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Akhilesh Yadav Birthday: आज 50 साल के हुए अखिलेश यादव, 2012 में बने थे यूपी के सबसे युवा मुख्यमंत्री

Akhilesh Yadav Birthday: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आज 50 साल के हो गए हैं। 1 जुलाई 1973 को सैफई में मुलायम सिंह यादव और मालती देवी के घर जन्मे अखिलेश की गिनती आज देश के कद्दावर क्षत्रपों में होती है।

Krishna Chaudhary
Published on: 1 July 2023 8:49 AM IST
Akhilesh Yadav Birthday: आज 50 साल के हुए अखिलेश यादव, 2012 में बने थे यूपी के सबसे युवा मुख्यमंत्री
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अखिलेश यादव (Newstrack)

Akhilesh Yadav Birthday: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आज 50 साल के हो गए हैं। 1 जुलाई 1973 को सैफई में मुलायम सिंह यादव और मालती देवी के घर जन्मे अखिलेश की गिनती आज देश के कद्दावर क्षत्रपों में होती है। लगातार चुनाव हारने के बावजूद प्रदेश में उन्हीं को इकलौता शख्स माना जाता है जो विजयी रथ पर सवार भाजपा को परास्त कर सकती है।

देश के एक ताकतवर सियासी परिवार से आने वाले अखिलेश यादव का राजनीति में पर्दापण काफी पहले हो गया था। मात्र 27 साल की उम्र में वो संसद पहुंच गए थे। इसके 10 साल बाद यानी 37 साल की उम्र में अखिलेश देश के सबसे बड़े सियासी सूबे के मुख्यमंत्री बन गए। अखिलेश यादव का बचपन से लेकर अब तक कैसा रहा सफर चलिए एक नजर उस पर डालते हैं –

बचपन में अखिलेश का था ये नाम

अखिलेश यादव का जब जन्म हुआ तो उनके पिता मुलायम सिंह यादव के दोस्त और तब के ग्राम प्रधान ने उनका नाम टीपू सुझाया। मुलायम ने अपने दोस्त की बात नहीं काटी और अपने बच्चे को टीपू ही बुलाने लगे। हालांकि,परिवार के साथ-साथ गांव वाले भी इस नाम को लेकर सहज नहीं थे लेकिन बाद में दर्शन सिंह ने उन्हें मैसूर के प्रतापी शासक रहे टीपू सुल्तान की कहानी सुनाई, जिसके बाद सभी अखिलेश को टीपू पुकारने लगे।

तब सवाल उठता है कि अखिलेश नाम कैसे पड़ा ? इसका किस्सा भी काफी दिलचस्प है। दरअसल, टीपू जब 4 साल के हुए तो उनके चाचा प्रोफेसर रामगोपाल यादव उन्हें सेंट मेरिज स्कूल में दाखिला दिलाने ले गए। स्कूल में जब फॉर्म भरवाया जा रहा था, तब बच्चे का नाम पूछा गया। रामगोपाल यादव ने कहा टीपू लिखिए। स्कूल का स्टॉफ और शिक्षक हैरान होकर टीपू और रामगोपाल यादव की ओर देखने लगा।
इसके बाद रामगोपाल यादव ने अपने भाई मुलायम सिंह यादव को फोन लगाया तो उन्होंने कहा कि टीपू से ही पूछ लीजिए। बताया जाता है कि इसके बाद स्कूल के शिक्षक ने टीपू से पूछा कि तुम्हें अखिलेश नाम पसंद है ? चार साल के बालक ने हां में सिर हिलाया और इस प्रकार टीपू को अखिलेश यादव के रूप में नई पहचान मिली।

अखिलेश को इंजीनियरिंग में लगे थे खूब सेमेस्टर बैक

अखिलेश यादव ने क्लास तीन तक की पढ़ाई सेंट मेरिज स्कूल से ही की। इसके बाद जब वे 10 साल के हुए तो सुरक्षा कारणों से उनका धाखिला राजस्थान के धौलपुर स्थित सैनिक स्कूल में करा दिया गया। स्कूलिंग पूरा करने के बाद अखिलेश एन्वायरमेंटल इंजीनियरिंग के लिए मैसूर के जेएसएस कॉलेज में दाखिला लिया। यहां उन्हें जमकर बैक लगे। पहले सेमेस्टर में अखिलेश केवल दो विषय में ही पास हो पाए थे। उन्होंने खुद एक साक्षात्कार में स्वीकार किया था कि जितने बैक उन्हें लगे शायद ही किसी अन्य छात्र को लगा होगा। 1996 में जब अखिलेश अपनी इंजीनियरिंग पूरी कर लौट तब उनके पिता मुलायम सिंह यादव देवेगौड़ा मंत्रिमंडल में रक्षा मंत्री हुआ करते थे।

अखिलेश यादव को इसी साल इंजीनियरिंग मास्टर्स के लिए ऑस्ट्रेलिया के सिडनी भेज दिया गया। उनके साथ पढ़ाई करने वाले एक दोस्त उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि अखिलेश में पढ़ाई में बहुत अच्छे नहीं थे। लेकिन अन्य नेता पुत्रों की तरह उनमें कोई ऐब नहीं था। वो न तो सिगरेट और न ही शराब का सेवन करते थे। इतने बड़े सियासी परिवार से आने के बावजूद उनके पास मोबाइल तक नहीं था। वे मास्टर्स पूरी करने के बाद ही भारत लौटे थे।

