना है । किसको विभाग अध्यक्ष बनाना है । सब कुछ मनमाने तरीके से चल रहा है । हालात इतने खराब हैं कि सभी एक दूसरे पर खुलकर बेहद गंभीर आरोप लगा रहे हैं ।पहले आप संविदा पर असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय में शिक्षण कार्य कर रहे असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर सत्य धर द्विवेदी , असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर स्वर्णलता सिंह ,असिस्टेंट प्रोफेसर प्रमोद कुमार शर्मा ने अपर निदेशक स्वास्थ्य डॉक्टर ए के सिंह बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं । असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर सत्य धर द्विवेदी ने बताया कि 31 अगस्त को निदेशक स्वास्थ्य का कार्यकाल समाप्त होने के बाद डॉक्टर ए.के. सिंह को कार्यवाहक निदेशक बना दिया गया ।

डॉक्टर सत्य धर द्विवेदी ने लगाया आरोप

डॉक्टर सत्य धर द्विवेदी ने आरोप लगाया है कि निदेशक का प्रभार मिलते ही डॉक्टर ए.के. सिंह ने संविदा पर तैनात कर्मचारियों से संविदा रिन्यूअल के लिए 1 महीने का वेतन मांगा और उन्हें परेशान कर रहे है। असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर सुजाता सिंह ने तो और भी गंभीर आरोप लगाया है । डॉक्टर स्वर्णलता सिंह ने कहा कि जब वह रिन्यूअल की बात करने पहुंची , तो उन्हें कहा गया कि रिन्यूअल तब होगा जब तुम साहब को खुश कर दोगी ।

असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर प्रमोद कुमार शर्मा ने कहा कि डॉक्टर ए के सिंह का पूरी तरह से गलत इस्तेमाल कर रहे हैं मनमानी दिखा रहे हैं सरकारी गाड़ी का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं 60 लीटर की टंकी वाली गाड़ी के लिए साहब 100 लीटर डीजल की पर्ची कटवाते हैं । आरोपों की बौछार सुनने के बाद अब आपको सुनाते हैं , वह सच । जो आरोपों को सही साबित कर रहा है । कार्यवाहक निदेशक से अधिकार की लड़ाई लड़ रहे असिस्टेंट प्रोफेसर ने संविद पर तैनात एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर अनिल गौड़ पर आरोप लगाया था कि वह 2020 दिसम्बर में 12 से 31 तारीख तक गैरहाजिर रहे और उन्हें वेतन जारी कर दिया ।

संस्थान के एसोसिएट प्रोफेसर का बयान

असिस्टेंट प्रोफेसरों के आरोपों की बौछार के बाद न्यूज टीम ने संस्थान के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अनिल गौड़ से बातचीत की गैरहाजिरी के सवाल पर उन्होंने कहा कि मानसिक चिकित्सा एवं शिक्षण संस्थान में यह तो आम बात है । कोई कभी भी साइन कर सकता है। कभी आ सकता है । कभी भी जा सकता है । अपना बचाव करते हुए डॉक्टर अनिल गौड़ ने यह जरूर कहा कि संविदा समाप्त होने की वजह से उन्होंने उपस्थिति रजिस्टर में साइन नहीं किए थे । जबकि वह रोजाना ही संस्थान में ड्यूटी करने आए थे । इसलिए उन्होंने रिन्यूअल पूरा होने के बाद उन्होंने एक साथ अपने साइन कर दिए ।

जानबूझकर गलत आरोप लगाए जा रहे- डॉ. एके सिंह

पूरे मामले पर प्रभारी निदेशक स्वास्थ्य डॉ. एके सिंह ने जानकारी दी। सभी आरोपों पर डॉ. एके सिंह ने गोलमोल जवाब दिए और कहा कि संविदा कर्मियों का रिनीवल खत्म होने की वजह से उन पर असिस्टेंट प्रोफेसरों द्वारा जानबूझकर गलत आरोप लगाए जा रहे हैं। नॉन टीचिंग स्टाफ डॉ. मनोज पांडे को संस्थान में विभागाध्यक्ष बनाए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि सीनियरिटी की वजह से मनोज पांडे को विभाग अध्यक्ष बनाया गया है।डॉ. अनिल गौर की उपस्थिति मामले के सवाल पर उन्होंने गोलमोल जवाब दिया और बात को टाल गए। उन्होंने कहा कि शिकायतकर्ता डॉ सत्यधर द्विवेदी ने भी ऐसा ही किया था । सवाल हुआ की तब डॉ द्विवेदी पर कार्यवाही क्यों नहीं की गई । तो प्रभारी निदेशक डॉक्टर ए के सिंह चुप हो गए । सरकारी गाड़ी से सामान ढोने के सवाल पर डॉ एके सिंह ने कहा कि उन्होंने सरकारी काम से गाड़ी में सामान रखवाया होगा । उन्होंने निजी सामान को ढोने के लिए कभी सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल नहीं किया है । पेट्रोल पंप से 100 लीटर डीजल की पर्ची बनवाने के सवाल पर डॉक्टर ए के सिंह ने बड़ा अजीब सा जवाब दिया । उन्होंने कहा कि हमेशा से ऐसा होता आया है । वह गाड़ी में 6 65 लीटर डीजल पंप से डलवा दें हैं । जबकि 35 लीटर डीजल खाली कैन में भरवा कर गाड़ी में रखते हैं । डीजल खत्म होने पर वह गाड़ी में रखी कैन से गाड़ी में डीजल डालते हैं ।

साबित हो रहे आरोप और भ्रष्टाचार के सबूत

हालांकि पूरे मामले में आरोप प्रत्यारोप अपनी जगह है। लेकिन पुलिस की जांच में जब आरोप और भ्रष्टाचार के सबूत साबित हो रहे हैं । तो कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही । ये सवाल बेहद गंभीर है । निश्चित तौर पर अब शासन को मामले पर संज्ञान लेना होगा । क्योंकि यहां कार्यवाहक निदेशक के साथ संविदा और रेगुलर कर्मचारी भी सवालों के घेरे में है । देखना होगा भ्रष्टाचार के इस खेल में और कितने खुलासे होते हैं ।



Chitra Singh

Chitra Singh

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