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हवाओं में घुलते जहर का असर, सैलानियों ने बनारस से की तौबा

raghvendra
Published on: 8 Nov 2019 12:37 PM IST
हवाओं में घुलते जहर का असर, सैलानियों ने बनारस से की तौबा
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आशुतोष सिंह

वाराणसी: हवाओं में घुलते जहर का असर वाराणसी तक हो गया है। मंदी के अलावा एक वजह ये भी है कि विदेशी सैलानियों ने यहां से दूरी बढ़ानी शुरू कर दी है। देव दीपावली जैसे खास मौके पर शहर में सैलानियों का टोटा पड़ा है। पिछले वर्षों के मुकाबले इस बार 50 फीसदी कम पर्यटक वाराणसी पहुंचे।

सेंट्रल कंट्रोल पॉल्यूशन बोर्ड के मुताबिक बनारस देश के पांच सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है। यहां पर एक्यूआई 400 तक पहुंच रहा है। विदेशी सैलानी मास्क पहनकर ही शहर में बाहर निकल रहे हैं। जर्मनी के रहने वाले स्टीव होप्स ने बताया कि उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही है। हवा में धूल के कण ज्यादा हैं।

टूरिज्म इंडस्ट्री बर्बाद होने का खतरा

लंबे समय से गाइड का काम कर रहे पुलकित कहते हैं कि देव दीपावली जैसे त्योहार पर विदेशी सैलानियों की बेरुखी अपने आप में बहुत कुछ बयां कर रही है। प्रदूषण के लेवल को कम करना होगा नहीं तो टूरिज्म इंडस्ट्री बर्बाद हो जाएगी। दरअसल यहां आने वाले अधिकांश सैलानी यूरोपियन देशों के होते हैं जहां प्रदूषण नाम मात्र का होता है। हाल के दिनों में जिस तरह से प्रदूषण बढ़ा है, उसने विदेशियों को और बेचैन कर दिया है। स्मॉग के खतरे को देखते हुए विदेशी पर्यटक अब अपनी बुकिंग कैंसिल करा रहे है। इस कारण बनारस के होटल और टूरिज्म से जुड़े लोग निराश हैं। आमतौर पर बनारस में अलग-अलग माध्यमों से प्रतिदिन लगभग 1500 विदेशी सैलानी होते हैं। इस तरह प्रति महीने ये संख्या औसतन 4 लाख के आसपास होती है। पिछले साल बनारस आने वाले सैलानियों की संख्या 25.30 लाख थी, लेकिन इस बार सितंबर से लेकर अभी तक सिर्फ 5 लाख विदेशी सैलानी ही बनारस पहुंचे।

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बीएचयू में टीबी व चेस्ट विभाग के प्रो.जीएन श्रीवास्तव के अनुसार फेफड़े संबंधी मरीजों की संख्या अचानक बढ़ गई है। इसकी वजह प्रदूषण,फॉग और मौसम में तेजी से बदलाव है। हवा में प्रदूषक तत्वों की बढ़ती मात्रा चिंतनीय है।

टूरिस्टों की संख्या 50 फीसदी घटी

वाराणसी की देव दीपावली की भव्यता को निहारने के लिए लाखों लोग गंगा घाट पर पहुंचते हैं। पिछले कुछ सालों में देव दीपावली ने ग्लोबल फेस्टिवल के रूप में जगह बना ली है। यही कारण है कि विदेशियों की बड़ी तादाद इसे देखने के लिए बनारस पहुंचती है। इस बार हालात बिल्कुल जुदा हैं। होटल और ट्रैवल इंडस्ट्री से जुड़े एस.के.नाडर कहते हैं कि सितंबर से मार्च तक का महीना पर्यटन के लिहाज से पीक समय माना जाता है। देव दीपावली के वक्त तो आम दिनों की अपेक्षा 140 फीसदी बुकिंग होती है। लेकिन इस साल आर्थिक मंदी और स्मॉग के कारण होटलों में सिर्फ 50 फीसदी ही बुकिंग हो पाई है।

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नाविक भी परेशान

देव दीपावली की खूबसूरत छटा निहारने के लिए सैलानी खासतौर से नावों और बजरों (बड़ी नाव) की बुकिंग कराते हैं। लेकिन इस बार नाविक भी खाली हाथ इंतजार में बैठे हैं। पंचगंगा घाट के सेवक माझी कहते हैं कि इस बार तो बोहनी तक के लाले पड़ गए। अब प्रदूषण के चलते धंधे पर ग्रहण लग गया।

खतरनाक स्तर पर बनारस का प्रदूषण

जिला प्रशासन के लाख चाहने के बावजूद शहर में प्रदूषण कम नहीं हो रहा। कमिश्नर दीपक अग्रवाल ने पिछले दिनों बैठक के दौरान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड समेत सभी निर्माण कार्यदायी संस्थाओं की कार्यशैली पर सवाल उठाया था। उन्होंने क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी को हिदायत देते हुए कहा कि बढ़ते प्रदूषण के लिए सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं जिम्मेदार हैं। दोनों के खिलाफ सख्ती के साथ कार्रवाई की जाए। फिर भी प्रदूषण कम नहीं हुआ।

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आठ लाख दीयों से जगमग होंगे गंगा घाट

देव दीपावली पर बनारस के घाटों की रौनक देखते ही बनती है। इस खूबसूरत नजारे को देखने के लिए हर साल लाखों सैलानी बनारस पहुंचते हैं। इस बार देव दीपावली पर 8 लाख दीयों से गंगा घाटों को जगमग करने की तैयारी है। देव दीपावली से 2-3 दिन पहले ही दीयों, बाती व तेल का घाटवार विभिन्न संस्थाओं को वितरण कर दिया जाएगा। अस्सी व राजघाट पर लोगों को तेल भरा दीपक निशुल्क उपलब्ध होगा। रात में नावों पर विशेष लाइटिंग करने पर विचार किया जा रहा है। सबसे अच्छी नाव सजाने वाले नाविक को पुरस्कार भी दिया जाएगा। दरअसल देव दीपावली की असली छटा नाव पर बैठकर ही देखी और महसूस की जा सकती है।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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