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सपा ने तोड़ा भाजपा का भगवा एकाधिकार, हिंदू संतों को भाने लगे अखिलेश

हिंदू संतों को राजनीति की वैतरणी पार कराने वाली भाजपा (BJP) अब इकलौती नहीं रही। भाजपा का एकाधिकार समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने तोड़ दिया है। हिंदू संतों को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की राजनीति भाने लगी है।

Akhilesh Tiwari
Written By Akhilesh TiwariPublished By Ashiki
Published on: 7 Aug 2021 6:03 PM IST
Akhilesh Yadav
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संतो के साथ अखिलेश यादव (फाइल फोटो- सौ. सोशल मीडिया)

लखनऊ: हिंदू संतों को राजनीति की वैतरणी पार कराने वाली भाजपा (BJP) अब इकलौती नहीं रही। भाजपा का एकाधिकार समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने तोड़ दिया है। हिंदू संतों को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की राजनीति भाने लगी है। शनिवार को पहली बार वृंदावन के महामंडलेश्वर सत्यानंद गिरी ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता लेकर साफ संकेत दे दिया है कि भगवा राजनीति के लिए भाजपा अब अपरिहार्य नहीं रह गई है।

भारतीय जनता पार्टी ने हिंदू संतों को राजनीति का चस्का लगाया। धर्म रक्षा से बढ़कर राष्ट्र रक्षा का मंत्र दिया। हिंदू कथावाचकों से लेकर धर्माचार्यों को भाजपा ने विधानसभा और संसद तक पहुंचाया। कई लोगों को मंत्री बनने का मौका मिला। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी गुरु गोरखनाथ पीठ के अधिष्ठाता हैं। माना जाता रहा है कि हिंदू संतों और धर्मचार्यों के लिए भाजपा ही ऐसा राजनीतिक दल है जिसकी परिक्रमा से सत्ता फल प्राप्त होना संभव है।


सपा पर लगता रहा है मुस्लिमपरस्त राजनीति का आरोप

भाजपा की ओर से समाजवादी पार्टी पर मुस्लिमपरस्त व हिंदू विरोधी राजनीतिक दल होने का आरोप लगाया जाता रहा है। ऐसे में शनिवार को समाजवादी पार्टी के प्रदेश कार्यालय में जो कुछ हुआ वह प्रदेश व देश की राजनीति के बदलते मूड को समझने के लिए काफी है। वृंदावन के महामंडलेश्वर सत्यानंद गिरी ने जब मीडिया की मौजूदगी में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का नेतृत्व स्वीकार करते हुए पार्टी की सदस्यता ग्रहण की है और उन्हें गोवर्धन महाराज का छप्पनभोग प्रसाद सौंपा तो संत समाज में सपा नेतृत्व और पार्टी की स्वीकार्यता पर जैसे मुहर लग गई। अब तक हिंदू संत समाज का आशीर्वाद ही सपा को मिलता रहा है लेकिन अब संतों को राजनीतिक नेतृत्व देने के लिए भी पार्टी तैयार है।


अखिलेश यादव की हिंदू छवि का असर

महामंडलेश्वर सत्यानंद गिरी के सपा का झंडा थामने के बाद यह माना जा रहा है कि भगवा मन अब केवल भाजपा के साथ बंधकर रहने को तैयार नहीं है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव में संत समाज को हिंदू छवि दिख रही है। संत समाज अब उनके साथ भी चलने के लिए तैयार है। अखिलेश यादव ने पिछले कुछ सालों में भाजपा के तीखे हमलों के बीच अपनी नई छवि गढ़ी है। भाजपा की ओर से राम विरोधी होने का आरोप लगाने पर वह हमेशा भगवान श्रीविष्णु का नाम लेते रहे हैं। उन्होंने हमेशा कहा कि वह भगवान श्री विष्णु को मानते हैं जिनके राम व कृष्ण अवतार हैं। पिछले साल अखिलेश यादव ने पार्टी के कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर की शुरुआत चित्रकूट धाम में कामदगिरि की परिक्रमा और कामतानाथ के दर्शन से की थी। वह जैन मंदिर से लेकर बौद्ध मंदिर और मथुरा—वृंदावन में बांकेविहारी, गोवर्धन भगवान के दर्शन कर चुके हैं। प्रयागराज से निरंजनी अखाड़ा परिषद के महासचिव महंथ नरेंद्र गिरी भी कई बार राजधानी आकर अखिलेश यादव को अपना आशीर्वाद दे चुके हैं। पिछले दिनों अयोध्या के संतों ने भी आकर उन्हें अपना आशीर्वाद दिया है। योगी सरकार में जमीन छिन जाने से प्रताड़ित अयोध्या के ब्राह्मणों ने भी लखनऊ आकर अखिलेश यादव को अपना समर्थन दिया है।


मंदिर के लिए दान का कर चुके हैं वादा

अयोध्या में भगवान श्रीराम के जन्मस्थल पर भव्य मंदिर निर्माण के लिए चंदा देने के सवाल पर भी अखिलेश यादव ने दान करने की बात कही है। उन्होंने कहा कि जब वह अयोध्या जाएंगे तो भगवान के मंदिर में दान करेंगे। अयोध्या के विकास के लिए भी वह अपनी सरकार में किए काम का जिक्र करते रहे हैं। उन्होंने भगवान विष्णु के नाम वाले इकाना स्टेडियम का नाम बदलने के लिए भी भाजपा को आड़े हाथ लिया था।


भगवा मांगे मोर

समाजवादी पार्टी में पहली बार किसी हिंदू संत का आगमन हुआ है। महामंडलेश्वर सत्यानंद गिरी का इससे पहले का कोई राजनीतिक इतिहास नहीं है। धर्माचार्य की पहचान के साथ उन्होंने पहली बार राजनीतिक दल के तौर पर सपा का दामन थामा है। ऐसे में माना जा रहा है कि भगवा राजनीति का प्रदेश में विस्तार हो रहा है। धर्माचार्य जो अब तक केवल भाजपा की ओर जाते रहे हैं उन्हें अब दूसरे राजनीतिक दल भी रास आने लगे हैं। वरिष्ठ पत्रकार रंजीव कहते हैं कि धर्माचार्यों को अब समझ में आ रहा है कि केवल भाजपा के साथ जाकर ही राजनीति नहीं की जा सकती है। दूसरे राजनीतिक दलों की भी अपनी ताकत है। राजनीति के ताले की कुंजी जिस राजनीतिक दल के पास है उससे इसे हासिल किया जा सकता है। यह कह सकते हैं कि भगवा राजनीति की तमन्ना अब ज्यादा पाने की है और उसे यह महसूस हो रहा है कि भाजपा में उन्हें पूरा सम्मान मिलना मुमकिन नहीं है।



Ashiki

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