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Ajit Singh First Death Anniversary: आज देश का किसान याद कर रहा अपने नेता को याद

चौ चरण सिंह के बेटे अजित सिंह बागपत से 6 बाद सांसद (MP) और कई बार केंद्र में मंत्री रहे।वह पेशे से कम्प्यूटर साइंटिस्ट थे। 60 के दशक में IBM में काम करने वाले पहले भारतीयों में थे।

Shreedhar Agnihotri
Written By Shreedhar AgnihotriPublished By aman
Published on: 6 May 2022 12:04 PM IST
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Ajit Singh (File Photo)

Ajit Singh First Death Anniversary : किसानों के नेता के तौर पर अपनी अलग पहचान बनाने वाले चौ अजित सिंह (Ajit Singh) की आज पहली पुण्यतिथि (First Death Anniversary) है। आज ही के दिन पिछले साल उनका कोरोना महामारी (Corona Pandemic) के चलते निधन हो गया था। अपने नेता को आज देश का किसान याद कर रहा है।

चौधरी अजित सिंह आईआईटी खड़गपुर (IIT Kharagpur) से बीटेक पासआउट थे। इसके बाद चौधरी अजित सिंह ने अमेरिका के इलिनाइस इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी में पढ़ने के बाद 17 साल तक अमेरिका के कारपोरेट (Corporate) जगत में काम किया। वह पेशे से कम्प्यूटर साइंटिस्ट (Computer Scientist) थे। 1960 के दशक में आईबीएम (IBM) के साथ काम करने वाले पहले भारतीयों में एक थे।

अजित सिंह का राजनीतिक करियर

पूर्व प्रधानमंत्री और किसान नेता चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) के बेटे अजित सिंह बागपत (Baghpat) से 6 बाद सांसद (MP) और कई बार केंद्र में मंत्री रहे। साल 2001 से 2003 तक अटल बिहारी सरकार में वह कृषि मंत्री और 2011 में यूपीए सरकार (UPA Government) के तहत नागरिक उड्डयन मंत्री रहे। वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में उन्होंने मुजफ्फनगर से चुनाव लड़ा था, लेकिन हार झेलनी पड़ी थी। पश्चिमी यूपी में चौधरी अजित सिंह जाटों के बड़े नेता माने जाते थे। अजित सिंह बागपत से 6 बाद सांसद और कई बार केंद्र में मंत्री रहे।

दल टूटा, विचारधारा नहीं बदली

किसान नेता के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाले चौ चरण सिंह के विचारों को मानने वाले लोगों की आज भी कमी नहीं है। यह एक ऐसा दल है जो कई बार टूटा कई बार जुड़ा लेकिन विचारधारा नहीं बदली। इस दल ने कई बार अपना रूप और नाम बदला। कभी किसी से समझौता किया तो कभी किसी दल में विलय किया। पर अपनी पहचान नहीं खोई।

भारतीय क्रांति दल की स्थापना

किसानों के मसीहा कहे जाने वाले स्व. चौ चरण सिंह ने कांग्रेस मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया। इसके बाद उन्होंने भारतीय क्रांति दल ((Bharatiya Kranti Dal) की स्थापना इसी साल की। बाद में इसका नाम लोकदल (Lok Dal) कर दिया गया। इसके बाद जनता पार्टी में 1977 में इसका विलय हो गया। जनता पार्टी जब 1980 में टूटी तो चौ चरण सिंह ने जनता पार्टी एस का गठन किया। 1985 में चौ चरण सिंह ने लोकदल का गठन किया 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में इस दल का नाम बदलकर दलित मजदूर किसान पार्टी हो गया और इसी बैनर तले चुनाव लड़ा गया।

लोकदल (अ) का जनता दल में विलय

पार्टी में विवाद के चलते हेमवती नन्दन बहुगुणा इससे अलग हो गये और 1985 में चौ चरण सिंह ने लोक दल का गठन किया। इसी बीच 1987 में चौ अजित सिंह के राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते पार्टी में फिर विवाद हुआ और लोकदल (अ) का गठन किया गया। इसके बाद लोकदल (अ) का 1988 में जनता दल में विलय हो गया। इसके बाद 1987 में लोकदल (अ) और लोकदल (ब) बन गया।

..फिर कांग्रेस में विलय

बाद में लोकदल (अ) यानी चौ अजित सिंह का 1993 में कांग्रेस में विलय हो गया। इसके बाद चौ. अजित सिंह ने 1996 में किसान कामगार पार्टी का गठन किया। चौ. अजित सिंह ने एक बार फिर कांग्रेस से अलग होकर 1996 में किसान कामगार पार्टी का गठन किया। इसके बाद 1998 में इस दल का नाम राष्ट्रीय लोकदल कर दिया गया। तब से यह दल लगातार राजनीति में अपनी भूमिका निभा रहा है।

ऐसा रहा सफर

मुलायम सिंह ने 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव जीतने के बाद फिर 1969 में वह चौ चरण सिंह से जुड़ गए। चौ. चरण सिंह ने जब लोकदल का गठन किया तो मुलायम सिंह यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी। उत्तर प्रदेश में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो मुलायम सिंह को सहकारिता मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गयी। 1987 में लोकदल का अध्यक्ष बनाया गया चौ चरण सिंह ने मुलायम सिंह को यूपी विधानसभा में वीर बहादुर सिंह की सरकार में नेता विरोधी दल बनाने का काम किया। 1987-88 में जनता दल के गठन के बाद मुलायम सिंह को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली। इसमें चौ. अजित सिंह भी साथ थे। जहां तक चौ अजित सिंह 1986 में पहली बार राज्यसभा के सांसद बने। इसके बाद उन्हे 1987 में लोक दल का अध्यक्ष बनाया गया और 1988 में वह जनता पार्टी के अध्यक्ष बने। 1989 में वह पहली बार लोकसभा सदस्य चुने गए। इसके बाद उन्हे परम्परागत बागपत सीट से लगातार छह बार जीत मिली।

यूपी के इन जिलों में रहा प्रभाव

अजित सिंह की राजनीति जिन जिलों में अधिक प्रभावी रही उनमें मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, गौतमबुद्ध नगर, बागपत, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद,जेपी नगर, रामपुर, आगरा, अलीगढ़, मथुरा, फिरोजाबाद, महामाया नगर, एटा,मैनपुरी, बरेली, बदायूं,पीलीभीत, शाहजहांपुर है।



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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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