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Bharat Jodo Yatra: यूपी में भारत जोड़ो यात्रा से अखिलेश, मायावती और जयंत ने काटी कन्नी, आखिर क्या है इसका सियासी मतलब

Bharat Jodo Yatra: यूपी में भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने के लिए कांग्रेस की ओर से सपा, बसपा और RLD को आमंत्रण भेजा गया था मगर तीनों दलों के नेता इस यात्रा में शामिल नहीं हुए।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman Tiwari
Published on: 28 Dec 2022 2:47 PM IST
Akhilesh, Mayawati and Jayant cut off the Bharat Jodo Yatra in UP, what is its political meaning
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यूपी में भारत जोड़ो यात्रा से अखिलेश, मायावती और जयंत ने काटी कन्नी, आखिर क्या है इसका सियासी मतलब: Photo- Social Media

Bharat Jodo Yatra: कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की अगुवाई में निकली भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) कई प्रदेशों का सफर तय करने के बाद राजधानी दिल्ली पहुंच चुकी है। ब्रेक के बाद 3 जनवरी को उत्तर प्रदेश में भारत जोड़ो यात्रा की फिर शुरुआत होने वाली है। यूपी में यात्रा में शामिल होने के लिए कांग्रेस (Congress) की ओर से राज्य के प्रमुख विपक्षी दलों समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party), बहुजन समाज पार्टी Bahujan Samajwadi Party) और राष्ट्रीय लोकदल (Rashtriya Lok Dal) को आमंत्रण भेजा गया था मगर तीनों दलों के नेता इस यात्रा से कन्नी काटते हुए नजर आ रहे हैं।

इन तीनों दलों से जुड़े जानकार सूत्रों का कहना है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, बसपा मुखिया मायावती और रालोद के मुखिया जयंत चौधरी इस यात्रा में शामिल नहीं होंगे। इसके पीछे इन नेताओं का पहले से कार्यक्रम तय होने की बात कही जा रही है। अभी इस बात को लेकर भी संशय बना हुआ है कि इन नेताओं के प्रतिनिधि भी यात्रा में शामिल होंगे या नहीं। यूपी में विपक्ष के इन तीन बड़े नेताओं के यात्रा में शामिल न होने का बड़ा सियासी मतलब निकाला जा रहा है। इन तीनों नेताओं के रुख से 2024 की बड़ी सियासी जंग में विपक्षी एकजुटता को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं।

यात्रा में शामिल नहीं होंगे विपक्ष के तीन बड़े चेहरे

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता के बयान से साफ हो गया है कि अखिलेश यादव राहुल गांधी की इस यात्रा में शिरकत नहीं करेंगे। पार्टी के एक प्रवक्ता ने कहा कि सपा मुखिया अखिलेश यादव पहले से ही दूसरे कार्यक्रमों में व्यस्त हैं और इस कारण उनका यात्रा में हिस्सा लेना मुश्किल है। प्रवक्ता ने कहा कि पार्टी की ओर से कोई दूसरा नेता इस यात्रा में शामिल होगा या नहीं, इस संबंध में अभी तक कोई आखिरी फैसला नहीं किया गया है।

समाजवादी पार्टी के अलावा राष्ट्रीय लोकदल की ओर से भी अपना रुख स्पष्ट कर दिया गया है। रालोद मुखिया जयंत चौधरी भी इस यात्रा में हिस्सा नहीं लेंगे। रालोद सूत्रों की ओर से भी जयंत के पहले से ही दूसरे कार्यक्रमों में व्यस्त होने की बात कही जा रही है। अभी यह भी साफ नहीं हो सका है कि जयंत अपने किसी दूसरे प्रतिनिधि को यात्रा में हिस्सा लेने के लिए भेजेंगे या नहीं। बसपा के सूत्रों का कहना है कि मायावती भी भारत जोड़ो यात्रा में शामिल नहीं होंगी। कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने सुभासपा नेता ओमप्रकाश राजभर से यात्रा में शामिल होने के संबंध में बात की है मगर उनका भी यात्रा में शामिल होना पक्का नहीं है।

2017 में अखिलेश का कटु अनुभव

सियासी जानकारों का मानना है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव ने यूपी की सियासत के संबंध में अपना रुख पहले ही स्पष्ट कर रखा है। वे छोटे दलों के साथ गठबंधन करके आगे बढ़ना चाहते हैं। प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने यही रणनीति अपनाई थी। आगे भी वे इसी रणनीति पर अमल करना चाहते हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था मगर पार्टी को अपेक्षित नतीजे नहीं मिल सके थे। कांग्रेस के साथ गठबंधन करके सपा ने उसे 100 सीटें दी थीं मगर कांग्रेस सिर्फ सात सीटों पर जीत हासिल कर सकी। इस बार के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा और उसे सिर्फ दो सीटों पर जीत हासिल हुई है।

छोटे दलों से गठबंधन की रणनीति

दूसरी ओर सपा ने छोटे दलों के साथ गठबंधन करके अपनी ताकत दिखाई है। सपा गठबंधन प्रदेश में 125 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रहा है। ऐसे में अखिलेश अब कांग्रेस के मोह में नहीं फंसना चाहते। सपा कांग्रेस से दूरी बनाए रखने को ही अपने लिए अच्छा विकल्प मान रही है। छोटे दलों के साथ गठबंधन करने पर सपा को ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका भी मिल जाता है। ऐसे में अखिलेश प्रदेश की सियासत में अब कांग्रेस के साथ नहीं देखना चाहते।

प्रदेश की सियासत में रालोद का सपा के साथ सियासी गठबंधन है और ऐसे में रालोद ने भी कांग्रेस से दूरी बना ली है। बसपा मुखिया को भी कांग्रेस के साथ जुड़ने में कोई फायदा नजर नहीं आ रहा। मायावती पहले ही कांग्रेस को दलित विरोधी बताती रही है। वे भी प्रदेश में कांग्रेस से अलग रास्ते पर चलने की इच्छुक दिख रही हैं।

विपक्षी एकजुटता पर उठने लगे सवाल

कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा से विपक्ष के नेताओं की दूरी को लेकर विपक्षी एकजुटता पर भी सवाल उठने लगे हैं। अगले साल 10 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन विधानसभा चुनावों को 2024 की सियासी जंग से पहले सत्ता का सेमीफाइनल मुकाबला माना जा रहा है। 2024 की सियासी जंग में भाजपा के खिलाफ विपक्ष को एकजुट बनाने की कोशिशें भी चल रही हैं। विपक्षी नेताओं के रुख से विपक्ष की एकजुटता की राह काफी मुश्किल मानी जा रही है।

महाराष्ट्र में शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे और एनसीपी नेता सुप्रिया सुले और हरियाणा में डीएमके नेता कनिमोझी ने यात्रा में शिरकत की थी। जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी यात्रा में शामिल होने पर रजामंदी जताई है मगर उत्तर प्रदेश जैसे बड़े सूबे में विपक्ष ने कांग्रेस की यात्रा से किनारा कर लिया है। सियासी जानकारों का मानना है कि इससे साफ है कि आने वाले दिनों में भाजपा के खिलाफ विपक्ष का एकजुट होना काफी मुश्किल होगा।



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Shashi kant gautam

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