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ताक पर रखे फर्ज और कानून, एड्स पेशेंट को हॉस्पिटल में नहीं दी एंट्री
बाराबंकी: इंडियन कॉंस्टीट्यूशन में एड्स पीड़ित को ट्रीटमेंट समेत सारे अधिकार हैं। उसके साथ भेदभाव गैरकानूनी है, जिस पर सजा हो सकती है। सरकार भी एड्स पीड़ितों के लिए करोड़ों फूंक कर नारेबाजी करती है। फिर भी, एक एड्स पीड़ित इलाज के लिए हॉस्पिटल दर हॉस्पिटल भटक रहा है, और उसे हर जगह नो एंट्री का बोर्ड दिखा दिया गया है।
अस्पताल या अपराधी
-एड्स पीड़ित अपने परिवार के साथ हैदराबाद में रह कर चप्पल के एक कारखाने में काम करता था। लगातार बुखार के बाद वो इलाज के लिए अपने घर बाराबंकी आ गया।
-5 फरवरी 2016 को बाराबंकी डिस्ट्रिक्ट अस्पताल के आईसीटीसी सेंटर में पीड़ित की एचआईवी जांच हुई, जो पॉजिटिव पाई गई। यहां भर्ती सुविधा नहीं होने से उसे लखनऊ के RML हॉस्पिटल रेफर किया गया।
-लोहिया हॉस्पिटल ने पीड़ित को ऐडमिट करने से इनकार कर दिया और डॉक्टर मामूली दवाएं देकर टरकाते रहे।
-इसके बाद पीड़ित का परिवार उसे लेकर राजधानी के कई नामी गिरामी हॉस्पिटल के चक्कर लगाता रहा लेकिन उसे हर जगह से दुतकार दिया गया।
एड्स पीड़ितों के नाम पर ढेरों संस्थान
टूटती सांस-टूटती आस
-हॉस्पिटल और हेल्थ इंस्टीट्यूशन्स के भेदभाव के चलते मौत की तरफ बढ़ते पीड़ित के साथ ही 2 बेटियों और 1 बेटे के साथ 26 वर्षीय पत्नी भी तिल तिल मरने को मजबूर है।
-इलाज के बगैर जैसे जैसे पीड़ित की सांस टूट रही है, वैसे वैसे परिवार की आस भी टूट रही है। परिवार इसके लिए उन हॉस्पिटल को जिम्मेदार मानता है, जिनकी संवेदना मर चुकी है, और जो अपना फर्ज नहीं निभा रहे हैं।