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UP: CM अखिलेश ने दिया नोएडा को बड़ा तोहफा, प्रोजेक्ट सेटलमेंट पॉलिसी को मिली मंजूरी
यूपी में चुनाव आने वाले हैं। आचार संहिता कभी भी लग सकती है। ऐसे में प्रदेश सरकार आम जनता को खुश करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ रही है। कुछ दिन पहले भले ही अखिलेश सरकार ने नोएडा को करीब छह हजार करोड़ रुपए का तोहफा दिए है। जिसे नोएडा के लोग जिंदगीभर याद रखेंगें। जी हां, अखिलेश की कैबिनेट की ओर से यूपी में प्रोजेक्ट सेटलमेंट पॉलिसी को मंजूरी दे दी है। अब नोएडा ही नहीं पूरे यूपी में खरीददार को परेशान होने की जरूरत नहीं होगी। खरीददारों को अपने आशियाने के लिए लंबा इंतजार करना होगा। आइये आपको बताते हैं प्रोजेक्ट सेटलमेंट पॉलिसी से आम खरीददारों को क्या फायदा होने जा रहा है।
नोएडा: आगामी यूपी चुनाव के मद्देनजर आचार संहिता कभी भी लागू हो सकती है। ऐसे में प्रदेश सरकार आम जनता को खुश करने का हर संभव प्रयास कर रही है। कुछ दिन पहले भले ही अखिलेश सरकार ने नोएडा को करीब छह हजार करोड़ रुपए का तोहफा दिया है। जिसे नोएडा के लोग जिंदगीभर याद रखेंगें।
जी हां, अखिलेश की कैबिनेट की ओर से यूपी में प्रोजेक्ट सेटलमेंट पॉलिसी को मंजूरी दे दी है। अब नोएडा ही नहीं पूरे यूपी में खरीददार को परेशान होने की जरूरत नहीं होगी। खरीददारों को अपने आशियाने के लिए लंबा इंतजार करना होगा। आइये आपको बताते हैं प्रोजेक्ट सेटलमेंट पॉलिसी से आम खरीददारों को क्या फायदा होने जा रहा है।
ये होंगे फायदे
-हर बिल्डर अथॉरिटी के साथ एक एस्क्रो अकाउंट खोलना होगा। जिसमें हर प्रोजेक्ट का रुपया रखना होगा।
-जिससे प्रोजेक्ट को पूरी तरह से तैयार किया जाएगा। जिससे खरीददार को पता होगा कि उनका रुपया उन्हीं के प्रोजेक्ट पर लगाया जा रहा है। किसी दूसरे प्रोजेक्ट पर नहीं। जिससे उनका आशियाना जल्द से जल्द तैयार हो सकेगा।
-अगर बिल्डर किसी कारण से काम शुरू नहीं करता है और प्रोजेक्ट कंप्लीट करने की स्थिति में नहीं है तो बिल्डर को लैंड अथॉरिटी को रकम वापस करनी होगी।
-एस्क्रो अकाउंट में जमा बिल्डर का 30 फीसदी रुपया जब्त कर लिया जाएगा।
-बाकी का 70 फीसदी रुपया जो कि खरीददार से लिया गया है वो वापस कर दिया जाएगा।
-अगर खरीददार अपनी प्रॉपर्टी को रजिस्टर कराने में असमर्थ होता है तो बिल्डर उस अमाउंट का 10 फीसदी जमा करेगा। जिसके बाद बायर्स अपनी प्रोपर्टी रजिस्टर्ड कराकर लीज डीड करा सकता है।
-खरीददार को भी बिल्डर की तरह फायदा होगा। उसे अनयूज्ड लैंड का रुपया नहीं देना होगा।
-इससे नए घरों की सप्लार्ई में तेजी से उछाल आएगा।
-दूसरा यह है कि अगर कोई भी बिल्डर दिए गए समय पर पजेशन नहीं देता हैं तो उसे खरीददार को ब्याज देना होगा।
-बिल्डर ने क्या और किस तरह का प्लान प्रोजेक्ट बनाने के लिए तैयार किया है उस ओरिजिनल प्लान की जानकारी बायर्स को देनी होगी।
-अगर आगे जाकर प्लान में कुछ बदलाव किया तो उस बारे में भी खरीददार को पूरी जानकारी देनी होगी।
इस कारण पड़ी पॉलिसी की जरूरत
-साल 2010 के बाद से रियल एस्टेेेट में काफी मंदी का दौर देखने को मिल रहा है। बिक्री में काफी कमी आई है।
-अगर साल 2010 की बात करें तो उस साल 2 लाख मकानों की बिक्री हुई थी। 2014 में ये बिक्री 1.62 लाख और 2015 में से बिक्री 1.58 लाख रह गई।
-अगर बात नए आशियानों की घोषणा की करें तो साल 2011 में 3.43 लाख फ्लैट की घोषणा हुई थी। जो आज घटकर 2016 के पहले छह महीनों में 1.07 लाख रह गई है।
-रियल एस्टेट एफडीआई में भारी गिरावट देखने मिली है। जहां वर्ष 2009-10 में एफडीआई का दायरा 13,586 करोड़ रुपए था। वहीं 2015-16 में ये निवेश 727 करोड़ रुपए रह गया।
-मौजूदा वित्तीय साल के पहले छह माह में रियल एस्टेट कंपनियों पर करीब 59 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है।
-किसानों के विरोध प्रदर्शन और एनजीटी के आदेश कि ओखला बर्ड सेंचुरी के 10 किलोमीटर के रेडियस में कोई ना कई रियल एस्टेट प्रोजेक्ट अधर में लटकाए गए हैं।