डिंपल से शादी के खिलाफ थे मुलायम

अखिलेश यादव की डिंपल यादव से मुलाकात एक कॉमन फ्रेंड के घर पर हुई थी। उस समय डिंपल मात्र 17 साल की थीं। बताया जाता है कि अखिलेश पहली मुलाकात में ही उन्हें अपना दिल दे बैठे थे। इसके बाद जब वो सिडनी मास्टर्स करने के लिए गए तो दोनों के बीच पत्रों के जरिए संवाद बना रहा। ऑस्ट्रेलिया से पढ़ाई कर लौटे अखिलेश ने डिंपल से शादी करने की ठानी। लेकिन पिता मुलायम सिंह यादव इसके लिए तैयार नहीं हुए। मुलायम के राजी न होने के पीछें तीन वजहें गिनाई जाती थीं।

पहला कि डिंपल राजपूत जाति से आती थीं। दूसरा कि वह उत्तराखंड से आती थीं, उस दौरान उत्तराखंड पृथक राज्य की मांग को लेकर जोर शोर से आंदोलन चल रहा था। तीसरा मुलायम सिंह अपने बेटे अखिलेश की शादी अपने दोस्त और बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव की बड़ी बेटी मीसा भारती से कराना चाहते थे। बता दें कि डिंपल के पिता आरएस रावत सेना में कर्नल थे।

अमर सिंह के दखल से हुई शादी

दिवंगत अमर सिंह किसी जमाने में समाजवादी पार्टी के सबसे ताकतवर नेताओं में गिने जाते थे। मुलामय सिंह यादल तक पहुंचने का रास्ता उन्हीं से होकर जाता था। अखिलेश भी उन्हें अंकल कहकर संबोधित करते थे और दोनों में अच्छी जमती भी थी। बताया जाता है कि अखिलेश ने डिंपल से शादी को लेकर मुलायम सिंह को मनाने के लिए अपनी दादी मूर्ति देवी और अमर सिंह का सहारा लिया। आखिरकार सपा संस्थापक को अपने बेटे की इच्छा की आगे झुकना पड़ा। 24 नवंबर 1999 को एक भव्य समारोह में दोनों की शादी हुई। जिसमें तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेई भी शामिल हुए थे।

अखिलेश का सियासी सफर

जिस समय अखिलेश यादव की शादी हुई थी, तब तक वे एक्टिव पॉलिटिक्स से दूर थे। बताया जाता है कि दिसंबर 1999 में यानी शादी के एक माह बाद अखिलेश और डिंपल जब देहरादून के किसी मॉल में खरीदारी कर रहे थे, तभी उनका फोन बजा। फोन की दूसरी तरफ उनके पिता मुलायम सिंह यादव थे। उन्होंने बस इतना कहा, तुम्हें चुनाव लड़ना है। इसके बाद फोन कट गया। उसी महीने कन्नौज सीट पर हुए उपचुनाव में अखिलेश यादव उम्मीदवार बने और जीतकर पहली बार संसद पहुंचे।

साल 2004 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव दूसरी बार कन्नौज सीट से उतरे और बसपा उम्मीदवार को तीन लाख से अधिक वोटों से हराया। 2009 में भी उनकी जीत का सिलसिला जारी रहा और उन्होंने बसपा उम्मीदवार को एक लाख से अधिक वोटों से हरा दिया। 2012 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने प्रदेश की राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय नजर आए हो, चाहे मायावती सरकार के खिलाफ विरोध – प्रदर्शन करना हो या साइकिल यात्रा करनी हो। युवा अखिलेश के पीछे यूपी के नौजवान लामबंद हो रहे थे।

अंग्रेजी और कंप्यूटर का विरोध करने वाली सपा को उन्होंने इसका समर्थक बना दिया। जिससे प्रगतिशील जनता के बीच पार्टी की छवि बेहतर हुई। अखिलेश की अथक प्रयास और उनके चेहरे का ही नतीजा था कि 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को 403 में से 224 सीटों पर प्रचंड जीत मिली थी। इसके बाद मुलायम सिंह यादव ने बड़ा दांव चलते हुए अपने 38 वर्षीय बेटे को प्रदेश का सबसे युवा मुख्यमंत्री बनवाया।

हालांकि, अखिलेश यादव का पहला कार्यकाल सहज नहीं रहा। शुरू में उनकी सरकार में अन्य नेताओं का दखल ज्यादा था। विधानसभा चुनाव के करीब आते-आते पार्टी के साथ-साथ परिवार में भी बड़ी फूट पड़ गई। लेकिन अखिलेश ने अपने सियासी दांव से पार्टी पर मजबूत पकड़ बना ली और विरोधियों को साइडलाइन कर दिया। हालांकि, उन्हें चुनावों में नुकसान जरूर उठाना पड़ा। मगर वक्त के बीतने के साथ-साथ परिवार में अब फिर से एकता आ गई है। अखिलेश यादव अब खुद को स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव के वास्तविक उत्तराधिकारी के रूप में पार्टी से लेकर परिवार के बीच स्थापित कर चुके हैं।



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